कृष्णम् वंदे जगद्गुरुम्

punjabkesari.in Thursday, Aug 25, 2016 - 07:58 AM (IST)

भारतीय जीवन की धर्मप्राण मनीषा में भगवान श्री राम विष्णु और कृष्ण के अवतार माने जाते हैं। विष्णु इस सृष्टि के पालनहार हैं और ब्रह्मा तथा महेश के साथ त्रिदेव बनकर युगों से सारे संसार में वंदनीय रहे हैं। पूरा आर्यव्रत इन दोनों देवताओं के मंदिरों से भरा पड़ा है और इन मंदिरों की संख्या वर्तमान में भी बड़ी तेजी से बढ़ रही है तथा  इस्कॉन जैसे अंतर्राष्ट्रीय आंदोलन कृष्ण चेतना को अब सारे संसार में फैला रहे हैं।

आदि कवि वाल्मीकि ने रामकथा का सहारा लेकर रामायण की रचना की थी। इस कथा को महाकवि तुलसी ने अकबर के शासनकाल में रामचरित मानस का स्वरूप दिया। तुलसी के ‘राम’ एक अवतार होते हुए भी एक मर्यादा पुरुषोत्तम राजकुमार हैं, जो अपनी जीवन लीला से एक आदर्श स्थापित कर सबको यह समझा रहे हैं कि मानव जीवन जीने वालों में ‘मनुष्य का स्वरूप कैसा होना चाहिए।’

इस कथा के आधुनिक प्रवक्ता रामसुख दास जी महाराज और मुरारी बापू जब अपने श्रीमुख से इसका गायन और पारायण करते हैं तो लाखों श्रद्धालु भाव-विभोर होकर ईश्वर के दिव्य स्वरूप में अपने को आत्मसात करने का सुख अनुभव करते हैं। तुलसी की यह अमर वाणी उत्तर भारत के घर-घर में इस अमूल्य धरोहर को संरक्षित किए हुए है। गीता प्रैस गोरखपुर ने इन धर्म कथाओं को लोकप्रिय बनाया है। वर्तमान में गीत संगीत की नई विधाएं इस रामकथा को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनिवासी भारतीयों तक पहुंचा रही हैं।

राम कथा की भांति कृष्ण कथा भी एक ऐसी ही गाथा है जिसने एक ऐतिहासिक द्वारकाधीश को भारत के ‘जन मानस’ का सच्चा शासक बना दिया। श्री कृष्ण के विविध रूप हैं और माखन चोरी की बाल लीला से लेकर गोपिकाओं के जीवन में रचे बसे कृष्ण महाभारत के एक ऐसे नायक या सेनापति भी हैं जो गीता के उपदेश से भारतीय दर्शन के वेदांत को संसार के सामने प्रस्तुत कर रहे हैं।

सूर की अमर वाणी में मैया यशोदा का यह ‘लाडला नटखट’ कन्हैया भारतीय संस्कृति का एक जीवन्त प्रतीक है। महर्षि वेद व्यास ने महाभारत के माध्यम से इतिहास, दर्शन, साहित्य और धर्म की जिन ऊंचाइयों को चित्रित किया है, वहां आकर ये ‘अवतार पुरुष’ देवता और जन साधारण के आराध्य बन जाते हैं। ‘सीताराम’ के मंदिरों की भांति ‘राधा -कृष्ण’ के मंदिर भारत की एक महान सांस्कृतिक धरोहर हैं, जिनमें देश की स्थापत्य कला, मूर्तियों और चित्रों के माध्यम से जीवन का निर्देशन तथा संगीत की स्वर लहरियों में हमारी पूरी संस्कृति धड़कती रहती है।

यह सब आलौकिक और अतुलनीय है। लोकमान्य तिलक से लेकर महामना मालवीय और महात्मा गांधी जैसे महापुरुष इन्हीं अवतार पुरुषों से अपनी प्रेरणा लेते हैं। गीता का ज्ञान जो ‘निष्काम कर्म’ का दर्शन समझाता है, एक ऐसी ही निधि है जिसके पाने से यह संसार एक कुटुम्ब बन सकता है मनुष्य को अपने कर्तव्यों का आभास होता है और मनुष्य यदि चाहे तो वह अपने जीवन को सार्थक भी बना सकता है।

भारत की पवित्र नगरियों में राम कृष्ण के यह संदेश दिन-रात गुंजायमान होते रहते हैं। मथुरा, वृंदावन, वाराणसी, अयोध्या जहां भारत की आत्मा निवास करती है, वहां इन मंदिरों की संस्कृति में रंगे करोड़ों लोग अपने-अपने आराध्यों की शरण में ‘श्रद्धा और विश्वास का जीवन’ जी रहे हैं।

इन मंदिरों के जीर्णोद्धार की महत्ती आवश्यकता है। वर्तमान में इस्कॉन के संस्थापक स्व. श्री प्रभुपाद एक ऐसा ही अद्भुत आंदोलन चला गए हैं। वह 600 से अधिक ऐसे केंद्र स्थापित कर गए हैं, जहां हमारी प्राचीन संस्कृति आधुनिक भाषा बोलती है। गरीबों को मानवता का संदेश देकर वे करोड़ों लोगों को संसार भर में सुख, शांति और भाईचारे का प्रसाद बांट रहे हैं। जयपुर में भी इस्कॉन के नए मंदिर के साथ-साथ एक अत्यंत प्राचीन श्री गोविंद देव जी का ऐतिहासिक परिसर भी है। इसमें हाल ही में भक्तों की सुविधा के लिए एक ‘विशाल पंडाल’ निर्मित किया गया है। इसका उल्लेख विश्व र्कीतमान बनाने वाली घटना की गणना गिनीज वर्ल्ड बुक में शामिल किया गया है। वर्तमान महंत श्री अंजन कुमार और उनके सुपुत्र श्री मानस गोस्वामी इस अनूठी भगवत सेवा में अपना उल्लेखनीय योगदान दे रहे हैं।

—त्रिलोकी दास खंडेलवाल, जयपुर 


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