कन्या न होने पर ऐसे प्राप्त करें कन्यादान का पुण्य

Monday, Nov 23, 2015 - 11:17 AM (IST)

तुलसी भगवान विष्णु की पत्नी ''लक्ष्मी'' का प्रतीक भी है। सदाचारी आैर सुखी पारिवारिक जीवन बिताने की इच्छा रखने वाले लाेग तुलसी की पूजा करते हैं। तुलसी का विवाह प्रत्येक विवाह की तरह पूरी धूमधाम से भगवान के साथ रचाया जाता है। मान्यता है कि भगवान ने तुलसी काे अपनी पत्नी हाेने का वरदान दिया था। देवप्रबोधिनी एकादशी से लेकर पूर्णिमा तक यह उत्सव मनाया जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि जिन दम्पतियों के कन्या नहीं होती, वे जीवन में एक बार तुलसी विवाह करके कन्यादान का पुण्य प्राप्त कर सकते हैं।  

पुरातन कथा के अनुसार तुलसी दिव्य पुरूष ''शंखचूड़'' की निष्ठावान पत्नी वृन्दा थी। भगवान विष्णु ने छल से उसका सतित्व भंग किया था। अत: उसने भगवान काे पत्थर बन जाने का श्राप दे दिया। इस तरह भगवान शालीग्राम रूप में परिवर्तित हो गए। वृन्दा की भक्ति आैर सदाचारिता की लगन काे देखकर उसे वरदान देकर पूजनीय पाैधा ''तुलसी'' बना दिया आैर कहा कि वह सदा भगवान के मस्तक की शाेभा बनेगी आैर यह भी कि तुलसी के पत्ताें के बिना प्रत्येक चढ़ावा अधूरा रहेगा इसलिए हम तुलसी की पूजा करते हैं। 

बहुत से भारतीय घराें में आगे वाले, पीछे वाले अथवा बीच वाले आंगन में एक तुलसी-पीठ हाेता है जिसमें तुलसी का एक पाैधा लगा रहता है। वर्तमान समय के फ्लैटाें में भी बहुत से लाेग तुलसी का पाैधा एक गमले में लगाकर रखते हैं। गृह-स्वामिनी इसमें दीप जलाती हैं, इसे पानी देती हैं आैर इसकी पूजा करके प्रदक्षिणा करती हैं। तुलसी का डंठल, उसके पत्ते, बीज आैर इसके तल की मिट्टी भी पवित्र मानी जाती है। भगवान की पूजा में विशेषकर विष्णु भगवान आैर उनके अवताराें की पूजा में हमेशा तुलसी के पत्ते अर्पित किए जाते हैं। 

संस्कृत में कहा गया है-"तुलसी नास्ति अथैव तुलसी" 

अर्थात जाे बेजाेड़ है, अतुलनीय है वही तुलसी है। हिंदु तुलसी काे सबसे पवित्र पाैधा मानते हैं। वास्तव में यही एक एेसा पदार्थ है जाे पूजा में एक बार प्रयुक्त हाेने के पश्चात फिर से धाेकर प्रयाेग में लाया जा सकता है क्याेंकि इसकाे आत्मशुद्धि करने वाला माना जाता है।

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