जैन समाज के प्रेरणा स्रोत, त्याग और सेवा की प्रतिमूर्ति स्वामी श्री रूप चंद जी महाराज

Saturday, Mar 19, 2016 - 08:04 AM (IST)

20 मार्च को 178वीं दीक्षा जयंती 

श्री श्वेताम्बर स्थानक वासी जैन साधु-मार्गी परम्परा के सम्प्रदायों में एक वृहद सम्प्रदाय मेवाड़ केसरी जैनाचार्य श्री नाथू राम जी महाराज का राजपूताना (वर्तमान राजस्थान) में हुआ है।  
 
आपके दस शिष्यों में प्रथम व प्रमुख शिष्य जैनाचार्य श्री राय चंद जी महाराज मारवाड़ी के द्वितीय शिष्य जैनाचार्य श्री रति राम जी महाराज (जिनका समाधि स्थल, जरग चौक, मालेरकोटला में है) के प्रथम व सुयोग्य शिष्य कश्मीरी पंडित जैनाचार्य श्री नंद लाल जी महाराज के तीन विख्यात शिष्यों में क्रमश: प्रथम स्वामी श्री किशन चंद जी महाराज, द्वितीय स्वामी श्री रूप चंद जी महाराज कोटलावाले (वर्तमान मालेरकोटला) एवं तृतीय स्वामी श्री जौंकी राम जी महाराज जिन शासन के उज्ज्वल नक्षत्रों में विशिष्ट स्थान रखते हैं।
 
 
एक बार संयम और साधना के धनी, एकल बिहारी स्वामी श्री रूप चंद जी महाराज वि.स. 1896 (ई. सन् 1839) का चातुर्मास खौथा गांव में सम्पूर्ण करके ग्राम-ग्राम में श्रमण भगवान महावीर के सिद्धांतों तथा अमर उपदेशों का प्रचार-प्रसार करते हुए, नंगे पांव पैदल यात्रा करते हुए जींद (वर्तमान हरियाणा का एक भू-भाग) में पधारे। 
यहां पूज्य श्री राय चंद्र जी महाराज वृद्धावस्था के कारण अशक्त होकर स्थानापति हो गए थे। वह बहुत दिनों में ज्वर के कारण पीड़ित थे। स्वामी श्री रूप चंद जी महाराज ने आपकी सेवा भक्ति के यहां रहना स्वीकार कर लिया। 
 
 
दिन-रात सेवा में जुटने के पश्चात पूज्य श्री कुछ ही दिनों में स्वस्थ हो गए। इस दौरान स्वामी श्री रूप चंद जी महाराज ने आठ प्रहर में केवल एक बार ही भोजन किया। रात्रि को बहुत कम सोए और अपना सारा वक्त पूज्य श्री जी की सेवा में ही बिताया।
कैथल की ओर प्रस्थान करने से पूर्व स्वामी श्री रूप चंद जी ने देखा कि पूज्य श्री जी के पास वस्त्रों, कपड़ों का अभाव है। अत: उन्होंने अपने वस्त्र (चादर और चोल पट्टा) भेंट कर दिए। 
 
 
पूज्य श्री जी ने कहा ‘‘ऐ रूप! तुम्हें भी जरूरत है।’’ आप ने निवेदन किया, किन्तु आपका वस्त्राभाव दूर करने के उपरांत मुझे जरूरत हो सकती है, पहले नहीं।’’ 
 
 
फिर पूज्य श्री ने सिद्धांत नियम का आश्रय लेते हुए कहा, ‘‘आप अपने वस्त्र मुझे देकर स्वयं अपने लिए और ढूंढोगे। मुझे यह ठीक प्रतीत नहीं होता।’’ 
 
 
स्वामी श्री रूप चंद जी महाराज ने उनका यह संदेह दूर करते हुए पूज्य श्री जी से कहा, ‘‘पूज्य वर! मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि एक साल तक किसी से भी वस्त्र स्वीकार नहीं करूंगा और न ही अपनी जरूरतों के लिए किसी गृहस्थ के प्रति बोझ का कारण बनूंगा।’’ 
 
 
बूढ़े साधु ने नवयुवक साधु का यह त्याग देखा तो हैरान हो गए। उन्होंने आनंदमयी मधुर वाणी में कहा, ‘‘रूप! आपका यह त्याग आपके महान व अनुपम व्यक्तित्व को प्रकट कर रहा है।’’  
 
 
स्वामी श्री रूप चंद जी ने विनम्र भाव से निवेदन किया, ‘‘पूज्य श्री जी! आपकी दयादृष्टि और आशीर्वाद है।’’  सहर्ष आज्ञा पाकर युवा मुनि राज कैथल की ओर चल दिए। इस प्रकार के व्यक्तित्व वाले मुनिवर आज भी जैन समाज के प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं।
 
 —निखिलेश जैन, दर्शन कुमार जैन 
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