लंगर परम्परा के अगुआ गुरु अमरदास जी के प्रकाश उत्सव पर पढ़ें, कुछ खास

Monday, May 23, 2016 - 12:03 PM (IST)

धन्न श्री गुरु अमरदास जी का प्रकाश श्री अमृतसर साहिब के गांव बासरके में 5 मई 1479 ई (8 जेठ, बैसाख सुदी 14, सवत 1536) को तेजभान भल्ला क्षत्रिय जी के गृह में माता सुलक्खनी जी (लक्ष्मी जी) की कोख से हुआ। आप जी के माता-पिता जी बहुत ही धार्मिक और ऊंचे वैष्णव जीवन वाले थे। जिनसे प्रेरणा लेकर गुरु जी भी शुरू से ही धार्मिक रुचियों के मालिक थे। आप जी सिखों के तीसरे गुरु थे। आप जी दुनियावी उम्र में श्री गुरु नानक देव जी से लगभग 10 साल छोटे थे। वैसे गुरुगद्दी पर बैठने के समय भी आप जी की आयु सबसे बड़ी थी और सबसे लंबी आयु भी आप जी ने ही भोगी।  

 

गुरु अमरदास जी ने कई क्रांतिकारी परिवर्तन किए। इन्होंने सबसे महान काम संगत-पंगत का किया। गोइंदवाल साहिब में यह बात प्रसिद्ध थी कि यदि गुरु जी के दर्शन करने के लिए किसी ने जाना है तो पहले ''पंगत'' में बैठ कर लंगर छकना पड़ेगा। ''पहले पंगत पाछे संगत’ की प्रथा तीसरे सत्गुरु जी ने ही शुरू की थी। अपने पिता जी की तरह ही आप जी हर साल गंगा जी के दर्शनों के लिए जाया करते थे। 

 

24 साल की आयु में आप जी की शादी सणखतरे गांव में श्री देवी चंद बहल क्षत्रिय की बेटी राम कौर (मनशा देवी जी) के साथ हो गई थी। आप जी के दो पुत्र बाबा मोहन जी और बाबा मोहरी जी और दो बेटियां बीबी दानी जी और बीबी भानी जी थे। आप जी 20 साल लगातार गंगा जी के दर्शनों के लिए जाते रहे। जब 20वीं बार यात्रा से वापस लौट रहे थे तो एक साधु ने आप के गुरु जी बारे पूछा। आप ने कहा कि अभी तक मैंने कोई भी गुरु धारण नहीं किया। 

 

उस साधु ने कहा कि जब तक मानव किसी गुरु की शरण में नहीं जाता तब तक उसे आत्मिक सुख मिल ही नहीं सकता। आप जी यह सुन कर बहुत बेचैन हो गए। एक दिन आप जब सुबह उठे तो आप के भाई के बेटे राम जी मल्ल की पत्नी बीबी अमरो श्री गुरु नानक देव जी के शब्द

 

‘‘करणी कागदु मनु मसवाणी बुरा भला दुइ लेख पए।’’

 

का गायन कर रही थीं। बहुत ही मीठी आवाज में यह शब्द जब आप के कानों में पड़़ा तो आप जी बीबी अमरो जी के पास जाकर खड़े हो गए।आप जी ने पूछा कि यह किस की वाणी है तो बीबी अमरो जी ने कहा कि यह श्री गुरु नानक देव जी की वाणी है। और उनके स्थान पर आजकल गुरु अंगद देव जी विराजमान हैं जो कि मेरे पिता जी हैं। आप जी ने कहा कि हमें भी ऐसे गुरु जी के दर्शन करवाओ। आप जी कुछ दिन बाद ही बीबी अमरो जी के साथ खडूर साहिब को चले गए तथा गुरु अंगद देव जी के दर्शन किए और सदा ही गुरु जी के होकर रह गए तथा वहीं रह कर गुरु घर की सेवा करने लगे। लंगर में बर्तन साफ करने, संगत के लिए जल का प्रबंध करना और ब्यास नदी से गुरु जी के स्नान के लिए रोजाना गागर भर कर लाना आप जी की नित्य क्रिया में शामिल हो गया। आप जी की अपार सेवा और आप जी को ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति होने के कारण गुरु अंगद देव जी ने आपको 29 मार्च 1552 ईस्वी को गुरुगद्दी सौंप दी।

 

आप जी ने गुरु बनने के बाद कई क्रांतिकारी काम किए। गोइंदवाल नाम का नगर बसाया और जनता की पानी की कमी दूर करने के लिए वहां एक बावड़ी बनाई। धार्मिक और आत्मिक शिक्षा के साथ-साथ आप ने सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के लिए भी अनेक प्रयत्न किए। आप ने सती प्रथा का डट कर विरोध किया। महिलाओं को पर्दे की परंपरा से मुक्ति दिलाई। विधवा विवाह जो कि उस समय पाप माना जाता था, उस कुरीति के विरुद्ध डट कर आवाज उठाई और विधवा को अपनी मर्जी से दोबारा विवाह करवाने की छूट दी। 

 

छूत-छात और जाति-पाति के विरुद्ध आप जी ने आवाज बुलंद की और सभी को एक पिता परमात्मा की संतान बताया। बादशाह अकबर और हरीपुर के राजा को भी गुरु जी के दर्शन करने से पूर्व पंगत में सभी के साथ बराबर बैठ कर लंगर छकना पड़ा। गुरु जी का लंगर का प्रबंध इतना बढिय़ा और उसकी क्वालिटी इतनी बढिय़ा थी कि बादशाह अकबर भी तारीफ किए बिना न रह सका। गुरु जी ने आपने दोनों पुत्रों बाबा मोहन जी और बाबा मोहरी जी को सिख धर्म का प्रमुख बनने के अयोग्य समझा और भाई जेठा जी को रामदास नाम देकर उनको चौथा गुरु स्थापित किया। गुरु जी 1 सितबर 1574 ईस्वी (2 आश्विन सवत 1631) को गुरु रामदास जी को गुरु स्थापित करके ज्योति जोत समा गए।

 

 —गुरप्रीत सिंह नियामियां

Advertising