गणेश चतुर्थी: यह है संपूर्ण पूजन विधि और शुभ मुहूर्त

Wednesday, Sep 16, 2015 - 09:46 AM (IST)

भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी गणेश जी के प्रादुर्भाव की तिथि संकट चतुर्थी कहलाती है परंतु महीने की हर चौथ पर भक्त गणपति की आराधना करते हैं। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को श्री गणेश जी का जन्मोत्सव मनाया जाता है। गणपति जी का जन्म काल दोपहर माना गया है। गणेशोत्सव भाद्रपद की चतुर्थी से लेकर चतुर्दशी तक 10 दिन चलता है। इस साल यह अवधि 17 से 27 सितंबर तक रहेगी। आज के दिन सिद्धि विनायक व्रत रखा जाता है। इसे कलंक चौथ या पत्थर चौथ भी कहा जाता है।

पूजा मुहूर्त
शुभ चौघडिय़ा- प्रात: 6.30 से 8 बजे तक
चर चौघडिय़ा- 11 से 12.30 तक
पूजा समय- दोपहर 12 से 2.45 तक 
सायं- 5.16 से 6.37 तक
भद्रा काल- प्रात : 9.11 से रात्रि 10.20 तक रहेगा परंतु गणपति जी का जन्म हस्त नक्षत्र भद्राकाल में होने से यह गणेश जयंती पर मान्य नहीं होता।
 
कैसे करें पूजा ?
पूजन से पूर्व शुद्ध होकर आसन पर बैठें।  एक ओर पुष्प, धूप, कपूर, रौली, मौली, लाल चंदन, दूर्वा , मोदक आदि रख लें। एक पटड़े पर साफ पीला कपड़ा बिछाएं। उस पर गणेश जी की प्रतिमा जो मिट्टी से लेकर सोने तक किसी भी धातु में बनी हो, स्थापित करें। गणेश जी का प्रिय भोग मोदक व लडडू हैं।
 
मूर्त पर सिंदूर लगाएं, दूर्वा अर्थात हरी घास चढ़ाएं व षोडशोपचार करें। धूप, दीप, नैवेद्य, पान का पत्ता, लाल वस्त्र तथा पुष्पादि अर्पित करें। इसके बाद मीठे मालपुओं तथा 11 या 21 लड्डुओं का भोग लगाना चाहिए। 
 
इस पूजा में संपूर्ण शिव परिवार- शिव, गौरी, नंदी तथा कार्तिकेय सहित सभी की षोडषोपचार विधि से पूजा करनी चाहिए। पूजा के उपरांत सभी आवाहित देवी-देवताओं का विधि-विधानानुसार विसर्जन करना चाहिए परंतु लक्ष्मी जी व गणेश जी का नहीं करना चाहिए। गणेश प्रतिमा का विसर्जन करने के बाद उन्हें अपने यहां लक्ष्मी जी के साथ ही रहने का आमंत्रण करें। यदि कोई कर्मकांडी यह पूजा सम्पन्न करवा रहा है तो उसका आशीष प्राप्त करें। सामान्यत: तुलसी के पत्ते छोड़कर सभी पत्र- पुष्प गणेश प्रतिमा पर चढ़ाए जा सकते हैं।
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