नागों के पूजन का प्रचलन कैसे हुआ प्रारंभ पढ़ें पौराणिक कथा

Wednesday, Aug 19, 2015 - 08:44 AM (IST)

नाग सदैव पूजनीय हैं। वे आदिकाल से अपने भक्तों एवं मानव जाति पर कृपा करते रहे हैं। दधीचि ऋषि की अस्थियों से बने अस्त्र से इंद्र के हाथों मारा गया वृतासुर भी नागराज ही था। श्री कृष्ण व कालिया नाग की कथा तो हम बचपन से ही सुनते आए हैं। बाबा बालक नाथ जी के साथ भी सर्प रहते थे। भगवान बुद्ध तथा जैन मुनि पाश्र्वनाथ के रक्षक नाग देवता ही माने जाते हैं। कश्मीर के जाने-माने संस्कृत कवि कल्हण ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘राजतरंगिणी’ में कश्मीर की संपूर्ण भूमि को नागों का स्थान माना है। वहां के प्रसिद्ध नगर अनंतनाग का नाम इसका ऐतिहासिक प्रमाण है। माता मनसा नागों की देवी है। नागराज वासुकी, शेषनाग, शंखपाल, पिंगल, पुंडरिक, तक्षक आदि नामों से नागों की अनेक कथाएं हैं।

अथर्ववेद में पांच प्रकार के नागों का उल्लेख है जो दिशाओं के आधार पर वायुमंडल के रक्षक बताए जाते हैं। ये नाग हैं शिवज, खज, पृदाक, ग्रीव और विरिचराजी। कथाओं के अनुसार दक्षप्रजापति की पुत्री तथा कश्यप ऋषि की पत्नी कद्रू नाग माता हैं। कद्रू को सुरसा के नाम से भी जाना जाता है। गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस के अनुसार जब हनुमान जी समुद्र लांघ रहे थे तो देवताओं ने उनकी शक्ति को परखने के लिए नाग माता सुरसा को ही भेजा था जिसने अपना विराट मुंह फैलाकर हनुमान जी का रास्ता रोक लिया था। 

प्राचीन दंत कथाओं में अनेक कथाएं इस उत्सव से जुड़ी हैं। एक राज्य में एक किसान परिवार रहता था। उसके 2 पुत्र व एक पुत्री थी। एक दिन हल चलाते समय सांप के तीन बच्चे कुचल कर मर गए। सांप के बच्चों की मां नागिन पहले तो विलाप करती रही फिर अपने बच्चों की हत्या करने वाले से प्रतिशोध लेने निकल पड़ी। इस प्रजाति में बदले की भावना अति प्रबल होती है। 

एक रात्रि अवसर मिलने पर नागिन ने किसान की पत्नी एवं उसके दोनों पुत्रों को डंस लिया। नागिन का प्रतिशोध अभी शांत नहीं हुआ था। अगले दिन वह किसान की पुत्री को डंसने के लिए पहुंची। किसान की पुत्री ने उसका आतिथ्य-सत्कार किया। उसके आगे दूध से भरा कटोरा रखकर क्षमायाचना करने लगी। नागिन ने प्रसन्न होकर उसकी मां एवं भाइयों को पुन: जीवित कर दिया। उस दिन नाग पंचमी थी। तभी से नागों के प्रकोप से बचने के लिए इस दिन नागों के पूजन का प्रचलन प्रारंभ हुआ। 

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