जानिए, क्या है महिलाओं का घरेलू हिंसा से बचाव कानून

punjabkesari.in Friday, Sep 18, 2015 - 06:26 PM (IST)

घरेलू हिंसा अधिनियम का निर्माण 2005 में किया गया और 26 अक्टूबर 2006 से इसे लागू किया गया। इसका मकसद घरेलू रिश्तों में हिंसा झेल रहीं महिलाओं को तत्काल व आपातकालीन राहत पहुंचाना है। यह कानून महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाएगा क्योंकि केवल भारत में ही लगभग 70 प्रतिशत महिलाएँ किसी न किसी रूप में इसकी शिकार हैं। 

हमारे इस समाज में महिलाओं के लिए न मायके में कोई जगह है और नही ससुराल में। यही कारण है कि महिलाएं सर छिपाने के लिए छत और पैर टिकाने के लिए जमीन के एवज में बहुत से अनचाहे समझौते करती रहती हैं। यह भारत में पहला ऐसा कानून है जो महिलाओं को अपने घर में रहने का अधिकार देता है। घरेलू हिंसा विरोधी कानून के तहत पत्नी या फिर बिना विवाह किसी पुरुष के साथ रह रही महिला मारपीट, यौन शोषण, आर्थिक शोषण या फिर अपमानजनक भाषा के इस्तेमाल की परिस्थिति में कार्रवाई कर सकेगी।

यह कानून घरेलू हिंसा को रोकने के लिए केन्द्र व राज्य सरकार को जबाबदेह व जिम्मेदार ठहराता है। इस कानून के अनुसार महिला के साथ हुई घरेलू हिंसा के साक्ष्य प्रमाणित किया जाना जरूरी नहीं हैं। महिला के द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों को ही आधार सुनिश्चित माना जाएगा क्योंकि अदालत का मानना है कि घर के अन्दर हिंसा के साक्ष्य मिलना मुश्किल है। 

इस कानून के मुताबिक लडक़ा न पैदा होने के लिए महिला को ताने देना या फिर गाली देना या अपमान करना, उसकी मर्जी के बिना उससे शारीरिक संबंध बनाना या लडक़ी के न चाहने के बावजूद उसे शादी के लिए बाध्य करना  वाले पुरुष भी इस कानून के दायरे में आ जाएंगे। पत्नी को नौकरी छोडऩे पर मजबूर करना या फिर नौकरी करने से रोकना भी इस कानून के दायरे में आता है। इसके तहत दहेज की मांग की परिस्थिति में महिला या उसके रिश्तेदार भी कार्रवाई कर पाएंगे। इसके अंतर्गत पत्नी को पति के मकान या फ्लैट में रहने का हक होगा भले ही यह मकान या फ्लैट उनके नाम पर हो या नहीं।

घरेलू हिंसा से पीडि़त कोई भी महिला अदालत में जज के समक्ष स्वयं अथवा वकील, सेवा प्रदान करने वाली संस्था या संरक्षण अधिकारी की मदद से अपनी सुरक्षा के लिए बचावकारी आदेश ले सकती है। पीड़ित महिला के अलावा कोई भी पड़ोसी, परिवार का सदस्य, संस्थाएं या फिर खुद भी महिला की सहमति से अपने क्षेत्र के न्यायिक मजिस्ट्रेट की कोर्ट में शिकायत दर्ज कराकर बचावकारी आदेश हासिल किया जा सकता है। इस कानून का उल्लंघन होने की स्थिति में जेल के साथ-साथ जुर्माना भी हो सकता है।

लोगों में आम धारणा है कि मामला अदालत में जाने के बाद महीनों लटका रहता है, लेकिन अब नए कानून में मामला निपटाने की समय सीमा तय कर दी गई है। अब मामले का फैसला मैजिस्ट्रेट को साठ दिन के भीतर करना होगा।


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