जंगली जानवरों से लोगों की सुरक्षा के सरकार के पास नहीं इंतजाम

punjabkesari.in Sunday, Jan 07, 2018 - 03:47 PM (IST)

रायपुररानी, (संजय) : शिवालिक पहाडिय़ों की तलहटी पर बसे रायपुररानी-बरवाला वन क्षेत्र में अक्सर जंगलों से रिहायशी क्षेत्रों में जंगली जानवरों की कई बार दस्तक हो चुकी है, जो लोगों की जान पर भी भारी पड़ा है। सरकार की कमियों के चलते वाइल्ड लाइफ डिपार्टमैंट स्टॉफ की कमी से जूझ रहा है। ऐसे में जंगलों से रिहायशी क्षेत्र में जानवरों की दस्तक पर उम्मीद करना बेमानी होगा कि वाइल्ड लाइफ विभाग तुंरत अपने इंतजामों से जानवर पर काबू पा लेगा। विभाग के पास प्रबंधों की इतनी कमियां है, जानवर को पकडऩे की परेशानी से ज्यादा उसकी खुद की परेशानी है, जो हल होने पर ही लोगों की सुरक्षा के पुख्ता प्रबंधों की उम्मीद की जा सकती है। वर्ष 2013-14 में बढ़ौना गांव में तेंदुआ के प्रहार से बढ़ौना-टिब्बीमाजरा गांव के करीब 4 लोग जख्मी हो गए थे तो वहीं वर्ष 2010-11 में रिहोड़ में शिकारी के जाल में एक तेंदुआ फंसा था, जिसकी मौत हो गई थी और  नवम्बर-2017 में नारायाणगढ़ के फिरोजपुर गांव से पंचकूला वाइल्ड लाइफ ने एक तेंदुआ काबू किया है। इसके इलावा जिले में तेंदुए का आतंक कई बार देखा जा चुका है।


वाइल्ड लाइफ विभाग के पास सिर्फ 3 गार्ड, कैसे करेंगे जानवरों को काबू?
वाइल्ड लाइफ विभाग के पास जंगली जानवरों की रिहायशी क्षेत्र में आने की शिकायतें बहुत ज्यादा आती हैं। हैरानी की बात है कि सिर्फ 3 गार्ड है, वो भी अकेले मोरनी में तैनात है, रायपुररानी, बरवाला और अन्य क्षेत्र के लिए एक भी गार्ड नहीं है। जिसके चलते वाइल्ड लाइफ का इंस्पैक्टर ही शिकायतों के निवारण में जूझता रहता है। सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वो कम से कम लोगों की सुरक्षा को ध्यान में रखकर वाइल्ड लाइफ डिपार्टमैंट में स्टाफ की कमी को पूरा करें। इसके अलावा नील गायों से तो लोग फसलों के बचाव को लेकर खुद ही जूझते रहते है। वर्ष 2013 में बढ़ौना गांव में हरपाल ने खेत में तेंदुआ देखा तो अन्य ग्रामीण आए तो तेंदुए ने हमला बोल दिया था, तब लोगों की कॉल पर वाइल्ड लाइफ बहुत देर बार आया था, जिसके बाद तेंदुआ टीम के हाथ नहीं लगा। ऐसे में लोगों को विभाग भी जागरूक नहीं करता कि ऐसी स्थिति में वो कैसे उनसे संपर्क करें। 

गन से अंबाला तक क्षेत्र करता है वाइल्ड लाइफ कवर?
विभागीय सूत्रों की मानें तो स्टाफ की कमी के चलते उन्हें लोगों के गुस्से का भी शिकार होना पड़ता है और जानवर को बेहोश करने के लिए जो टै्रंकुलाइजर गन से इंजैक्शन फायर किया जाता है, वो गन है और चलाने वाला भी है। हैरानी की बात है कि पंचकूला की वो गन अंबाला तक क्षेत्र को कवर करती है, क्योंकि अंबाला वाइल्ड लाइफ विभाग के पास ट्रैंकुलाइजर गन नहीं है। ऐसे में पंचकूला से जाते हंै और फिरोजपुर में तेंदुए  को काबू करने के लिए वाइल्ड लाइफ टीम पंचकूला से गई थी, ऐसी सूरत में विभाग के स्टॉफ की कमी कही न कहीं वाइल्ड लाइफ विभाग के लिए सिरदर्द बनी हुई है।


रिहायशी क्षेत्र में जंगली जानवर की सूचना मिलने पर विभाग तुरंत मौके पर पहुंच जाता है। यह बात सही है कि स्टाफ की कमी है। मोरनी में 3 गार्ड है, रायपुररानी, पंचकूला, पिंजौर कालका, बरवाला के क्षेत्र के लिए कोई गार्ड नहीं है। हमारे पास ट्रैन्कुलाइजर गन है और चलाने वाला भी है और इसके लिए हमें अबाला तक जाना पड़ता है और हम नारायाणगढ़ से तेंदुए को काबू कर के लाए थे। विभाग को शिकायतें आती हैं और उनका अपने स्तर पर निवारण भी किया जाता है। 
-शिव सिंह, डी.एफ.ओ., वाइल्ड लाइफ डिपार्टमैंट पंचकूला। 


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