नेहरु जी कहते थे मिनिस्टरों को तो अजायबघर में रखना चाहिए

punjabkesari.in Sunday, Jan 21, 2018 - 01:04 PM (IST)

इंग्लैंड के जार्ज तृतीय का कहना था, ‘राजनीति तो गुंडों का पेशा है, शरीफ आदमियों का नहीं ।’ शायद यह बात कुछ बढ़ा-चढ़कर काही गयी थी, फिर भी यह तो सच है कि हम सब लोग, जिन्होंने इस कीचड़ में हाथ सान लिए हैं, कभी-कभी इससे तंग आ जाते हैं और कभी-कभी तो बिलकुल नफरत और खीज होने लगती है । कभी-कभी हमें दूसरे हमपेशा लोग दिखाई पड़ते हैं, जिन पर उस अंगरेज बादशाह कि बात पूरी-पूरी घटती है । ऐसे लोग हमारे पक्ष के भी होते हैं और विपक्ष के भी-हालांकि विपक्ष के लोगों पर फैसला देने के मामले में सभी ज्यादा बेरहम होते हैं लेकिन लोग-जैसे एकाएक नेता और राजनीतिज्ञ बन जाते हैं, वह है-बड़ी दिलचस्प बात । डॉक्टर बनने के लिए एक आदमी आखिर इतने दिनों तक चिरफाड और तमाम किस्म कि बातें सीखता है, तब वह इलाज के लिए अपना दवाखाना खोलकर बैठता है । बिना किसी किस्म कि ट्रेनिंग के किसी भी पेशे में आदमी कदम नहीं रखता, चाहे वह इंजीनियरी हो, साईन्स हो, तिजारत हो । यहां तक कि बिजलीवाले का ही पेशा क्यों न हो। 

 

अगर किसी आदमी ने इंजीनियर कि ट्रेनिंग नही पायी है तो उससे आप एक पल बनवाकर देख लीजिये । हर ऐरा-गैरा राजनीति में लेकिन राजनीति के पेसे में नेता बनने के लिए किसी भी ट्रेनिंग कि कोई जरूरत नहीं । हर ऐरा-गैरा अपने देशवासियों पर शासन करने के लिए समर्थ समझा जाता है। प्रोफेसर और उसी किस्म के बड़े-बड़े लोग राजनीति पर छोटे-मोटे पोथे लिखते रहते हैं। सामाजिक समस्याएं जिनके पीछे हमारा समाज दिनों-दिन बदतर होता जा रहा है, उन पर लिखते रहे हैं और उनके समाधान के लिए चीख-पुकार मचाते रहे हैं । वे बिना किसी ट्रेनिंग के आदमी किसी भी पेशे में प्रवेश नहीं प सकता लेकिन राजनीति में बिना किसी प्रशिक्षण तथा योग्यता के अनपढ़ व्यक्ति भी न केवल राजनीति करता है बल्कि मिनिस्टर भी बन जाता है । कभी नेहरुजी ने कहा भी था कि मिनिस्टरों को तो अजायबघर में रखना चाहिए । प्रस्तुत हैं – जवाहर लाल नेहरू के राजनीतिज्ञों के बारे में विचारों के कुछ प्रमुख अंश -मानवशास्त्र, समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र के नियमों कि उधेड़बुन करते रहे, मनोविज्ञान कि परतें उधेड़ कर गहरे-से- गहरे में उतरने का प्रयास करते रहे और हजारों ऐसी बातों में माथापच्ची करते रहें, जिसकी एक नेता को बहुत बड़ी जरूरत है लेकिन हमारे नेताओं को इन सब बेकार कि बातों के लिए वक्त कहां है? खुदा ने उन्हें जो थोड़ी- बहुत अक्ल बख्शी है, उस पर उन्हें पूरा भरोसा है कि वह हुकूमत कि कश्ती को साहिल तक ठेल ही ले जाएंगे। ‘मिनिस्टरों’ को अजायबघरों में रखा जाए मुझे तो इस बात पर हैरत होती है, इतनी बार हादसे होने पर भी न तो इन राजनीतिक नेताओं को ही अपनी असलियत का ज्ञान हुआ है और न जनता ही ने उनकी असलियत समझी है । मुझे पूरा यकीन है कि भविष में ऐतिहासिक अवशेषों का एक बड़ा-सा अजायबघर कायम किया जाएगा । 

 

इस अजायबघर में हमारे बहुत-से वर्तमान मिनिस्टरों कि मूर्तियां राखी जाएंगी ताकि हमारी आनेवाली पीढ़ीयां यह जान सकें कि हिंदुस्तान में भी कैसे-कैसे जीव-जन्तु मिनिस्टरी चलाते थे । उस आगे आनेवाले स्वर्ण-युग में बच्चों के अध्यापक इन लकदक मूर्तियों को दिखलाकर उस असभ्य और जंगली युग कि बातें बताएंगे, जब ऐसे-ऐसे लोगों के हाथ में सरकार थी और वे इनसानों पर हुकूमत करते थे । अध्यापक बताएगा कि उस जमाने में योग्यता, प्रतिभा, ज्ञान या जनता को मुग्ध करनेवाले गुणों के आधार पर किसी को शासन नहीं सौंपा जाता था बल्कि अज्ञान और मूर्खता ही एकमात्र कसौटी थी और जिस व्यक्ति में सबसे गहरा अज्ञान होता था, वही शासन के सबसे अधिक योग्य समझा जाता था । बुद्धि से बिलकुल शून्य बच्चों को बताया जाएगा कि सच्चाई और सिद्धांत पर दृढ़ रहना ऐसे अवगुण थे, जिनसे ये मंत्री-पद के भूखे महापुरुष हमेशा दूर रहते थे और हमेशा उसी के सिर पर सेहरा बंधता था, जो सच्चाई का पूरी तरह गला घोंट सके और जिस सिद्धांत पर खड़ा है अच्छी तरह, उसकी पीठ में चुरा भौंक सके ।और इस अजायबघर में भारत के हर सूबे के नुमाइंदे रहेंगे लेकिन सबसे बड़ा खास हिस्सा यू.पी. (उत्तर-प्रदेश) का होगा । 

 

यू.पी. के नुमाइंदों में भी सबसे आगे होंगे, हमारे बांके नवाब, जो ढीलाढाला कोट, ढीला पायजामा पहनकर बड़ी चुस्ती से स्थानीय शासन चलाते हैं । खूबसूरत कालीनों और हरे-भरे घास के लानों पर एक शहजादे की ठसक से दावतों के बाद दावतों पर इनायत फरमाने की तकलीफ उठाते हैं । गीदड़ों से शासित जनता समझदारी और अक्ल के ऊबड़-खाबड़ और तकलीफदेह रास्ते से उनका कोई सरोकार नहीं । किताबों से उन्हें कोई खास दिलचस्पी नहीं और रेलवे स्टेशनों पर बिकनेवाले सस्ते किस्म के बाजारू उपन्यासों के अलावा और कुछ पढ़ते हुए किसी ने उन्हें कभी देखा नहीं होगा । उनका बड़े-से- बड़ा दोस्त उन पर यह इल्जाम नहीं लगा सकता कि उन्होने कभी कोई भी पते कि बात कि है या कभी उनकी किसी भी बात से अक्लमंदी कि कोई झलक मिली है । इन मिनिस्टरों ने कभी कोई काम कि चीज पढ़कर अपने विचारों कि मौलिकता पर कभी आंच नहीं आने दी है और अपने प्रांत के बारे में उनकी उतनी ही गहरी जानकारी है, जितनी किसी कुली या मजदूर को मंगल-गृह के बारे में होगी । और भी बहुत-से लोग इस अजायबघर में रखे जाएंगे और आनेवाले युग का विद्यार्थी आश्चर्य करेगा कि जिन राजनीतिज्ञों और मिनिस्टरों को बुद्धि कि सबसे ज्यादा जरूरत थी, वे भी उस दृष्टि से बिलकुल शून्य थे । उसे ऐसी जनता पर भी आश्चर्य होगा, जो शेर कि खाल ओढ़नेवाले इन गीदड़ों से शासित होती रही ।

 

राजशेखर व्यास


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