बलात्कार की घटनाओं प्रति सख्त रुख अपनाने की जरूरत

Tuesday, Jan 23, 2018 - 03:43 AM (IST)

हरियाणा में 9 जनवरी को 15 वर्षीय बालिका अपने घर से ट्यूशन के लिए जाती है। 4 दिन बाद उसका क्षत-विक्षत नग्न शव मिलता है। यह बताता है कि उसके साथ बलात्कार हुआ है, उसके चेहरे, होंठों, छाती पर 19 घाव मिलते हैं। उसका यकृत और फेफड़े फटे हुए होते हैं तथा उसके गुप्तांगों में कोई वस्तु डाली होती है। यह निर्भया 2 है। 

उसके बाद एक 11 वर्षीय बालिका का अपहरण किया जाता है और उसके साथ छेड़छाड़ कर उसे फांसी पर लटकाया जाता है। फिर एक 50 वर्षीय व्यक्ति और 4 अन्य लोगों द्वारा एक 10 वर्षीय बालिका के साथ नृशंस बलात्कार किया जाता है और उसके बाद एक 22 वर्षीय युवती के साथ दो घंटे तक एक चलती कार में जबरदस्ती की जाती है। ऐसी जघन्य घटनाओं की सूची अंतहीन है। और यदि आप समझते हैं कि इन घटनाओं पर प्रशासन तुरंत कार्रवाई करेगा और मुख्यमंत्री खट्टर इन जघन्य अपराधों पर जनता के गुस्से को शांत करने तथा दोषियों को सजा दिलाने के लिए कदम उठाएंगे तो आप गलतफहमी में हैं। 

निर्भया कांड के 6 वर्ष बाद भी कुछ नहीं बदला है। हर दिन के समाचारपत्रों में 2 वर्ष, 4 वर्ष, 8 वर्ष की बालिकाओं के साथ बलात्कार की खबरें सुर्खियों में रहती हैं। इन बालिकाओं को पुलिस द्वारा भी धमकाया जाता है और उनके परिवार को चुप रहने के लिए बाध्य किया जाता है। हमारे नेताओं, पुलिस कर्मियों और वकीलों के बारे में कुछ नहीं कहा जाए तो अच्छा है। देश में प्रत्येक मिनट में बलात्कार की 4 घटनाएं होती हैं। एक नेता के अनुसार ‘‘यदि किसी लड़की ने ठीक कपड़े पहने हों तो लड़का उसकी ओर गलत नजरों से नहीं देखता। यदि वे स्वतंत्रता चाहती हैं तो वे नंगी क्यों नहीं घूमती हैं? स्वतंत्रता सीमित होनी चाहिए। ये छोटे कपड़े पाश्चात्य प्रभाव के परिचायक हैं। हमारे देश की परम्परा में लड़कियां शालीन कपड़े पहनती हैं। शादी से पूर्व सैक्स एक दाग है और यह तब होता है जब लड़के-लड़कियों का दिमाग ठीक नहीं रहता है।’’ 

प्रश्न उठता है कि बलात्कार की घटनाओं पर हमारे राजनेताओं को आक्रोश क्यों नहीं होता? हमारा भारत कहां जा रहा है और हमारे नेता लगता है इसे नरक की ओर ले जा रहे हैं। सबसे चिंता की बात यह है कि इन जघन्य अपराधों से भी हमारे नेताओं की चेतना नहीं जागती है। क्या वे इसे एक दु:स्वप्न कहेंगे? आज हमारा समाज ऐसा बन गया है जो समझता है कि बलात्कार के कोई दुष्परिणाम नहीं होते हैं। यौन ङ्क्षहसा का कारण असंतुलित सैक्स अनुपात को क्यों मानते हैं? यहां पर महिलाओं को सांस्कृतिक सम्मान क्यों नहीं दिया जाता है। प्रति वर्ष बलात्कार की 37 हजार घटनाओं को आहत करने वाली घटनाएं क्यों नहीं माना जाता है? महिलाओं के लिए असुरक्षित 121 देशों की सूची में भारत का स्थान 85वां है और यहां पर प्रत्येक 10 हजार महिलाओं में से 6.26 महिलाएं बलात्कार की शिकार होती हैं। 

पिछले वर्ष के पुलिस रिकार्ड के अनुसार 2014 की तुलना में बलात्कार की घटनाओं में 2.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और इनमें से 54.7 प्रतिशत महिलाएं 18 से 30 वर्ष की थीं। महिलाओं के अपहरण की घटनाओं में 17 प्रतिशत की वृद्धि हुई। उत्पीडऩ की घटनाओं में 5.4 प्रतिशत, छेड़छाड़ की घटनाओं में 5.8 प्रतिशत और महिलाओं की खरीद-फरोख्त की घटनाओं में 122 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। पिछले दशक में महिलाओं के विरुद्ध 20 लाख से अधिक अपराध हुए, अर्थात प्रत्येक घंटे में लगभग 6 अपराध हुए। छेड़छाड़ के 470565 मामले, अपहरण के 315074 मामले, बलात्कार के 243051 मामले, दहेज मत्यु के 80833 मामले प्रकाश में आए और महिलाओं के उत्पीडऩ की घटनाओं में 66 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 

इन अपराधों में वृद्धि का एक कारण असंतुलित सैक्स अनुपात बताया जाता है। समाजशास्त्री इसे लावारिस शाखाओं की स्थिति बताते हैं जहां पर लड़की की बजाय लड़के को प्राथमिकता दी जाती है और जिसके चलते बालिका भ्रूण हत्या बढ़ती जा रही है। हरियाणा में प्रत्येक 1000 लड़कों पर 914 लड़कियां हैं। महिलाओं के साथ हिंसा की घटनाओं पर कोई पश्चाताप नहीं किया जाता है और पुरुषों की मानसिकता ऐसी बन गई है कि यदि वे किसी महिला के साथ जबरदस्ती करते हैं तो उसे उनकी मर्दानगी माना जाता है। हमारा समाज यह सुनिश्चित करता है कि यदि पुरुष सीमा का उल्लंघन करता है तो समाज में उसे बचाने वाले और महिलाओं को बदनाम करने वाले मिल जाएं। हमारा समाज पुरुष प्रधान है और इसलिए यहां महिलाएं और लड़कियां असुरक्षित वातावरण में रह रही हैं जहां पर उन्हें सैक्स की वस्तु और पुरुषों की संतुष्टि की वस्तु माना जाता है। वे हर स्तर पर संघर्ष करती हैं। शायद इसका संबंध हमारे पितृ सत्तात्मक समाज और बहु विवाह प्रथा से है। 

निर्भया कांड के बाद भी महिला संरक्षण कानूनों का कार्यान्वयन अच्छा नहीं रहा है। 2016 में बलात्कार के 35 हजार मामले सामने आए किन्तु केवल सात हजार मामलों में सजा दी जा सकी। महिलाओं के विरुद्ध यौन हमले और उत्पीडऩ के लिए कोई कानून नहीं है और केवल गुप्तांग में ङ्क्षलग प्रवेश को ही बलात्कार माना जाता है। हैरानी की बात यह है कि राजस्थान के एक अस्पताल में अभी भी महिलाओं के साथ बलात्कार की जांच के लिए टू फिंगर टैस्ट किया जाता है जबकि इस पर 2013 में प्रतिबंध लगा दिया गया था। जिन लोगों के विरुद्ध महिलाओं के साथ छेडख़ानी का मामला दर्ज किया जाता है उन पर भी महिलाओं के अपमान और उनके शील भंग या उनकी निजता के अतिक्रमण के ऐसे मामले दर्ज किए जाते हैं जिनमें अधिकतम सजा 1 वर्ष का कारावास और जुर्माना है। 2015 के कानून के अनुसार बलात्कार की शिकार महिला को 3 लाख का मुआवजा देने का प्रावधान है किन्तु बलात्कार की शिकार जीवित 50 महिलाओं में से केवल तीन को ही यह मुआवजा मिला है। 

हमारे नेताओं की कथनी और करनी अलग-अलग होती है। बलात्कार की हर घटना संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदत्त समान अधिकारों का मजाक उड़ाती है और यह उन लोगों पर एक बदनुमा दाग है जिन्हें संविधान की रक्षा का दायित्व दिया गया है। हमारे नेतागण, नौकरशाह और पुलिस इस स्थिति के लिए एक-दूसरे पर उंगली उठाते  हैं। हालांकि वे इस बात से सहमत हैं कि स्थिति अच्छी नहीं है, फिर भी हम अपने समाज को एक सभ्य समाज कहते हैं। कठिन स्थिति में कठिन निर्णय लिए जाने चाहिएं। देश में क्रांतिकारी बदलाव की आवश्यकता है। महिलाएं वास्तव में तभी सुरक्षित रह सकती हैं जब समाज की सोच में बदलाव आएगा। तब तक पुलिस बलात्कार के मामलों में तुरंत कार्रवाई करे और न्यायपालिका ऐसे मामलों में तुरंत न्याय करे। इन दोनों को जवाबदेह बना दिया जाना चाहिए ताकि महिलाएं अपने संवैधानिक अधिकारों का आनंद उठा सकें। उन्हें स्वतंत्रता और निर्भय होकर आवाजाही का अधिकार दिया जाना चाहिए। समय आ गया है कि हम  इस बारे में आत्मावलोकन करें कि बलात्कार और अपराधीकरण आखिर कब तक?-पूनम आई. कौशिश

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