इंसानी फरिश्ते ही दुखी लोगों के काम आते हैं

Monday, Jan 22, 2018 - 03:33 AM (IST)

यह किस्सा सुनकर शायद आप यकीन न करें, पर है सच। मुम्बई के एक मशहूर उद्योगपति अपने मित्रों  सहित स्विट्जरलैंड के शहर जेनेवा के पांच सितारा होटल से चैकआऊट कर चुके थे। 

सीधे एयरपोर्ट जाने की तैयारी थी। 3 घंटे बाद मुंबई की फ्लाइट से लौटना था। तभी उनके निजी सचिव का मुंबई दफ्तर से फोन आया जिसे सुनकर ये सज्जन अचानक अपनी पत्नी और मित्रों की ओर मुड़े और बोले, ‘‘आप सब लोग जाइए। मैं देर रात की फ्लाइट से आऊंगा।’’ इस तरह अचानक उनका यह फैसला सुनकर सब चौंक गए। उनसे इसकी वजह पूछी तो उन्होंने बताया कि, ‘‘अभी मेरे दफ्तर में कोई महिला आई है, जिसका पति कैंसर से पीड़ित है। उसे एक महंगे इंजैक्शन की जरूरत है, जो यहीं जेनेवा में मिलता है। मैं वह इंजैक्शन लेकर कल सुबह तक मुबई आ जाऊंगा।’’ परिवार और साथी असमंजस में पड़ गए। बोले, ‘‘इंजैक्शन कोरियर से आ जाएगा, आप तो साथ चलिए।’’ उनका जवाब था, ‘‘उस आदमी की जान बचाना मेरे वक्त से ज्यादा कीमती है।’’ 

इन्हीं सज्जन का गोवा में भी एक बड़ा बंगला है, जिसके सामने एक स्थानीय नौजवान चाय का ढाबा चलाता था। यह सज्जन हर क्रिसमस की छुट्टियों में गोवा जाते हैं। जितनी बार यह कोठी में घुसते और निकलते वह ढाबे वाला दूर से ही इन्हें हाथ हिलाकर अभिवादन करता। दोनों का बस इतना ही परिचय था। एक साल बाद जब ये छुट्टियों में गोवा पहुंचे तो दूर से देखा कि ढाबा बंद है। इनके बंगले के चौकीदार ने बताया कि ढाबे वाला कई महीनों से बीमार है और अस्पताल में पड़ा है। इन्होंने फौरन उसकी खैर-खबर ली और मुंबई में उसका पुख्ता और बढिय़ा इलाज का इंतजाम किया। भगवान की इच्छा, पहले मामले में उस आदमी की जान बच गई। वे दोनों पति-पत्नी एक दिन इनका धन्यवाद करने इनके दफ्तर पहुंचे। स्वागत अधिकारी ने इन्हें फोन पर बताया कि ये दो पति-पत्नी आपको धन्यवाद करने आए हैं। इनका जवाब था, ‘‘उनसे कहो कि मेरा नहीं, ईश्वर का धन्यवाद करें’’ और यह उनसे नहीं मिले। 

गोवा वाले मामले में ढाबे वाला आदमी बढिय़ा इलाज के बावजूद भी मर गया। जब इन्हें पता चला, तो उसकी बेवा से पुछवाया कि हम तुम्हारी क्या मदद कर सकते हैं। उसने बताया कि मेरे पति 2 लाख रुपए का कर्जा छोड़ गए हैं। अगर कर्जा पट जाए, तो मैं ढाबा चलाकर अपना गुजर-बसर कर लूंगी। उसकी यह मुराद पूरी हुई। वह भी बंगले में आकर धन्यवाद करना चाहती थी। इन्होंने उसे भी वही जवाब भिजवा दिया। इसे कहते हैं, ‘‘नेकी कर दरिया में डाल’। उन सज्जन का नाम है, कमल मोरारका, जो एक जमाने में चंद्रशेखर सरकार के प्रधानमंत्री कार्यालय  के मंत्री भी रहे। उनकी जिंदगी से जुड़े ऐसे सैंकड़ों किस्से हैं, जिन्हें उन्होंने कभी नहीं सुनाया, पर वे लोग सुनाते हैं, जिनकी उन्होंने मदद की। उनकी मदद लेने वालों में देश के तमाम साहित्यकार, कलाकार, समाजसेवी, पत्रकार, राजनेता व अन्य सैंकड़ों लोग हैं, जो उन्हें इंसान नहीं फरिश्ता मानते हैं। 

दरअसल भारत के पूंजीवाद और पश्चिम के पूंजीवाद में यही बुनियादी अंतर है। पश्चिमी सभ्यता में धन कमाया जाता है, मौज-मस्ती, सैर-सपाटे और ऐश्वर्य प्रदर्शन के लिए जबकि भारत का पारंपरिक वैश्य समाज सादा जीवन, उच्च विचार के सिद्धांत को मानता आया है। वह दिन-रात मेहनत करता रहा और धन जोड़ता रहा है। पर उसका रहन-सहन और खान-पान बिल्कुल साधारण होता था। वह खर्च करता तो सम्पत्ति खरीदने में या सोने-चांदी में, इसीलिए भारत हमेशा से सोने की चिडिय़ा रहा है। दुनिया की आॢथक मंदी के दौर भी भारत की अर्थव्यवस्था को झकझोर नहीं पाए, जबकि उपभोक्तावादी पश्चिमी संस्कृति में क्रैडिट कार्ड की डिजीटल इकॉनोमी ने कई बार अपने समाजों को भारी आर्थिक संकट में डाला है। अमरीका सहित ये तमाम देश आज खरबों रुपए के विदेशी कर्ज में डूबे हैं। वे सही मायने में चार्वाक के अनुयायी हैं, जब तक जियो सुख से जियो,ऋण मांगकर भी पीना पड़े तो भी घी पियो। 

यही कारण है कि डिजीटल अर्थव्यवस्था की नीतियों को भारत का पारंपरिक समाज स्वीकार करने में अभी हिचक रहा है। उसे डर है कि अगर हमारी हजारों साल की परम्परा को तोड़कर हम इस नई व्यवस्था को अपना लेंगे तो हम अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक माफियाओं के जाल में फंस जाएंगे। अब यह तो वक्त ही बताएगा कि लोग बदलते हैं कि नीतियां। हम बात कर रहे थे इंसानी फरिश्तों की। आधुनिकता के दौर में मानवीय संवेदनशीलता भी छिन्न-भिन्न हो जाती है। ऐसे में किसी साधन संपन्न व्यक्ति से मानवीय संवेदनाओं की अपेक्षा करना काफी मुश्किल हो जाता है, जबकि नई व्यवस्था में सामाजिक सरोकार के हर मुद्दे पर बिना बड़ी कीमत के राहत मुहैया नहीं होती। इससे समाज में हताशा फैलती है। संरक्षण की पुरानी व्यवस्था रही नहीं और नई उनकी हैसियत के बाहर है। ऐसे में इंसानी फरिश्ते ही लोगों के काम आते हैं, पर उनकी तादाद अब उंगलियों पर गिनी जा सकती है। कमल मोरारका एक ऐसी शख्सियत हैं, जिनकी जितनी तारीफ  की जाए उतनी कम है।-विनीत नारायण

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