कर्नाटक सरकार आरक्षण सीमा बढ़ाने के संबंध में न्यायालय में अपना जवाब दायर करेगी
Tuesday, Mar 23, 2021 - 01:06 AM (IST)
बेंगलुरु, 22 मार्च (भाषा) कर्नाटक सरकार ने उच्चतम न्यायालय में यह अभिवेदन देने का सोमवार को फैसला किया कि आरक्षण की 50 प्रतिशत सीमा को बढ़ाए जाने की आवश्यकता है, क्योंकि सामाजिक परिदृश्य बदल गया है और पिछड़े वर्ग की आकांक्षाएं बढ़ी हैं।
मुख्यमंत्री बी एस येदियुरप्पा के नेतृत्व में राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में यह फैसला किया गया।
एक आधिकारिक सूत्र ने कहा, ‘‘आरक्षण की 50 प्रतिशत सीमा तय करने वाले इंदिरा साहनी मामले संबंधी आदेश के संबंध में इस सीमा को बढ़ाया जाना तीन कारणों से आवश्यक है- कई संवैधानिक संशोधन हो चुके हैं, कई राज्य सरकारों ने ऐसा किया है और सामाजिक परिदृश्य बदल गया है।’’
सूत्र ने कहा, ‘‘इसलिए 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण दिए जाने की आवश्यकता है। इसके अलावा पिछड़े वर्ग की आकांक्षाएं भी बढ़ी हैं। यह हमारा अभिवेदन है।’’
उच्चतम न्यायालय यह तय करने के लिए सुनवाई कर रहा है कि आरक्षण से संबंधित मंडल प्रकरण नाम से चर्चित इंदिरा साहनी मामले पर एक वृहद पीठ को पुनर्विचार करना चाहिए या नहीं।
न्यायालय ने 1992 में अधिवक्ता इंदिरा साहनी की याचिका पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए जाति-आधारित आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत तय कर दी थी।
न्यायालय ने इस मामले में सभी राज्यों से जवाब मांगा है।
यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।
मुख्यमंत्री बी एस येदियुरप्पा के नेतृत्व में राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में यह फैसला किया गया।
एक आधिकारिक सूत्र ने कहा, ‘‘आरक्षण की 50 प्रतिशत सीमा तय करने वाले इंदिरा साहनी मामले संबंधी आदेश के संबंध में इस सीमा को बढ़ाया जाना तीन कारणों से आवश्यक है- कई संवैधानिक संशोधन हो चुके हैं, कई राज्य सरकारों ने ऐसा किया है और सामाजिक परिदृश्य बदल गया है।’’
सूत्र ने कहा, ‘‘इसलिए 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण दिए जाने की आवश्यकता है। इसके अलावा पिछड़े वर्ग की आकांक्षाएं भी बढ़ी हैं। यह हमारा अभिवेदन है।’’
उच्चतम न्यायालय यह तय करने के लिए सुनवाई कर रहा है कि आरक्षण से संबंधित मंडल प्रकरण नाम से चर्चित इंदिरा साहनी मामले पर एक वृहद पीठ को पुनर्विचार करना चाहिए या नहीं।
न्यायालय ने 1992 में अधिवक्ता इंदिरा साहनी की याचिका पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए जाति-आधारित आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत तय कर दी थी।
न्यायालय ने इस मामले में सभी राज्यों से जवाब मांगा है।
यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।