गठिये के ज्यादा असरदार इलाज की दिशा में एक कदम और आगे बढ़े वैज्ञानिक

Tuesday, Jul 07, 2020 - 04:31 PM (IST)

बेंगलुरु, सात जुलाई (भाषा) भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) के अनुसंधानकर्ताओं ने सूक्ष्म कण वाला एक फार्म्यूलेशन विकसित किया है जो ऑस्टियोअर्थराइटिस (जोड़ों की पुरानी बीमारी) के इलाज में दवाओं के निरंतर स्राव में मदद करता है।

आईआईएससी की एक विज्ञप्ति में बताया गया कि अनुसंधानकर्ताओं ने एफडीए स्वीकृत जैविक पदार्थ पीएलजीए (लैक्टिक को-ग्लाइकोलिक एसिड) से बने पॉलिमर मैट्रिक्स को,‍ शरीर की सामान्य प्रतिरक्षा को कम करने वाली दवा रेपामिसिन को कैप्सूल रूप में ढालने के लिए डिजाइन किया है।

इसमें बताया गया कि प्रयोगशाला में बनाई गई कोशिकाओं के साथ ही चूहों के मॉडल पर किए गए प्रारंभिक अध्ययन में सुखद परिणाम मिले जो लगातार दवा के स्राव के चलते सूजन कम करने और उपास्थि (कार्टिलेज) के ठीक होने का संकेत देते हैं।

आईआईएससी के सेंटर फॉर बायोसिस्टम्स साइंस एंड इंजीनियरिंग में पीएचडी की छात्रा कामिनी एन धनबालन ने कहा, “कोशिकाओं के अध्ययन में, रेपामिसिन युक्त पीएलजीए सूक्ष्म कण 21 दिन तक दवा छोड़ सकते हैं और जानवरों पर किए अध्ययन में इस दवा ने चूहों के जोड़ों में सूक्ष्म कण डाले जाने के बाद 30 दिन तक असर दिखाया।”
ऑस्टियोअर्थराइटिस उपास्थियों की टूट-फूट की बीमारी है जो तनाव या उम्र बढ़ने के कारण होता है। उपास्थियां वे कोमल उत्तक होते हैं जो हड्डियों के जोड़ को बचा कर रखते हैं।

मौजूदा इलाज पद्धति बीमारी को निशाना बनाने की बजाय दर्द और सूजन को कम करने पर केंद्रित है।

अध्ययन के वरिष्ठ लेखक और बीएसएसई में सहायक प्राध्यापक रचित अग्रवाल ने कहा कि इस संबंध में विस्तार से अध्ययन किया जा रहा है।



यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।

PTI News Agency

Advertising