जानिए, मंगल ग्रह किस तरह से आपके जीवन में लाता है अमंगल

Tuesday, May 24, 2016 - 03:22 PM (IST)

कुंडली में मंगल की स्थिति को लेकर जनमानस में तरह-तरह की भ्रांतियां उत्पन्न हो रही हैं। मांगलिक या मंगला होना विवाह के लिए बहुत बड़ा दोष माना जाता है। ऐसी अनेक स्थितियां देखने को मिलती हैं जब मंगल की स्थान विशेष में स्थिति देखकर विवाह के लिए इंकार कर दिया जाता है। बिना यह देखे कि मंगलदोष का परिहार अन्य किसी स्थिति से हो सकता है कि नहीं।

 

मंगल दोष के संबंध में दो विचार देखने को मिलते हैं। प्रथम विचार के आधार पर मंगल जब द्वितीय, द्वादश, चतुर्थ, सप्तम एवं अष्टम भाव में होता है, तो स्त्री या पुरुष मांगली या मांगलिक कहे जाते हैं। मांगलिक होने की स्थिति में पति या पत्नी पर घातक प्रभाव भी पड़ सकता है। द्वितीय विचार के अनुसार लग्र में भी मंगल की स्थिति मांगलिक दोष को उत्पन्न करती है।

 

यहां यह विचार करना आवश्यक है कि मंगल की स्थिति विवाह के लिए क्यों इतनी महत्वपूर्ण मानी गई है? सामान्य रूप से मंगल शारीरिक शक्ति उग्रता, इच्छा शक्ति को व्यक्त करता है। मंगल को एक ‘पापी ग्रह’ माना जाता है। यह किसी भाव को प्रभावित करके उसके कारक तत्वों में कमी कर सकता है।

 

पत्नी स्थान से सप्तम होने के कारण वह ‘पत्नीहंता’ ग्रह भी होता है। द्वितीय भाव पारिवारिक सुख, परिवार में वृद्धि, आमदनी आदि को व्यक्त करता है। सप्तम से अष्टम होने के कारण यह पत्नी का आयु स्थान होता है।

 

चतुर्थ भाव पारिवारिक स्थिति, माता तथा सुख को बताता है। शास्त्रीय मत के अनुसार अगर पापी ग्रह चतुर्थ और अष्टम भाव में स्थित होता है तो भाव की स्थिति नष्ट होती है इसलिए चतुर्थ में मंगल का होना लग्र के लिए खराब होता है। साथ ही चतुर्थ में मंगल, अष्टम भाव को भी देखता है।

 

अष्टम भाव आयु स्थान के साथ-साथ पति या पत्नी का आय स्थान भी है। इसे मांगल्य स्थान भी कहा जाता है। पति-पत्नी के बीच संबंध की सीमा इससे निर्धारित होती है। द्वादश भाव शयन-सुख स्थान होता है। इस प्रकार उपर्युक्त सभी भाव से मंगल जोकि स्वाभाविक रूप से क्रूर ग्रह है और इसकी स्थिति हानिप्रद है और यह पारिवारिक सुख दांपत्य को बाधित करता है, पति एवं पत्नी की आयु एवं स्वास्थ्य को यह विपरीत रूप से प्रभावित करता है।

 

परन्तु मंगल की सभी स्थितियां अनिष्टकारी नहीं होतीं। मंगल दोष का विचार करते समय निम्नांकित बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए-

* मंगल ग्रह की प्रवृत्ति क्या है तथा इसका भाव शुभ है या अशुभ?

 

* मंगल किस भाव में है तथा यह किस भाव का स्वामी है?

 

* क्या मंगल सभी राशियों या भावों में एक समान ही पापी होता है?

 

* मंगल दोष का अर्थ केवल पति-पत्नी की मृत्यु है या यह दांपत्य संबंध के अन्य क्षेत्र को भी प्रभावित करता है?

 

* उच्च-नीच स्वराशि, मित्र स्वराशि, राशि में स्थित होने से क्या मंगल के प्रभाव में परिवर्तन होता है?

 

उपरोक्त सभी बातों पर विचार करके ही मंगल दोष के प्रभाव की समुचित समीक्षा हो सकती है।

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