दरिद्रता के चक्रव्यूह में फंसे चारों ओर से निराश लोग, चमत्कारी वस्तु का करें उपयोग

Thursday, Sep 03, 2015 - 04:25 PM (IST)

शंख भिन्न-भिन्न आकृति व अनेक प्रकार के होते हैं। सभी प्रकार के शंखों की स्थापना घरों में की जा सकती है। प्रमुखता से शंख को तीन भागों में विभक्त किया गया है। जैसे वामावर्ती, दक्षिणावर्ती  और मध्यावर्ती। वामावर्ती बजने वाले शंख होते हैं उनका मुंह बाईं ओर होता है तथा ये बाईं ओर से खुलते हैं। दक्षिणावर्ती एक विशेष प्रकार का दुर्लभ अद्भुत चमत्कारी शंख दाहिने तरफ खुलने की वजह से दक्षिणावर्ती शंख कहलाता है।

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इस तरह के शंख सहज रूप से सुलभ नहीं हो पाते। आकाश में नक्षत्र मंडल में विशेष शुभ नक्षत्र के योग के प्रभाव से शुभ दक्षिणावर्ती शंख की उत्पत्ति समुद्र के गर्भ से होती है। इस शंख की प्रसिद्धि और चमत्कारी प्रभाव के कारण ये अति दुर्लभ व मूल्यवान भी होते हैं। शुद्ध व असली दक्षिणावर्ती शंख को सिद्ध व प्राण प्रतिष्ठित जागृत कर अपने व्यवसाय स्थल, उद्योग स्थल, आफिस, दुकान, भवन के पूजा स्थल पर स्थापित करें।

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पूजा करने के बाद शंख में जल, दूध, गंगा जल भर कर छिड़काव व शंखोदक जल आचमन से दरिद्रता, कर्ज और दुर्भाग्य का नाश और भाग्य प्रवाह में वृद्धि होती है। चिर स्थायी लक्ष्मी, सुख-समृद्धि का स्थायी वास होता है। शंख संहिता में दक्षिणावर्ती शंख कल्प के बारे में लिखा है कि जब व्यक्ति सभी तरफ से दरिद्रता के चक्रव्यूह में फंस जाता है, चारों ओर से निराशा, व्यापार में असफलता और आर्थिक उन्नति के उपाय विफल नजर आते हैं तब आर्थिक उन्नति के लिए दक्षिणावर्ती शंख की विधिपूर्वक स्थापना कर लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

समुद्र देव द्वारा निर्मित इस तेजस्वी शंख को जो मनुष्य अपने घर और व्यापार स्थल के पूजा स्थान अथवा गल्ले, तिजोरी में रखकर नित्य पूजन और दर्शन करता है वहां से दरिद्रता अभाव, असफलता और रोगों का नाश होता है। यह शास्त्रोक्त सत्य है। 

दक्षिणावर्ती शंख लक्ष्मी का सहोदर है। भगवती महालक्ष्मी और दक्षिणावर्ती शंख दोनों की ही उत्पत्ति तीर्थराज गंगा सागर समुद्र से हुई है। अत: समस्त ऐश्वर्य प्रदायनी भगवती महालक्ष्मी को सम्पूर्ण रूप से आबद्ध करने की इच्छा रखने वाले को इस चमत्कारी वस्तु का उपयोग करना चाहिए।

शंख की  महिमा और महत्व प्रत्येक अनुष्ठान में विशेष रूप से है। यह विष्णु के चार आयुधों में प्रमुख है। प्रत्येक विशेष पूजा में शंख द्वारा अभिषेक का महत्व है। प्रत्येक पूजा में इसे पवित्र माना गया है। 

यह उत्तम दक्षिणावर्ती शंख जिसके घर में रहता है वहां सब मंगल ही मंगल होते हैं। लक्ष्मी स्वयं स्थिर होकर  निवास करती है। जिस घर में उत्तम दक्षिणावर्ती शंख की पूजा होती है वह कृष्ण के समान सौभाग्यशाली तथा धनपति बन जाता है, क्योंकि चंद्रमा के अमृत मंडल से संचित समुद्र से उत्पन्न अंतरिक्ष वायु और ज्योति मंडल को अपने भीतर सजाने वाला यह विशिष्ट शंख शत्रुओं को निर्बल करने वाला, रोग, अज्ञान, अलक्ष्मी को दूर भगाने वाला और आयु का वर्धक है। ब्रह्मवैयर्त पुराण के अनुसार यह शंख तो चंद्रमा और सूर्य के समान देव स्वरूप है। इसके मध्य में वरुण और पृष्ठ भाग में गंगा का निवास है। शंख में सारे तीर्थ विष्णु आज्ञा से निवास करते हैं और यह कुबेर स्वरूप है। अत: इसकी तो पूजा अवश्य ही करनी चाहिए। इसके दर्शन मात्र से सभी दोष ऐसे नष्ट हो जाते हैं जैसे सूर्योदय होने पर बर्फ पिघल जाती है, फिर स्पर्श की तो बात ही क्या है।  

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लक्ष्मी को प्राप्त करना और उसे स्थायी रूप से घर में निवास देने का एकमात्र प्रयोग दक्षिणावर्ती शंख ही है जो अपने आप में आश्चर्यजनक रूप से धन देने में समर्थ है, इसके माध्यम से ऋण, दरिद्रता और अभाव मिट जाता है तथा सभी दृष्टियों से सम्पन्नता आ जाती है।

महर्षि पुलस्त्य संहिता से : यूं तो मैंने अपने जीवन में लक्ष्मी से संबंधित  सभी प्रयोग सम्पन्न किए हैं पर दक्षिणावर्ती शंख का प्रयोग आश्चर्यजनक रूप से सफलतादायक तथा अद्वितीय है। धन वर्षा करने और सुख-समृद्धि प्रदान करने में उसकी कोई तुलना नहीं है। गरुड़ वाहिनी लक्ष्मी को प्राप्त करना और उसे स्थायी रूप से घर में निवास देने  का एकमात्र साधन दक्षिणावर्ती शंख प्रयोग है जोकि आश्चर्यजनक रूप  में धन देने में समर्थ है। इसके प्रयोग से ऋण, दरिद्रता तथा रोगादि मिट जाते हैं तथा हर प्रकार से सम्पन्नता आने लगती है।

महर्षि विश्वामित्र संहिता से : दक्षिणावर्ती शंख का प्रयोग सभी प्रकार की दरिद्रता, दुख और अभाव को मिटाने और पूर्ण सफलता देने में समर्थ है। यह एकमात्र प्रयोग है जो  आश्चर्यजनक रूप से सफलता प्रदान करता है। दक्षिणावर्ती शंख कल्प प्रयोग से जो सफलता मिलती है वह आश्चर्यजनक रूप से अद्वितीय है। धन वर्षा करने और सुख-समृद्धि प्रदान करवाने में तो इसकी कोई तुलना ही नहीं है।

लक्ष्मी संहिता से : भगवती लक्ष्मी के सभी प्रयोगों में दक्षिणावर्ती शंख का प्रयोग ही प्रमाणिक और धन वर्षा करने में समर्थ है यह उज्ज्वल रत्नों का सागर है।

महर्षि मार्कंडेय : यदि दक्षिणावर्ती शंख मिल जाए और फिर भी व्यक्ति इसका उपयोग न करे तो वह वास्तव में अभागा ही कहा जाएगा। यह तो जीवन का सौभाग्य है, सत्कर्मों का उदय है, लक्ष्मी प्राप्ति का सर्वोत्तम उपचार है।

भागवत्पाद आद्यगुरु शंकराचार्य दक्षिणावर्ती शंख उपयोग श्रेष्ठ तांत्रिक प्रयोग है जिसका प्रभाव तुरंत और अचूक होता है। मैंने इसका उपयोग स्वयं किया है और अपने शिष्यों  को सम्पन्न करवाया है। हर बार मुझे इसके द्वारा पूर्ण सफलता मिली है।

गुरु गोरखनाथ गोरक्ष संहिता से: दक्षिणावर्ती शंख कल्प प्रयोग एक श्रेष्ठ तांत्रिक प्रयोग है। इसका प्रभाव तुरंत तथा अचूक होता है। किसी भी माध्यम से धन कमाने का अचूक प्रयोग है।

दक्षिणावर्ती शंख का स्वरूप :  यह महत्वपूर्ण शंख जो श्वेत हो, वजन में भारी हो तथा दक्षिण की ओर मुंह खुला हो वहीं शंख दक्षिणावर्ती कहलाता है। इसे भी जागृत करना पड़ता है। शंख लेकर सीधे उसकी पूजा करने से लाभ प्राप्त नहीं होता, इसे विशेष मंत्रों से आभूषित करना होता है और अष्टोत्तर लक्ष्मी प्रयोग से सम्पन्न एवं अष्ट लक्ष्मी मंत्र सिद्ध कुबेर मंत्रों से आपूरित प्राण प्रतिष्ठितयुक्त  शंख ही साधना के लिए पूर्ण फलदायक रहता है।

* जिस घर में यह शंख रहता है वह कभी भी धन-धान्य से रिक्त नहीं रहता।

* भगवान विष्णु का आयुध होने से यह अत्यंत मंगलकारी है।

* जिस परिवार में शास्त्रोक्त उपायों द्वारा इसकी स्थापना की जाती है वहां भूत, प्रेत, पिशाच, ब्रह्म-राक्षस आदि द्वारा पहुंचाए जा रहे दुर्भक्षों का स्वत: ही समाधान होने लगता है।

* शत्रु पक्ष कितना भी बलशाली क्यों न हो, इसके प्रभाव से हानि नहीं पहुंचा पाता।

* इसके प्रभाव से दुर्घटना, मृत्यु भय, चोरी आदि से रक्षा होती है। 

—महर्षि डा. पं. सीताराम त्रिपाठी शास्त्री

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