मांगलिक से शादी करने के साइड इफैक्ट

Tuesday, Aug 25, 2015 - 01:41 PM (IST)

ज्योतिषशास्त्र के कालपुरुष सिद्धान्त अनुसार लग्न देह है, चंद्रमा मन है, शुक्र रति है, मंगल स्वयं कामदेव हैं, गुरु उच्च शिखर पर ले जाने वाले व सुख प्राप्ति दिलाने वाले हैं। वर के लिए शुक्र पत्नी कारक है कन्या के लिए गुरु पति कारक है। अतः इनकी शुभता व अशुभता का सुगमता से अध्ययन किया जाना आवश्यक है। मंगल अग्नि तत्व प्रधान ग्रह है। मारकेश होने पर मृत्यु कारक है। परंतु मंगल ग्रह साहस, पुरूषार्थ, आत्म बल व उच्च शिखर का कारक भी है। अतः यदि एक व्यक्ति के पूर्ण भावों में मंगल के कोई पाप ग्रह हों तो वह द्विगुण, त्रिगुण मांगलिक हो जाएगा। पाप ग्रह जहां पर जातक को आकस्मिक धन लाभ प्राप्त कराते हैं वहां पर भौतिक सुखों में कमी लाते हैं व दांपत्य में क्लेश का कारण बनते हैं।

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बृहत्पाराशरहोरा व भावदीपिका जैसे शास्त्रनुसार जातक या जातिका की जन्मपत्री में लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम व द्वादश में मंगल स्थित होने पर मंगलीक दोष होता है। मानसागरी, अगस्त्य संहिता, जातक पारिजात जैसे शास्त्रनुसार लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम व द्वादश मंगल होने पर जन्मकुंडली मंगलीक मानी जाती है अर्थात यदि जन्मपत्री के प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम व द्वादश में यदि मंगल विराजमान हो तब कुंडली मंगलीक दोष युक्त मानी जाती है। यदि कुंडली मंगलीक हो तो लग्न से कलह, द्वितीय से कौटुम्बिक कलह, चतुर्थ से दैनिक रोजगार में बाधा, अष्टम से आयु कष्ट, द्वादश से शैया कष्ट होता है क्योंकि मंगल, कलत्र, अग्नि, दुर्घटना व विग्रह का कारक होता है।

 
मांगलिक दोष का मूलार्थ है व्यक्ति की कुंडली में यदि मंगल लग्न में है तब सप्तम भाव पर सप्तम दृष्टि से दुष्प्रभाव पड़ेगा व जीवनसाथी को खतरे की संभावना रहेगी। द्वितीय भाव में मंगल स्थित होने पर जीवनसाथी की आयु को खतरा रहेगा क्योंकि सप्तम से द्वितीय भाव अष्टम अर्थात आयु का होगा। चतुर्थ में मंगल होने पर सप्तम भाव पर चतुर्थ दृष्टि होगी। सप्तम में मंगल होने पर जीवनसाथी को खतरा व मंगल की द्वितीय भाव पर अष्टम दृष्टि पड़ेगी। अष्टम में मंगल होने पर द्वितीय भाव अर्थात् जीवन साथी के आयु भाव पर सप्तम दृष्टि होगी। द्वादश मंगल होने पर सप्तम भाव प्रभावित होगा अर्थात छः भावों में मंगल स्थित होने पर जीवनसाथी पर प्रभाव पड़ने पर मंगलीक दोष माना जाता है।
 
वर-वधू में से यदि किसी की भी कुंडली में चंद्रमा पाप ग्रह से दृष्ट हो या किसी भी ग्रह से अदृष्ट हो। शनि विषम राशिगत हो। मंगल-केतु की युति हो या दृष्टि संबंध हो। सप्तम भाव पीड़ित हो। सप्तमेश पाप ग्रह से दृष्ट हो। शुक्र सिंह राशिगत हो। सप्तम भाव को राहु, केतु, मंगल, शनि व सूर्य देखते हों या सप्तमेश के साथ युति बनाते हों। यदि कुंडली में लग्न व सप्तम भाव से दाईं व बाईं ओर से कालसर्प दोष हो। कुंडली में मांगलिक दोष हो व वज्र, शूल, व्यातिपात, गंड, अतिगंड, व्याघात योग हो। शुक्र पाप राशिगत होकर नवमांश में द्विस्वभाव राशि में हो। सप्तमेश वक्री व पाप कर्तरी योग में हो। तो ऐसी अवस्था में दांपत्य कलह, यौन असंतुष्टि, व संबंध-विच्छेद व विवाह विघटन तक की नौबत आ जाती है।
 
आचार्य कमल नंदलाल
ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com

 

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