गीता में छिपे हैं ज्योतिषीय उपचार

punjabkesari.in Sunday, Apr 26, 2015 - 11:35 AM (IST)

महाभारत के युद्ध से ठीक पहले श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए ज्ञान यानी गीता में ढेरों ज्योतिषीय उपचार भी छिपे हुए हैं । गीता के अध्यायों का नियमित अध्ययन कर हम कई समस्याओं से मुक्ति पा सकते हैं । गीता की टीका तो बहुत से योगियों और महापुरुषों ने की है लेकिन ज्योतिषीय अंदाज में अब तक कहीं पुख्ता टीका नहीं है । फिर भी कहीं-कहीं ज्योतिषियों ने अपने स्तर पर प्रयोग किए हैं और ये बहुत अधिक सफल भी रहे हैं ।

गीता की नैसर्गिक विशेषता यह है कि इसे पढऩे वाले व्यक्ति के अनुसार ही इसकी टीका होती है। यानी हर एक के लिए अलग। इन संकेतों के साथ इस स्वतंत्रता को बनाए रखने का प्रयास किया गया है। गीता के अठारह अध्यायों में भगवान श्रीकृष्ण ने जो संकेत दिए हैं उन्हें ज्योतिष के आधार पर विश्लेषित किया गया है । इसमें ग्रहों का प्रभाव और उनसे होने वाले नुक्सान से बचने तथा उनका लाभ उठाने के संंबंध में यह सूत्र बहुत काम के लगते हैं । शनि संंबंधी पीड़ा होने पर प्रथम अध्याय का पठन करना चाहिए । द्वितीय अध्याय, जब जातक की कुंडली में गुरु की दृष्टि शनि पर हो, तृतीय अध्याय, 10वां भाव शनि, मंगल और गुरु के प्रभाव में होने पर, चतुर्थ अध्याय, कुंडली का 9वां भाव तथा कारक ग्रह प्रभावित होने पर, पंचम अध्याय, भाव 9 तथा 10 के अंतरपरिवर्तन में लाभ देते हैं । इसी प्रकार छठा अध्याय, तात्कालिक रूप से आठवां भाव एवं गुरु व शनि का प्रभाव होने और शुक्र का इस भाव से संबंधित होने पर लाभकारी है । 

सप्तम अध्याय का अध्ययन 8वें भाव से पीड़ित और मोक्ष चाहने वालों के लिए उपयोगी है । आठवां अध्याय कुंडली में कारक ग्रह और 12वें भाव का संबंध होने पर लाभ देता है । नौवें अध्याय का पाठ लग्नेश, दशमेश और मूल स्वभाव राशि का संबंध होने पर करना चाहिए। गीता का दसवां अध्याय, कर्म की प्रधानता को इस भांति बताता है कि हर जातक को इसका अध्ययन करना चाहिए। हर ग्रह की पीड़ा में यह लाभदायी है । 

कुंडली में लग्नेश 8 से 12 भाव तक सभी ग्रह होने पर ग्यारहवें अध्याय का पाठ करना चाहिए । बारहवां अध्याय, भाव 5 व 9 तथा चंद्रमा प्रभावित होने पर उपयोगी  है । तेरहवां अध्याय, भाव 12 तथा चंद्रमा के प्रभाव से संबंधित उपचार में काम आएगा । आठवें भाव में किसी भी उच्च के ग्रह की उपस्थिति में चौदहवां अध्याय लाभ दिलाएगा । इसी प्रकार पंद्रहवां अध्याय, लग्न एवं 5वें भाव के संबंध में और सोलहवां अध्याय मंगल और सूर्य की खराब स्थिति में उपयोगी है ।


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