J&K 2022: आतंकियों के निशाने पर रहे कश्मीरी पंडित...परिसीमन और मतदाता सूची का काम हुआ पूरा

punjabkesari.in Thursday, Dec 29, 2022 - 03:35 PM (IST)

श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद इसके राज्य के दर्जे को बहाल करने और विधानसभा चुनाव कराने के वादे को केंद्र सरकार द्वारा पूरा नहीं करने के मामले में एक और साल बीत जाने के कारण भाजपा को छोड़कर अन्य सभी राजनीतिक दल निराश हैं। जम्मू-कश्मीर में चूंकि परिसीमन प्रक्रिया और संशोधित मतदाता सूची का काम पूरा हो गया था, इसलिए राजनीतिक दलों को इस बात की उम्मीद थी कि चुनाव आयोग केंद्र शासित प्रदेश के विधानसभा चुनाव कार्यक्रम की घोषणा करेगी। हालांकि, ऐसा अब तक नहीं हुआ है और वर्ष 2022 का समापन होने में अब तीन दिन शेष रह गए हैं।

 

इस साल की सबसे बड़ी खबर, आतंकवादियों द्वारा की कश्मीरी पंडितों की लक्षित हत्या की थी। इन हत्याओं के कारण पूरे देश में शोर मच गया था। जम्मू कश्मीर में वर्ष 2007 में प्रधानमंत्री रोजगार पैकेज की घोषणा की गई थी, जिसके बाद बड़ी संख्या में कश्मीरी पंडित घाटी में वापस लौटे थे। इस साल मई में प्रदेश के बडगाम जिले के चदूरा इलाके में कार्यालय में हुई राहुल भट की हत्या के बाद कश्मीरी पंडित जम्मू चले गए। विभिन्न कश्मीरी पंडित संगठनों द्वारा समर्थित कर्मचारी जम्मू में एक क्रमिक धरने पर हैं, और उनकी मांग है कि घाटी में स्थिति में सुधार होने तक उन्हें जम्मू स्थानांतरित कर दिया जाए।

 

कश्मीरी पंडितों की इस मांग का विभिन्न राजनीतिक दलों और उनके नेताओं ने समर्थन दिया है, इनमें फारूक अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती और गुलाम नबी आजाद शामिल हैं। ये तीनों पूर्ववर्ती जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। हालांकि, उपराज्यपाल प्रशासन इस बात पर अड़ा हुआ है कि कर्मचारियों को कश्मीर में अपने काम पर लौटना चाहिए और ड्यूटी से अनुपस्थित रहने वाले लोगों का वेतन भुगतान रोक दिया जाएगा। देश के अन्य हिस्सों से गैर कश्मीरी श्रमिक यहां आ कर अपना जीवन यापन करते हैं। इस साल आतंकवादियों ने उन्हें भी अपना निशाना बनाया है।

 

राजनीतिक मोर्चे पर, प्रदेश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी नेशनल कांफ्रेंस ने कहा कि केंद्र शासित प्रदेश में राजनीतिक व्यवस्था सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई क्योंकि प्रशासन वे लोग चला रहे थे जिन्हें यहां की जनता ने निर्वाचित नहीं किया था। नेशनल कांफ्रेंस के प्रवक्ता इमरान नबी ने बताया, ‘‘जम्मू कश्मीर के लोगों से लोकतांत्रिक संस्थानों की बहाली समेत कई वादे किए गए थे। दुर्भाग्य से वह नहीं हुआ। हमसे कहा गया कि जैसे ही परिसीमन का काम पूरा होगा भारत निर्वाचन आयोग विधानसभा चुनाव की घोषणा करेगा लेकिन अब तक वह नहीं हुआ ।'' नबी ने कहा, ‘‘अगर हम राजनीतक व्यवस्था के और लोकतंत्र की शक्ति के हिसाब से देखते हैं, तो हम पिछले कुछ दशकों से काफी नीचे हैं ।'' उन्होंने कहा, ‘‘हत्याओं की संख्या में वृद्धि हुई है, अल्पसंख्यकों और गैर-स्थानीय लोगों पर लक्षित हमले चौंकाने वाले हैं।

 

अल्पसंख्यक समुदायों के लोग जो यहां 30 से अधिक वर्षों से रह रहे हैं, पलायन कर रहे हैं जो निराशाजनक है। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के प्रवक्ता मोहित भान ने कहा कि यह वर्ष निराशाजनक रहा क्योंकि जमीनी स्थिति अनिश्चित बनी रही और लोकतंत्र में लोगों के विश्वास को बहाल करने के लिए कोई कदम नहीं उठाए गए। उन्होंने कहा कि सही अर्थों में राजनीतिक गतिविधि जम्मू-कश्मीर में नहीं हो रही है क्योंकि सभी राजनीतिक दलों के लिए बराबरी का मौका नहीं है। अपनी पार्टी के नेता गुलाम हसन मीर ने जम्मू-कश्मीर में पंचायत और डीडीसी चुनाव कराने का श्रेय भाजपा सरकार को देते हुए कहा कि अब अन्य लोकतांत्रिक संस्थानों को भी बहाल करने का समय आ गया है। भाजपा महासचिव तथा जम्मू कश्मीर के प्रभारी तरुण चुघ ने वर्ष के प्रमुख आकर्षण के रूप में यहां किए गए विकास और पर्यटन क्षेत्र में तेजी की ओर ध्यान दिलाया । 


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Content Writer

Seema Sharma

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