उमर को रिहा किया तो बिगड़ सकते हैं हालात: J&K प्रशासन

Tuesday, Mar 03, 2020 - 01:57 PM (IST)

नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला की नजरबंदी का पर जम्मू कश्मीर प्रशासन ने कहा कि उनके ‘पिछले आचरण' को देखते हुए ही उन्हें पीएसए के तहत नजरबंद रखा गया है। प्रशासन ने कहा अगर उन्हें रिहा किया गया तो इस आचरण को पुन: दोहराने की संभावना है जो सार्वजनिक व्यवस्था के लिए हानिकारक हो सकती है। जम्मू कश्मीर प्रशासन ने अनुच्छेद 370 के ज्यादातर प्रावधान खत्म करने के फैसले का अब्दुल्ला को मुखर विरोधी बताया और दावा किया कि उनके काम पूरी तरह से लोक व्यवस्था के दायरे में आते हैं क्योंकि इसका मकसद सार्वजनिक शांति और सद्भाव को भंग करना था। श्रीनगर के जिला मजिस्ट्रेट ने उमर अब्दुल्ला की बहन सारा अब्दुल्ला पायलट की याचिका पर दाखिल अपने जवाब में यह दावा किया है। सारा ने उमर की पीएसए के तहत नजरबंदी को चुनौती दी रखी है।



प्रशासन ने कहा कि अब्दुल्ला को शीर्ष अदालत में आने से पहले राहत के लिए जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय जाना चाहिए था। न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा और न्यायमूर्ति इन्दिरा बनर्जी की पीठ ने सोमवार को सारा अब्दुल्ला पायलट की याचिका पांच मार्च के लिए सूचीबद्ध करते हुये कहा कि याचिकाकर्ता चाहे तो इस पर अपना जवाब दाखिल कर सकती हैं। सुनवाई के दौरान सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वह सारा अब्दुल्ला पायलट की याचिका पर जम्मू कश्मीर प्रशासन की ओर से जवाब दाखिल करेंगे। 



अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने शीर्ष कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि नजरबंदी के मामले में याचिकाकर्ता को पहले हाई कोर्ट जाना चाहिए। वहीं पीठ ने इस याचिका को गुरुवार के लिए सूचीबद्ध करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता जम्मू-कश्मीर प्रशासन के जवाब पर जवाबी हलफनामा दायर कर सकती हैं। गौर होकि उमर की बहन सारा ने शीर्ष कोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर अपने भाई की नजरबंदी के प्रशासन के आदेश को चुनौती दी है। सारा अब्दुल्ला पायलट ने अपनी याचिका में कहा है कि उमर अब्दुल्ला की नजरबंदी का आदेश गैरकानूनी हैं और सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने में उनके भाई से किसी प्रकार का खतरा होने का सवाल ही नहीं है।

rajesh kumar

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