कश्मीर में हाऊस बोटों और होटलों पर अब सैटेलाइट से रहेगी नजर, बायो डाइजैस्टर भी लगेंगे

punjabkesari.in Sunday, Feb 23, 2020 - 02:35 PM (IST)

श्रीनगर: कश्मीर की पहचान डल झील के दिन अब जल्द ही सुधरेंगे। हाऊस बोटों और होटलों से निकलने वाला कचरा अब इसके पानी को गंदा नहीं कर पाएगा। झील के संरक्षण और पारिस्थितिकी संतुलन के लिए प्रशासन ने हाऊस बोटों और झील के साथ सटे होटलों की जियो टैगिंग शुरू कर दी है। इससे सैटेलाइट से इन पर नजर रखी जाएगी। इतना ही नहीं, हाऊस बोटों से निकलने वाली गंदगी पानी में जाने से रोकने के लिए उनमें बायो डाइजैस्टर भी लगाए जा रहे हैं। फिलहाल कुछ हाऊस बोट में बायो डाइजैस्टर लगाए गए हैं, जल्द ही अन्य में भी लगाए जाएंगे।

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डल झील में 1200 पंजीकृत हाऊस बोट हैं जो हर साल 9 हजार मीट्रिक टन कचरा पैदा करते हैं। श्रीनगर शहर के 15 बड़े नालों का कचरा और सीवरेज भी झील में आता है। इनके जरिए झील में हर साल 18.2 टन फास्फोरस, 25 टन इनआर्गैनिक नाइट्रोजन न्यूट्रिएंट्स के अलावा नाइट्रेट, फास्फेट और 80 हजार टन सिल्ट जमा होती है। झील का पानी पीने लायक नहीं रहा है। आक्सीजन घटने के कारण झील के भीतर रहने वाले जीव-जंतुओं और वनस्पतियों के अस्तित्व पर भी संकट पैदा हो गया है। झील को बचाने के लिए प्रशासन ने 3 सीवरेज ट्रीटमैंट प्लांट भी स्थापित किए हैं लेकिन ये भी अपना मकसद पूरा नहीं कर पा रहे हैं। जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने भी झील के संरक्षण के लिए हस्तक्षेप करते हुए राज्य प्रशासन को कई अहम निर्देश जारी किए हैं। हाऊस बोटों और होटलों की जियो टैगिंग भी उच्च न्यायालय के निर्देश पर ही हो रही है।

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900 ढांचों की हो चुकी जियो टैगिंग
झील के बाहरी किनारे से 200 मीटर के दायरे में आने वाले होटलों, रेस्तरां और मकानों की भी जियो टैगिंग की जा रही है। लगभग 900 ढांचों की जियो टैगिंग हो चुकी है। पर्यटन विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि जियो टैगिंग किसी भी जगह स्थापित किसी वस्तु विशेष की भौगोलिक स्थिति की निगरानी के लिए की जाती है। इन सभी वस्तुओं और इमारतों की सैटेलाइट के जरिए निगरानी आसान हो जाती है। उन्होंने बताया कि जियो टैगिंग के जरिए हम हाऊस बोटों, होटलों, रेस्तरां व गैस्ट हाऊस संख्या व उनकी गतिविधियों की नियंत्रित करेंगे। झील में गिरने वाले सीवरेज के असर की भी निगरानी हो सकेगी।

झील के संरक्षण में मिलेगी मदद
पारिस्थितिकी, पर्यावरण एवं सुदूर संवेदी विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. हुमायूं रशीद ने बताया कि पर्यटन विभाग के 10 कर्मियों को हमने जी.पी.एस. और जानकारी को रिकार्ड करने की ट्रेनिंग दी है। जी.पी.एस. ट्रैकर्स के जरिए हाऊस बोट की स्थिति का पता लगाने में सहायता मिलेगी। पर्यटन विभाग के निदेशक निसार अहमद वानी ने कहा कि जियो टैगिंग से हमें हाऊस बोटों, होटलों, रेस्तरां के सही आंकड़ों को जमा करने और झील के संरक्षण में मदद मिलेगी। यह झील में होने वाले अतिक्रमण से लेकर झील के साथ सटे इलाकों में भी अतिक्रमण को रोकेगा।

 


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Author

rajesh kumar

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