पाक की नापाक हरकतों के बावजूद ‘कश्मीर’ भारत का ताज

Wednesday, Jul 26, 2017 - 05:45 PM (IST)

श्रीनगर: भारत सन् 1947 में आजाद तो हो गया था, लेकिन यह आजादी भारत को पाकिस्तान से अलग होने की कीमत पर मिली थी। पाकिस्तान हिन्दुस्तान से अलग हो गया, लेकिन पाक की नापाक हरकतों के बावजूद ‘कश्मीर’ भारत का ताज है। कई सालों तक पाकिस्तान ने कश्मीर को चुराने की कई काशिशें कीं, लेकिन वर्ष 1999 में उसे ऐसी मुंह की खानी पड़ी थी। कारगिल युद्ध भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ एक महत्वपूर्ण युद्ध माना जाता है जो भारतीय सैनिकों की वीरता के लिए सदैव याद रखा जाएगा।

 

कारगिल युद्ध का इतिहास
मई 1999 में पाकिस्तानी सेना ने कारगिल जिले के द्रास सैक्टर में भारतीय सीमाओं में घुसपैठ की थी। भारतीय सेना ने पाकिस्तान की इस नापाक हरकत का मुंहतोड़ जवाब दिया। करीब 2 महीने तक चले इस युद्ध में भारतीय सेना के 527 अधिकारी एवं जवान शहीद हुए तथा 1363 सैनिक घायल हो गए, जिनमें जम्मू-कश्मीर के 71 वीर शामिल थे, लेकिन अंत में पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी और जीत भारत की हुई। 
ऑप्रेशन विजय की सफलता के बाद इस दिन को विजय दिवस का नाम दिया गया। विश्व के इतिहास में कारगिल युद्ध दुनिया के सबसे ऊंचे क्षेत्रों में लड़ी गई जंग की घटनाओं में शामिल है। कारगिल विजय दिवस के दिन उन शहीदों को याद कर उन्हें श्रद्धासुमन अॢपत किए जाते हैं जिन्होंने अपने प्राणों की परवाह न करते हुए मातृभूमि की रक्षा के लिए हंसते-हंसते अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। यह दिन उन महान सैनिकों को समर्पित है जिन्होंने अपना आज हमारे आने वाले सुखद कल के लिए बलिदान कर दिया। 

 

मातृभूमि पर अपने प्राण न्यौछावर करने वाले भारतीय सेना के जांबाज अधिकारियों एवं जवानों की पावन स्मृति में द्रास में स्मारक स्थल स्थापित किया गया है और हर वर्ष देश के विभिन्न भागों से कारगिल शहीदों के परिजन श्रद्धांजलि समारोह में भाग लेने के लिए द्रास पहुंचते हैं। 

 

ऑप्रेशन विजय में आर्टिलरी ने दिया बड़ा योगदान
ऑप्रेशन विजय में आर्टिलरी ने बड़ा योगदान दिया था। आर्टिलरी की बदौलत कारगिल विजय संभव हो सकी थी। कारगिल युद्ध में आर्टिलरी के 3 अधिकारी व 32 बहादुर सिपाहियों ने दुश्मनों से लोहा लेते हुए अपनी जान की बाजी लगा दी, जबकि इस युद्ध में पाकिस्तान के 69 अधिकारी एवं 772 जवान भी शहीद गए तथा 1000 पाकिस्तानी सैनिक घायल हो गए थे। आर्टिलरी के युवा कंपनी कमांडर ने जवानों का नेतृत्व करते हुए उनका हौसला बढ़ाया था। इस साहस व वीरता के लिए सेना प्रमुख द्वारा 11 इंफैंटरी बटालियन, आर्टिलरी रैजीमैंट की 3 यूनिटों, 141 फील्ड रैजीमैंट, 197 फील्ड रैजीमैंट, 108 मीडियम रैजीमैंटों को विशेष अवार्ड से सम्मानित किया गया।  

 

कारगिल युद्ध से नहीं ली कोई सीख
कारगिल युद्ध के समय पाकिस्तानी सेना नियंत्रण रेखा के जरिए बड़े पैमाने पर भारत में घुसपैठ कर रही थी। नियंत्रण रेखा के आस-पास बर्फीला दुर्गम क्षेत्र होने के कारण शुरूआती चरण में भारत को घुसपैठ की भनक भी नहीं लग पाई थी। पाकिस्तान जानता था कि भारत नियंत्रण रेखा पर कभी आक्रामकता नहीं अपनाएगा। ऐसी ही खामियों के चलते कश्मीर में आतंकी घुसपैठ करते हैं। अब भी कारगिल युद्ध से कोई सीख नहीं ली गई है। हर साल की तरह एक बार फिर 26 जुलाई को हम सब देशवासी कारगिल युद्ध के शहीदों को याद करेंगे, लेकिन शायद यह सब मात्र खानापूॢत से अधिक नहीं होगा। देश में आज भी कई शहीदों के परिवारवाले सरकारी सहायता के लिए दर-दर भटक रहे हैं। धीमी गति से चलती सरकारी योजनाओं का लाभ अक्सर इन शहीदों के परिवारों को बहुत देर बाद नसीब होता है। 

 

25 लाख शैल, बम एवं रॉकेटों का हुआ था इस्तेमाल 
आॢटलरी ने कारगिल युद्ध के दौरान 25 लाख यैल, बम एवं रॉकेट का इस्तेमाल किया था। अधिकारियों से मिली जानकारी के अनुसार आर्टिलरी द्वारा रोजाना 300 बंदूकों, मोर्टार व एम.बी.आर. एल.एल. से 5 हजार शैल, मोर्टर बम तथा रॉकेट प्रयोग में लाए जाते थे। युद्ध की विकट परिस्थितियों में दुश्मनी की गोलाबारी के दौरान जवानों के पास खाना खाने का भी समय नहीं था। 

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