केंद्र सरकार केसर क्रांति से बदलेगी कश्मीरियों की किस्मत, खेती से जुड़े 32 हजार किसान

Saturday, Nov 23, 2019 - 12:39 PM (IST)

श्रीनगर: केंद्र सरकार केसर क्रांति के बूते कश्मीर के किसानों की किस्मत बदलने में जुटी है। इसके साथ ही सैफरन मिशन के तहत अगले कुछ वर्षों में केसर का उत्पादन दोगुना करने का लक्ष्य है। इसका असर भी दिखा है और इस बार पिछले दस वर्षों का रिकॉर्ड टूटने की उम्मीद लगाई जा रही थी, परंतु मौसम ने झटका दे दिया है। नवम्बर माह के आरंभ में हुई बर्फबारी ने केसर की फसल को खासा नुक्सान पहुंचाया है।



कश्मीर का केसर दुनिया में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इसकी वजह से भारत केसर उत्पादन में ईरान के बाद दुनिया में दूसरे स्थान पर है। बाजार में केसर की कीमत डेढ़ से 3 लाख रुपए प्रति किलो है। आतंकवाद प्रभावित इस क्षेत्र में केंद्र सरकार केसर के माध्यम से किसानों का बेहतर भविष्य बनाने में जुटी है। प्रधानमंत्री के आह्वान के बाद स्पाइसिज बोर्ड ने जम्मू-कश्मीर सरकार के साथ मिल कर केसर निर्यात एवं विकास एजैंसी का गठन किया और रा४य का बागवानी विभाग भी सक्रिय हुआ। गौर रहे कि केसर के फूलों का संचय अक्तूबर-नवम्बर माह में होता है।

बर्फबारी से उत्पादन प्रभावित
कुछ वर्षों से नवम्बर माह के पहले सप्ताह में बर्फबारी हो रही है, जिससे उत्पादन प्रभावित हो रहा है। किसान अगर अगस्त माह में इसकी रोपाई का कार्य कर लें तो अक्तूबर माह में फूल ले सकते हैं। ऐसे में बर्फबारी से पहले वे अपनी फसल ले पाएंगे। केसर की खेती ढलान वाले क्षेत्रों में होती है और वहां पानी ठहरता नहीं है। ऐसे में बारिश के बाद किसान खेती शुरू करते हैं। प्रशासन टपका प्रणाली से सिंचाई को प्रोत्साहित कर रहा है।

दक्षिण व मध्य कश्मीर में होती है काश्त
केसर की काश्त दक्षिणी कश्मीर के पुलवामा और मध्य कश्मीर के बडग़ाम में अधिक की जाती है। घाटी में केसर की खेती 3700 हैक्टेयर जमीन में शुरू की गई है, जिसमें पुलवामा में 3650 हैक्टेयर व बडग़ाम जिले में 50 हैक्टेयर जमीन शामिल है। इसमें से 95 फीसदी केसर का पुलवामा में उत्पादन होता था। पुलवामा में केसर उत्पादन प्रति हैक्टेयर पांच किलोग्राम के आस-पास रहा है। वहीं श्रीनगर में यह दो किलोग्राम प्रति हैक्टेयर है। कश्मीर में करीब 32 हजार किसान केसर की खेती से जुड़े हैं।



केसर के उत्पादन में कमी
20 वर्षों में केसर के उत्पादन में कुछ कमी आई है। करीब 3700 हैक्टेयर से अधिक भूमि के लिए केसर मिशन शुरू किया गया था, लेकिन बाद में यह दायरा सिकुड़़कर 2700 हैक्टेयर तक जा पहुंचा। हालांकि एक समय में यह रकबा पांच हजार हैक्टेयर के करीब पहुंच गया था, परंतु उत्पादन गिरने पर बहुत से किसानों ने इससे किनारा कर लिया।



सब मौसम पर निर्भर
केसर उत्पादक एसो. के अध्यक्ष अब्दुल मजीद वानी ने कहा कि समय पर बारिश होना मतलब केसर की अ४छी पैदावार है। इस साल भी अ४छी फसल होने की उम्मीद थी, लेकिन बर्फबारी ने उम्मीदों पर पानी फेर दिया। वानी ने कहा कि अगर केसर के खेतों में बोरवैल लगाए जाएं तो हम अगस्त से ही खेती शुरू कर दें और अक्तूबर तक पैदावार समेट लें। शेर-ए-कश्मीर कृषि विश्वविद्यालय के प्लांट पैथोलॉजी विभाग के विज्ञानी अरशद अहमद टॉक ने कहा कि कई वर्षों से समय पर बारिश न होने के चलते केसर के उत्पादन को काफी धक्का पहुंचा था। सूक्ष्म सिंचाई से किसानों को केसर की मोड़ा जा सकता है।

rajesh kumar

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