क्रूर प्रथा ‘खतना’ के खिलाफ आवाज उठा रहीं ईराकी महिलाएं

Thursday, Jan 03, 2019 - 05:42 PM (IST)

बगदादः ईराक में महिलाएं अब खतना के खिलाफ आवाज उठा रही हैं। एक कुर्द गांव में भारी ठंड और बारिश के बावजूद एक महिला घर के दरवाजे के बाहर खड़ी है। वह वहां से हिलने को तैयार नहीं है क्योंकि उसे डर है कि उसके जाने के बाद उस घर में रहने वाली महिलाएं अपनी 2 बच्चियों का खतना कर देंगी। ईराक के कुर्द इलाके में महिलाओं और बच्चियों के खतने के खिलाफ जोरदार अभियान चलाने वाली ‘वादी’ एनजीओ. की कार्यकर्ता रसूल कई बच्चियों के लिए देवदूत जैसी हैं।

एक वक्त ईराक के कुर्द इलाके में महिलाओं के बीच खतना बहुत सामान्य बात थी लेकिन ‘वादी’ के अभियान ने काफी हद तक इसे लेकर महिलाओं की सोच बदली है और अब पूरे ईराक के मुकाबले कुर्द क्षेत्र में बच्चियों के खतने की संख्या में कमी आई है। रसूल क्षेत्रीय राजधानी अरबिल के पूर्व में स्थित शरबती सगीरा गांव में खतने के खिलाफ जागरूकता फैलाने और इस परंपरा को बंद कराने के लिए 25 बार जा चुकी हैं। ईराक के कुर्द इलाके की बात करें तो इसे महिलाओं के लिए बेहतर माना जाता है, लेकिन यहां भी दशकों से बच्चियों के खतने की परंपरा रही है। यूनिसेफ के अनुसार, 2014 में कुर्द क्षेत्र की करीब 58.5 प्रतिशत महिलाओं का खतना हुआ था।

 खतना आमतौर पर पुरूषों का किया जाता है। यह मुस्लिम धर्म में 'पाकी' के नाम पर किया जाता है, जिसे वैज्ञानिकों द्वारा भी इस आधार पर लाभदायक बताया है कि इसके द्वारा कई खतरनाक बीमारियों से बचा जा सकता है। परंतु लड़कियों के खतना एक निश्चित समुदाय में ही प्रचलित है जिसके कई बुरे प्रभाव भी देखें गए हैं जिसके चलते इस पर रोक लगाने की मांग जोर पर है।

क्या है स्त्री खतना
यह प्रथा बोहरा  मुस्लिम समुदाय में है जिसमें फीमेल जेनिटल कटिंग बचपन में ही काट दी जाती है। दरअसल वह अंग ही स्त्री की मासिक धर्म और प्रसव पीड़ा को कम करता है। बच्ची के हाथ-पैर कुछ औरतें पकड़तीं हैं और एक औरत चाकू या ब्लेड से उसकी भगनासा (क्लाइटोरल हुड) काट देती है। खून से लथपथ बच्ची महीनों तक दर्द से तड़फती रहती है। कई बार इस से बच्चियों की मौत भी हो जाती है।

Tanuja

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