ईरान के खिलाफ इजरायल-अमेरिका का बढ़ता दबाव, क्या अकेले लड़ेगा ईरान या सामने आएंगे सहयोगी?

punjabkesari.in Friday, Jun 20, 2025 - 05:27 PM (IST)

नेशनल डेस्क: पश्चिम एशिया में ईरान और इजरायल के बीच लगातार बढ़ रहे तनाव के बीच अब अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने भी ईरान पर अपना रुख और सख्त कर लिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई को धमकी देते हुए कहा है कि “हमें पता है वो कहां छिपे हैं और हम उन्हें आसानी से निशाना बना सकते हैं।” ट्रंप ने खामेनेई से “बिना शर्त आत्मसमर्पण” की मांग की है।

वैश्विक दबाव में ईरान
इस बीच जर्मनी, कनाडा, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया जैसे प्रमुख पश्चिमी देशों ने ईरान से उसके परमाणु कार्यक्रम को पूरी तरह समाप्त करने की मांग की है। लगातार अंतरराष्ट्रीय दबाव और इजरायली हमलों के बीच यह सवाल उठने लगा है कि क्या ईरान को इस संघर्ष में अकेले लड़ना पड़ेगा?

'प्रतिरोध आधार' पर संकट
ईरान ने वर्षों से अपने 'प्रतिरोध आधार' (Resistance Axis) की मदद से क्षेत्र में प्रभाव बनाए रखा, जिसमें लेबनान का हिज़्बुल्ला, इराक की पॉपुलर मोबिलाइजेशन फोर्स (PMF), यमन के हूती विद्रोही और ग़ज़ा का हमास जैसे संगठन शामिल हैं। हालांकि, इजरायल ने पिछले दो सालों में इन सहयोगियों को रणनीतिक रूप से कमजोर कर दिया है। हिज़्बुल्ला के हथियार ठिकानों को नष्ट किया गया, और इसके प्रमुख नेता हसन नसरल्लाह की हत्या ने मनोवैज्ञानिक झटका दिया।

सीरिया में बशर अल-असद सरकार के पतन के बाद ईरानी मिलिशिया को पीछे हटना पड़ा। यह ईरान के लिए एक और बड़ा झटका है। हालांकि, इराक और यमन में ईरानी प्रभाव अभी भी मजबूत बना हुआ है — जहां इन सहयोगी समूहों के पास दो-दो लाख से ज्यादा लड़ाके हैं।

पाकिस्तान और ईरान की बढ़ती नजदीकियां
ईरान ने इजरायली हमलों के जवाब में हाल ही में पाकिस्तान से करीबी बढ़ाने की कोशिश की है। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने ईरान को “अटूट समर्थन” देने की बात कही है, जबकि रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने कहा है कि इजरायली को “पाकिस्तान से भिड़ने से पहले कई बार सोचना पड़ेगा।” हालांकि, पाकिस्तान तनाव को कम करने के लिए कूटनीतिक प्रयास भी कर रहा है और चीन जैसे रणनीतिक साझेदारों के साथ मिलकर युद्ध रोकने की कोशिश में है।

कूटनीति की राह और वैश्विक स्थिति
ईरान ने सऊदी अरब, मिस्र और तुर्किये जैसे पुराने प्रतिद्वंद्वियों के साथ संबंध सुधारने की पहल की है। लगभग 24 मुस्लिम देशों ने मिलकर इज़रायल की कार्रवाई की निंदा की है, लेकिन इनमें से कोई भी देश अब तक ईरान को प्रत्यक्ष सैन्य सहयोग देने के लिए सामने नहीं आया है।

रूस और चीन जैसे वैश्विक साझेदारों ने भी इज़रायली हमलों की निंदा की है और संयुक्त राष्ट्र में ईरान को बचाने की भूमिका निभाई है। लेकिन वे भी फिलहाल प्रत्यक्ष सैन्य हस्तक्षेप से दूरी बनाए हुए हैं। यदि अमेरिका ने वास्तव में सत्ता परिवर्तन की रणनीति को अपनाया, तो ईरान के सहयोगियों की भूमिका और व्यापक युद्ध की आशंका और बढ़ सकती है।


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Content Editor

Harman Kaur

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