ऑस्ट्रेलिया संसदीय चुनाव में बड़ा उलटफेर, सत्तारूढ़ लिबरल गठबंधन ने की सत्ता में वापसी

Sunday, May 19, 2019 - 08:14 AM (IST)

मेलबोर्न: ऑस्ट्रेलिया में हुए संसदीय चुनाव में एक बड़ा उलटफेर हुआ है। सत्तारूढ़ लिबरल गठबंधन ने चुनाव में निर्णायक बढ़त हासिल कर ली है। समाचार लिखे जाने तक 151 सदस्यीय संसद में लिबरल गठबंधन 75 सीटों पर आगे चल रहा था जबकि विपक्षी लेबर पार्टी को 63 सीटों पर बढ़त हासिल थी। इस बढ़त के बाद विपक्षी नेता बिल शॉर्टन ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। बताया जा रहा है कि लिबरल की जीत के पीछे क्वींसलैंड का बहुत बड़ा हाथ है। यहां शुरू से परिणाम बहुत स्पष्ट था। 

लिबरल नैशनल पार्टी ने दक्षिण-पूर्व क्वींसलैंड और इसके आगे पूर्वी तट तक दो तिहाई सीटें प्राप्त की हैं। शाम को चुनाव के लिए मतदान बंद होते ही वोटों की गिनती शुरू हो गई। हालांकि चुनाव के शुरूआती परिणाम लेबर पार्टी के पक्ष में थे लेकिन क्वींसलैंड राज्य ने एक बार फिर लिबरल पार्टी का साथ दिया और स्कॉट मॉरिसन के एक बार फिर पी.एम. बनने पर मुहर लगा दी।  चुनाव के शुरूआती परिणाम आने के बाद जैसे ही पी.एम. स्कॉट मॉरिसन जनता से बात करने के लिए मंच पर आए, लोगों ने ‘स्कोमो, स्कोमो’ के नारे से उनका अभिवादन किया। लिबरल पार्टी के मुख्यालय पर लोग हजारों की संख्या में एकत्र हो गए हैं। लोगों का कहना है कि एक बड़ा उलटफेर करते हुए बिना अधिक पैसे और बिना किसी उम्मीद के स्कॉट मॉरिसन ने लिबरल पार्टी को जीत में वापस खींच लिया। 

ऑस्ट्रेलियाई कंजरवेटिव प्रधानमंत्री ने चुनावी जीत को बताया ‘चमत्कार' 
ऑस्ट्रेलिया के कंजरवेटिव प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने शनिवार को चुनाव में उनकी पार्टी की ‘चमत्कारिक' जीत के लिए ‘शांत ऑस्ट्रेलियाई लोगों' की प्रशंसा की। विपक्षी लेबर पार्टी ने चुनाव में हार स्वीकार कर ली है। मॉरिसन एक छुपे रुस्तम के रूप में चुनावी प्रक्रिया में शामिल हुए थे लेकिन एक कठिन प्रचार अभियान के बाद उन्होंने लिबरल-नेशनल गठबंधन के छह साल के शासन के विस्तार की सभी बाधाओं को दूर कर दिया। उन्होंने सिडनी में समर्थकों से कहा,‘मैंने हमेशा चमत्कारों में विश्वास किया है। ऑस्ट्रेलिया कितना अच्छा है।

 

वोटिंग नहीं करने पर वोटर से जवाब मांगती है सरकार 
वोटिंग नहीं करने पर सरकार वोटर से जवाब मांगती है। संतोषजनक जवाब या उचित कारण नहीं मिलने पर करीब 1000 रुपए का जुर्माना लगाती है। इससे नियम का कुछ संगठन विरोध भी करते हैं। वे कहते हैं कि यह लोकतंत्र के मूलभूत आधार मतलब आजादी के खिलाफ है। इस नियम के समर्थक कहते हैं कि सरकार चुनने में जनता की भागीदारी अहम होनी चाहिए। ऑस्ट्रेलिया में हर तीन साल में आम चुनाव होते हैं। सरकार वोटिंग बढ़ाने के लिए वोटरों की सुविधा पर ध्यान देती है। जिन नागरिकों के पास अपने घर नहीं हैं, वे यात्री वोटर के तौर पर खुद का रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं। अस्पताल में भर्ती वोटर पोस्टल बैलेट से वोटिंग कर सकते हैं। जो लोग वोटिंग के दिन बूथ पर पहुंचने में असमर्थ हैं, उनके लिए अर्ली वोटिंग सिस्टम की सुविधा है। बता दें कि 23 देशों में वोटिंग अनिवार्य है।

ऑस्ट्रेलिया में 12 साल में  बने 6  प्रधानमंत्री

  • 2007 से केविन रड 934 दिन पीएम रहे थे।
  • जूलिया गिलार्ड 2010 से 1099 दिन तक पद पर रहीं।
  • रड 2013 में फिर पीएम चुने गए, पर 83 दिन ही रहे।
  • 2013 में टोनी एबट आए। उनका टर्म 727 दिन रहा।
  • मैल्कम टर्नबुल 2015 में आए। 1074 दिन बाद पद छोड़ना पड़ा।
  • 2018 में स्कॉट मॉरिसन 270 दिन के पीएम बने।

 

 इस बार चुनाव में जलवायु नीति का मुद्दा अहम है। देश में 1.6 करोड़ से 1.7 करोड़ लोगों के मताधिकार का इस्तेमाल करने की उम्मीद है। विपक्षी मध्य-वाम लेबर पार्टी जीत की ओर बढ़ती दिखाई दे रही है। प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बिल शॉर्टन ने मेलबर्न में अपना वोट डालने के बाद बहुमत की सरकार बनाने की उम्मीद जताई। अंतिम चुनाव में वह बढ़त हासिल करते हुए दिख रहे हैं। कुछ सप्ताह पहले प्रधानमंत्री स्कॉट मोरिसन की कंजर्वेटिव लिबरल्स चुनावी हार की ओर बढ़ते दिख रहे थे लेकिन उन्होंने तीव्र नकारात्मक प्रचार के साथ इस खाई को भरने की कोशिश की।   

Tanuja

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