‘डेंगू विषाणु पर मौजूदा टीकों और उपचार का असर हो रहा है कम''

Monday, Sep 23, 2019 - 12:24 PM (IST)

ह्यूस्टन/सिडनीः दुनिया भर में, खासकर उष्णकटिबंधीय और उप-उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में हर साल करीब 40 करोड़ लोगों को संक्रमित करने वाले मच्छर जनित घातक डेंगू विषाणु पर, बदलाव के कारण टीकों और चिकित्सा का असर कम हो रहा है। ‘पीएलओएस पैथोजेन्स' पत्रिका में प्रकाशित एक अनुसंधान में यह दावा किया गया है। वाहक मच्छर के 29 डिग्री सेल्सियस के शारीरिक तापमान में इस विषाणु के डीईएनवी 2 स्ट्रेन के ‘स्मूथ स्फेरिकल सरफेस पार्टिकल्स' (चिकनी सतह वाले कण) होते हैं। अ

 

मेरिका की ‘टेक्सास मेडिकल ब्रांच यूनिवर्सिटी' के प्रोफेसर पी योंग शी समेत अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार, ये ‘स्मूद पार्टिकल' 37 डिग्री सेल्सियस के मानवीय शारीरिक तापमान में ‘बम्पी पार्टिकल' (असमतल कण) में बदल जाते हैं। अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार आकार बदलने की इस क्षमता की वजह से विषाणु मनुष्य की प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावित करता है। इसके उपचार और टीके को विकसित करने के लिए विषाणु के आकार बदलने के पीछे के तंत्र को समझना आवश्यक है।

 

उन्होंने सचेत किया कि पहले से मौजूद टीके और उपचार इन बदलावों के कारण इस विषाणु के लिए अप्रभावी हो सकते हैं। सिंगापुर मेडिकल स्कूल की ‘ड्यूक नेशनल यूनिवर्सिटी' में प्रोफेसर शीमेई लोक ने कहा कि यह अध्ययन डेंगू बीमारी के उपचार और उसके लिए टीका विकसित करने को एक नई दिशा देता है। उन्होंने कहा कि डेंगू संक्रमण से पहले ही उसके लिए प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने के लिए ऐसे टीकों को विकसित किया जाना चाहिए जो चिकनी सतह वाले विषाणु पर प्रभावी हो, जबकि डेंगू पीड़ित मरीजों पर ऐसी उपचार पद्धतियों का प्रयोग किया जाना चाहिए जो असमतल सतह वाले कणों पर प्रभावशाली हो।

Tanuja

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