खतरे में अमेरिकी लोकतंत्र: US के प्रमुख अखबारों ने चुनाव प्रचार का किया "बॉयकाट", नहीं दिया किसी उम्मीदवार को समर्थन !

punjabkesari.in Monday, Oct 28, 2024 - 05:43 PM (IST)

मेलबर्नः अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव निर्णायक मोड़ पर हैं और इस बीच अमेरिका (US) के दो प्रमुख समाचार पत्रों, ‘द वाशिंगटन पोस्ट’ (The Washington Post)और ‘द लॉस एंजेलिस टाइम्स’ ( The Los Angeles Times) ने आगामी राष्ट्रपति चुनाव प्रचार के बॉयकाट यानि किसी भी उम्मीदवार का समर्थन न करने का निर्णय लिया है, जिसे कई विशेषज्ञ लोकतंत्र के लिए दुर्भाग्यपूर्ण मानते हैं। यह निर्णय उन समय में आया है, जब देश गंभीर राजनीतिक चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिसके कारण इसको ‘कायरता’ के रूप में देखा जा रहा है।फरवरी 2017 में, जब डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में पदभार संभाला था तो ‘द वाशिंगटन पोस्ट' ने अपने 140 साल के इतिहास में पहली बार यह नारा अपनाया था, ‘‘लोकतंत्र अंधकार में मर जाता है।'' कैसी विडंबना है कि अब यह अखबार आगामी राष्ट्रपति चुनाव के लिए किसी भी उम्मीदवार का समर्थन नहीं करके अमेरिकी लोकतंत्र की लौ को बुझाने में लगा है।

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‘द वाशिंगटन पोस्ट' और अमेरिका के तीन बड़े समाचार पत्रों में से दूसरे सबसे बड़े अखबार ‘द लॉस एंजिलिस टाइम्स' द्वारा लिया गया ऐसा ही निर्णय, पत्रकारिता को अपमानित कर रहा है, समाचार पत्रों की अपनी विरासत को अपमानित कर रहा है और ऐसे समय में नागरिक जिम्मेदारी का परित्याग दर्शाता है जब अमेरिका गृहयुद्ध के बाद से अपने सबसे महत्वपूर्ण राष्ट्रपति चुनाव का सामना कर रहा है। अब प्रश्न यह है कि क्या अमेरिका एक कार्यशील लोकतंत्र बना रहेगा या एक भ्रष्ट धनतंत्र में बदल जाएगा जिसका नेतृत्व एक दोषी अपराधी कर रहा है जिसने पहले ही राष्ट्रपति चुनाव को पलटने के लिए हिंसा भड़काई थी है और उन परंपराओं के प्रति अवमानना ​​दिखाई, जिन पर लोकतंत्र टिका हुआ है। रॉबर्ट कैगन, ‘द वाशिंगटन पोस्ट’ के संपादक-एट-लार्ज, ने हैरिस का समर्थन न करने के फैसले के खिलाफ इस्तीफा दे दिया, जबकि अन्य पत्रकार भी इस निर्णय पर सवाल उठा रहे हैं। अखबारों के मालिक अरबपति व्यवसायी हैं, और कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आर्थिक दबाव इनकी पत्रकारिता पर भारी पड़ रहा है।

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ट्रम्प ने चुनावी रैलियों के दौरान मीडिया को धमकी दी है, और यह माना जा रहा है कि यदि वे फिर से राष्ट्रपति बने, तो उन मीडिया संस्थानों से प्रतिशोध ले सकते हैं जो उनका विरोध करते हैं। ऐसे माहौल में, ये अखबार अपनी आर्थिक सुरक्षा की रक्षा के लिए चुनावों में उम्मीदवारों का समर्थन नहीं कर रहे हैं। ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ एकमात्र ऐसा प्रमुख अखबार है जो कमला हैरिस का समर्थन कर रहा है। यह स्थिति दर्शाती है कि अमेरिका में लोकतंत्र अब एक चुनौती के दौर से गुजर रहा है।इस प्रकार, इस समय, प्रमुख अमेरिकी समाचार पत्रों का निर्णय और अनास्था स्थानीय लोकतंत्र की आधारशिला, यानी स्वतंत्र प्रेस, पर सवाल उठाता है। लोकतंत्र में मीडिया का महत्वपूर्ण कार्य है कि वो मतदाताओं को सही जानकारी प्रदान करे और चुनाव के प्रति जागरूकता बनाए रखे। ऐसे में, यह सवाल उठाना स्वाभाविक है कि क्या अमेरिका वास्तव में एक कार्यशील लोकतंत्र बना रहेगा या यह एक धनतंत्र में बदल जाएगा?

 

 

दोनों अखबारों ने  ऐसा क्यों किया?
पश्चिमी दुनिया के दो बेहतरीन समाचार पत्रों ने इतना लापरवाही भरा गैर-जिम्मेदाराना निर्णय क्यों लिया होगा? यह डोनाल्ड ट्रम्प और कमला हैरिस के कार्यालय के लिए संबंधित योग्यता के किसी भी तर्कसंगत आकलन के आधार पर नहीं हो सकता है। यह उम्मीदवारों की अपनी रिपोर्टिंग और विश्लेषण के आधार पर भी नहीं हो सकता है, जहां ट्रम्प द्वारा जारी किए गए झूठ और धमकियों को निडरता से रिकॉर्ड किया गया है। इस संदर्भ में, किसी उम्मीदवार का समर्थन न करने का निर्णय अपने ही संपादकीय कर्मचारियों के साथ विश्वासघात है। ‘द वाशिंगटन पोस्ट' के संपादक-एट-लार्ज, रॉबर्ट कैगन ने हैरिस का समर्थन न करने के अखबार के फैसले के विरोध में इस्तीफा दे दिया । इस सबकी एक मात्र व्यवहार्य व्याख्या यह हो सकती है कि संभवत: यह कायरता और लालच का मिलाजुला रूप है। दोनों अखबारों के मालिक अरबपति अमेरिकी व्यवसायी हैं।

 

‘द वाशिंगटन पोस्ट' के मालिक जेफ बेजोस हैं जो अमेज़ॉन के भी मालिक हैं, वहीं ‘द लॉस एंजिलिस टाइम्स' का स्वामित्व जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र के उद्योगपति पैट्रिक सून-श्योंग के पास है। बेजोस ने 2013 में अपनी निजी निवेश कंपनी नैश होल्डिंग्स के माध्यम से ‘द वाशिंगटन पोस्ट' को खरीदा, और सून-श्योंग ने 2018 में अपनी निवेश फर्म नैन्ट कैपिटल के माध्यम से ‘द लॉस एंजिलिस टाइम्स' को खरीदा। अगर ट्रम्प राष्ट्रपति बनते हैं और उनके प्रति शत्रुतापूर्ण रवैया रखते हैं तो दोनों के आर्थिक रूप से नुकसान उठाने का व्यक्तिगत जोखिम है। चुनाव अभियान के दौरान, ट्रम्प ने मीडिया में उन लोगों के खिलाफ प्रतिशोध की कई धमकियां दी हैं जो उनका विरोध करते हैं।

 

उन्होंने संकेत दिया है कि अगर वह व्हाइट हाउस में वापसी करते हैं, तो वह उनके खिलाफ रुख अपनाने वाले मीडिया संस्थानों से बदला ले सकते हैं, नाराज करने वाले पत्रकारों को जेल में डाल सकते हैं और प्रमुख टेलीविजन नेटवर्क का कवरेज पसंद नहीं आने पर उनके प्रसारण लाइसेंस छीन सकते हैं। जाहिर है कि इन धमकियों भरे संकेतों के मद्देनजर मीडिया ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने का विरोध करने के लिए अपनी पूरी शक्ति लगा देगा। वह अगर लोकतंत्र और आजादी से अभिव्यक्ति के सम्मान के लिए ऐसा नहीं करेगा तो कम से कम आत्म-संरक्षण के हित में ऐसा कर सकता है। अमेरिकी प्रेस के इन दो दिग्गज अखबारों को धनी व्यापारियों द्वारा खरीदना इंटरनेट और सोशल मीडिया द्वारा पेशेवर जन मीडिया पर डाले गए वित्तीय दबाव का परिणाम है।  


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Content Writer

Tanuja

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