संयुक्त राष्ट्र ने खाने की बर्बादी पर जताई चिंता, कहा- इस पर लगाम लगाना जरूरी

Wednesday, Jun 15, 2022 - 05:43 PM (IST)

मेलबर्न:  दुनिया में बढ़ते खाद्य संकट के बीच, वैज्ञानिक इस बात की पड़ताल कर रहे हैं कि हम खाने की बर्बादी को कैसे कम कर सकते हैं। दुनिया खाद्य संकट के बीच में है। जनवरी से गेहूं कीमत दोगुनी हो गई है। केला, मक्का और सोयाबीन जैसी अन्य खाद्य ‍वस्तुओं के दाम सर्वाधिक उच्चतम स्तर पर हैं। मलेशिया ने मुर्गे (चिकन) का भंडारण शुरू कर दिया है । 100 से ज्यादा देशों में वर्ष 2000 की तुलना में 2021 में अधिक आबादी के पास खाने की कमी है। इसके बावजूद संयुक्त राष्ट्र और कृषि संगठन के अनुमान के मुताबिक, पैदा होने वाला करीब 30 फीसदी खाद्यान्न कभी भी खाने की प्लेट तक नहीं पहुंच पाता है, लिहाज़ा इसकी पैदावार करने में लगने वाला पानी, भूमि, खनिज जैसे संसाधन बर्बाद हो जाते हैं।

 

खाद्यान्न का वितरण प्रभावी आपूर्ति श्रंखला और उचित पैकिंग पर निर्भर करता है जिससे यह जहां पैदा हुआ है, वहां से उस स्थान तक पहुंच सके जहां इसे खाया जाएगा। विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में खाद्य सामान की ज्यादातर बर्बादी खेत और बाजार के बीच होती है। खाद्य सामान को खराब तरीके से रखना, खराब तरीके से पैक करना और बेमेल आपूर्ति श्रृंखला की वजह से खाने की चीज़ें खराब होती हैं। वहीं दूसरी ओर, विकसित अर्थव्यवथाओं में खाद्य सामान की बर्बादी बाजार और खाने की मेज़ के बीच होती है। दरअसल, लोग बहुत ज्यादा सामान खरीद लेते हैं और उसे उचित तरीके से रखते नहीं हैं।

 

खाद्य सामान को प्लास्टिक में पैक करके बर्बाद होने से बचाया जा सकता है लेकिन इसमें पर्यावरण को लेकर चिंताएं व्यक्त की जाती हैं। खाद्यान्न् को पैदा करने के लिए उपयोग किए जाने वाले संसाधन पैकेजिंग बनाने के लिए उपयोग किए गए संसाधनों से कहीं अधिक हैं। खाद्य सामान का बर्बाद होना प्लास्टिक से ज्यादा चिंताजनक हो सकता है। अलग अलग खाद्य सामग्री को बनाने में अलग अलग तरह की स्थितियों की जरूरत होती है, इसी तरह उन्हें पैक करना और सुरक्षित करना भी खाद्य सामान पर निर्भर करता है। वास्तविकता की जांच

 

यूरोप और उत्तरी अमेरिका में प्रत्येक व्यक्ति साल में 95 से 115 किलोग्राम खाने के सामान को बर्बाद करता है जबकि उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में यह प्रति वर्ष छह से 11 किलोग्राम है। इस तरह के पूर्वानुमान हैं कि दुनिया की आबादी सात अरब से बढ़कर 2050 तक नौ अरब हो जाएगी। इसके मद्देनजर खाद्य आपूर्ति को भी 2007 की तुलना में 77 फीसदी बढ़ाने की जरूरत होगी। वैश्विक प्लास्टिक रेज़िन का उत्पादन 1950 के 17 लाख टन प्रति वर्ष से बढ़कर 2017 में लगभग 34.8 करोड़ टन हो गया है। बड़े विचार

 

कार्लस्टेड विश्वविद्यालय की हेलेन विलियम्स ने कहा, “ खाद्य की बर्बादी का विश्लेषण किए बिना खाद्य की पैकेजिंग को कम करने से पर्यावरणीय और सामाजिक गड़बड़ी पैदा हो सकती है। खाद्य और उसकी पैकेजिंग को एक ही इकाई समझने की जरूरत है।” आरएमआईटी विश्वविद्यालय के साइमन लॉकरे ने कहा, “ उपभोक्ताओं को भी शिक्षित करने की जरूरत है।”  

Tanuja

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