पैदा होते ही मर जाते हैं दुनिया के 10 लाख बच्चे, जानें वजह!

Wednesday, Jun 29, 2016 - 09:08 PM (IST)

नई दिल्ली: विभिन्न तरह के संक्रमणों के कारण पिछले साल दुनिया के 10 लाख नवजात शिशुओं ने जन्म लेते ही दम तोड़ दिया। संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनीसेफ) की ताजा रिपेार्ट में यह तथ्य सामने आया है। रिपोर्ट के अनुसार इन बच्चों में से पांच वर्ष से कम आयु वाले 5 लाख बच्चों में से आधे ऐसी बीमारियों का ग्रास बन गए जिन्हें समय रहते एहतियाती उपाय कर रोका जा सकता था। रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि अगर इन बीमारियों की रोकथाम नहीं की गई तो 2030 तक इनसे मरने वाले शिशुओं की संख्या बढकर 6 करोड़ 90 लाख हो जाएगी।

यूनीसेफ के अनुसार जो बीमारियां शिशुओं के लिए जानलेवा साबित होंगी उनमें निमोनिया, पेचिश, मलेरिया, मस्तष्क ज्वर, टेटनस, चेचक और सेप्सिस प्रमुख होंगे। रिपोर्ट के अनुसार पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका, मध्य अफ्रीका तथा दक्षिण और पश्चिमी एशियाई क्षेत्र में पांच साल से कम आयु के शिशुओं की मौत का मुख्य कारण निमोनिया और पेचिश जैसी बीमारियां रही हैं। इन बीमारियों से मरने वाले बच्चे ज्यादातर गरीब तबके के रहे। यूनीसेफ का कहना है कि आर्थिक तंगी के कारण 2030 तक 16 करोड़ 70 लाख शिशु बेहद गरीबी के हालात में जीने को मजबूर होंगे।  

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार दक्षिण एशिया में केवल शिशु मृत्यु दर ही नहीं बल्कि नवजातों की मृत्यु दर भी दुनिया के अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा काफी ज्यादा है। समय के साथ शिशु मृत्यु दर के मामले एक क्षेत्र विशेष में केन्द्रित होते जा रहे हैं। साल 2015 में जहां 80 प्रतिशत ऐसे मामले दक्षिण एशिया और उपसहारा अफ्रीकी क्षेत्र में हुए। इनमें से आधे डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, इथोपिया, भारत, नाइजीरिया और पाकिस्तान में देखने को मिले। यूनीसेफ की रिपोर्ट में बंधुआ बाल मजदूरी का विशेष जिक्र करते हुए कहा गया है कि आज के आधुनिक युग में भी यह प्रथा अपने क्रूरतम रूपों में जीवित है। विकसित देशों में भी यह मौजूद है। 

रिपोर्ट में ताजा आंकड़ों के हवाले से कहा गया है कि दुनिया में इस समय 15 करोड़ बाल मजदूर हैं। करीब पांच करोड 60 लाख बच्चे 2014 में स्कूल की पढ़ाई बीच में ही छोड़ गए। हर साल अठारह वर्ष से कम आयु की एक करोड़ 50 लाख बच्चियों का जबरन विवाह किया जा रहा है। शारीरिक रूप से अक्षम लाखों बच्चे अपनी इस स्थिति के कारण हाशिए पर धकेले जा रहे हैं या फिर शिक्षा से वंचित हो रहे हैं।

Advertising