सीरिया और मिडिल ईस्‍ट को लेकर असमंजस में ट्रंप

Saturday, Apr 07, 2018 - 06:33 PM (IST)

वॉशिंगटनः कुछ ही दिन पहले अमरीकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप ने सीरिया से अपनी फौज को वापस बुलाने की बात कही थी। इसके साथ ही उन्‍होंने सीरिया से आईएस का पूरी तरह से खात्‍मा होने तक अमरीकी सेना के करीब दो हजार जवानों को सीरिया में ही तैनात रखने की भी बात कही थी लेकिन  सीरिया और मिडिल ईस्‍ट को लेकर  ट्रंप अब असमंजस में फंसे नजर आ रहे  हैं। ऐसा इसलिए है क्‍योंकि  ट्रंप के इसी फैसले ने रक्षा जानकारों की निगाह में कंफ्यूज्‍ड बना दिया है। 

 दरअसल ट्रंप द्वारा अमरीकी फौज को वापस बुलाने की घोषणा के बावजूद इस बात का खुलासा नहीं किया गया था यह कब से होगा और कब तक फौज को वापस बुला लिया जाएगा। न ही इसका कोई प्‍लान बताया गया था जिससे यह साफ हो पाता कि आखिर कितने दिनों तक ऐसा चलता रहेगा और उनकी आखिर रणनीति क्‍या है। अमेरिकी रक्षा विभाग के पूर्व रक्षा विश्‍लेषक माइकल मालूफ मिडिल मानते हैं कि मिडिल ईस्‍ट और खासकर सीरिया को लेकर अमरीका री तरह से कंफ्यूज्‍ड है कि क्‍या किया जाए और क्‍या नहीं।

माइकल की निगाह में अमरीका और सऊदी अरब का साथ आना कुछ और ही कहानी बयां कर रहे हैं। दरअसल अमरीका ने सऊदी अरब के साथ 180 स्वत: संचालित हथियार प्रणाली के समझौते को मंजूरी दे दी है। 1.31 अरब डॉलर के इस समझौते को दुनिया का सबसे बड़ा हथियार सौदा बताया जा रहा है। पिछले साल अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सऊदी अरब यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच 110 अरब डॉलर का समझौता हुआ था। अब उसे बढ़ाकर 1.31 अरब डॉलर कर दिया गया है। यह इसलिए भी बेहद खास है क्‍योंकि सीरिया में हमला करने वालों सऊदी अरब भी शामिल है।

माइकल का कहना है कि सीरिया की सरकार ने आईएस और विद्रोही गुटों के खिलाफ लड़ने के लिए ईरान और रूस की सेना को अपने यहां बुलाया था। लेकिन अमरीका को सीरिया ने नहीं बुलाया। इसके बाद भी अमरीका ने वहां पर न सिर्फ अपनी फौज भेजी बल्कि हमले भी किए। अमरीकी सरकार द्वारा किए गए इस निर्णय का साथ अमरीकी सीनेट ने भी कभी नहीं दिया है। वह भी हमेशा से ही इसके खिलाफ रही है। हालांकि ट्रंप ने फौजों की वापसी का जो फैसला लिया है वह वादा उन्‍होंने अपनी चुनावी रैलियों में किया था। अब वह उसको ही पूरा भी कर रहे हैं।


 

Tanuja

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