निपाह से ज्यादा घातक  है ये वायरस,  100 साल पहले 7 लाखों लोगों की ली थी जान

Thursday, May 24, 2018 - 03:38 PM (IST)

वॉशिंगटनः भारत के केरल राज्य में इन दिनों निपाह वायरस का प्रकोप छाया हुआ है। इससे अभी तक एक दर्जन लोगों की जान जा चुकी है। हालांकि इसे लेकर अन्‍य राज्‍य भी अलर्ट हो गए हैं लेकिन 100 साल पहले ऐसा ही एक वायरस आया था जो बहुत घातक था। ये पहले विश्‍व युद्ध के समय की बात है। इसे स्‍पेनिश वायरस या स्‍पेनिश फ्लू के नाम से भी जाना जाता है। यह इतनी तेजी से फैला था कि लाखों लोग इसकी चपेट में आ गए थे।

बताया जाता है कि इस वायरस से मरने वालों की संख्‍या तो युद्ध में मारे जाने वालों से भी अधिक थी। इस वायरस ने सबसे अधिक कहर अमरीका में बरपाया था। एक अनुमान के मुताबिक यहां पौने सात लाख नागरिकों की मौत इस वायरस से हुई थी। जब इसका संक्रमण फैलता था तो इसके लक्षण समझ में नहीं आ पाते थे। धीरे-धीरे यह अपना असर दिखाना शुरू कर देता। भीषण संक्रमण की अवस्‍था में कुछ घंटों में ही मरीज की मौत हो जाती थी।

चूंकि इस वायरस से निपटने का कोई उपाय नहीं था, ऐसे में सरकारों ने स्‍कूल, बाजार आदि बंद करा दिए थे ताकि बड़े पैमाने पर लोग इससे संक्रमित होने से बच सकें। इसके बावजूद इस वायरस ने लाखों लोगों को अपना शिकार बनाया। उस समय इस रोग ने महामारी का रूप ले लिया था। नगरीय से लेकर ग्रामीण आबादी सभी इसकी चपेट में आ गई थी। अमरीका में अलास्‍का का आंचलिक क्षेत्र पूरी तरह प्रभावित हो गया था।

 क्या है निपाह वायरस ?
साल 1998 में पहली बार मलेशिया के कांपुंग सुंगई निपाह में इस वायरस के मामले सामने आए थे। इस वजह से इसका नाम निपाह वायरस दिया गया। वहां सुअरों को इस वायरस के वाहक के रूप में पाया गया था। इसके बाद सुअरों के संपर्क में आने के बाद बकरी, कुत्ते, बिल्ली, घोड़े और भेड़ जैसे घरेलू जानवरों में भी यह वायरस पाया गया था।

ऐसे फैलता है :  जो लोग सुअरों के पालन का काम करते हैं और सुअर खाते हैं। चमगादड़ों के संपर्क में आने वाले किसान। चमगादड़ों के खाए हुए फलों को खाने से।  जो लोग निपाह वायरस से संक्रमित हैं, उनके संपर्क में आने से।

शुरुआती लक्षण:  प्रारंभिक लक्षण पता नहीं चलते हैं। अचानक तेज बुखार, सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द, मतली और उल्टी होने को शुरुआती लक्षण माना जा सकता है। गर्दन अकड़ने लगती है और फोटोफोबिया भी देखा जाता है। मरीज की हालत तेजी से खराब होने लगती है और उसे होश नहीं रहता है।  पांच से सात दिन में मरीज कोमा में चला जाता है। इसके बाद भी यदि हालत नहीं सुधरी, तो मरीज की मृत्यु हो जाती है।

ईलाज:  सपोर्टिक केयर ही इलाज का मुख्य आधार है और संक्रमित रोगियों को गहन देखभाल निगरानी की जाती है।   इस संक्रमण के लिए कोई स्पष्ट इलाज या दवा अभी तक नहीं खोजी जा सकी है। इसलिए बचाव ही बीमारी से बचने का एकमात्र इलाज है।

Tanuja

Advertising