श्रीलंका में राजनीतिक उठापटक से बढ़ी भारत की परेशानी
Sunday, Oct 28, 2018 - 06:54 PM (IST)
कोलंबोः श्रीलंका में चल रही राजनीतिक उठापटक पर भारत की पैनी नजर है क्योंकि पड़ोसी मुल्कों में चल रही राजनीतिक अस्थिरता भारतीय विदेश नीति के लिए बड़ी चुनौती बनती जा रही है। चीन और पाकिस्तान की चुनौती के साथ ही मालदीव से पिछले कुछ वक्त में नई दिल्ली को मुश्किल परिस्थितियां मिलीं और अब श्री लंका में चल रहा सियासी भूचाल से भारत की परेशानी बढ़ सकती है। हालांकि, भारत ने इस वक्त श्री लंका के लिए वेट ऐंड वॉच पॉलिसी पर चलने का फैसला किया है। श्री लंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना ने संसद को 16 नवंबर तक के लिए भंग कर दिया है। प्रधानंत्री रानिल विक्रमसिंघे को बर्खास्त कर महिंदा राजपक्षे को श्री लंका का नया पीएम नियुक्त किया गया है।
श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने शुक्रवार शाम प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। राजपक्षे को मौजूदा राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना ने शपथ दिलाई। राजपक्षे के साथ विपक्षी सांसद भी मौजूद थे। राजपक्षे की अगुआई वाले यूनाइटेड पीपुल्स फ्रीडम अलायंस (यूपीएफए) ने सरकार से समर्थन वापसी का फैसला लिया। लिहाजा रानिल विक्रमसिंघे को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा।पेशे से वकील रहे राजपक्षे 1970 में पहली बार श्रीलंका की संसद के लिए चुने गए थे। 2004 में वह श्रीलंका के 18वें प्रधानमंत्री बने। 2005 में राजपक्षे पहली बार और 2010 में दूसरी बार राष्ट्रपति चुने गए। 2015 में उन्हें मैत्रीपाला सिरिसेना से हार का सामना करना पड़ा।
बीजेपी नेता सुब्रमण्यन स्वामी ने राजपक्षे को राष्ट्रवादी नेता बताते हुए उनकी नियुक्ति का स्वागत करते हुए कहा कि राजपक्षे ने चीन के तरफ अपने झुकाव पर पिछले कुछ वक्त में नियंत्रण किया है और इस वक्त उनकी भारत विरोधी छवि में पहले से काफी सुधार हुआ है। श्री लंका के हालात पर नजर रखने वाले विश्लेषकों का कहना है कि विक्रमसिंघे के पास सुप्रीम कोर्ट जाने का विकल्प खुला है, लेकिन वहां भी सिरीसेना के नियुक्त नए चीफ जस्टिस हैं। इस वक्त भारत के पास राजपक्षे के सत्ता में लौटने और उसके बाद उनके रुख पर नजर रखने का ही विकल्प है।