पहली बार सामने आए दुर्लभ ब्लू डायमंड के रहस्य
Wednesday, Aug 01, 2018 - 03:47 PM (IST)
वाशिंगटन: दुर्लभ ब्लू डायमंड (द होप डायमंड) भले ही अब वाशिंगटन म्यूजियम में सुरक्षित रखा हो लेकिन इसके इतिहास की दास्तान बहुत पुरानी है।इससे भी ज्यादा जटिल इसका भूगर्भीय इतिहास है। बुधवार को प्रकाशित एक रिसर्च में ब्लू डायमंड की उत्पत्ति के बारे में रोशनी डालने की कोशिश की गई ।इस रिसर्च के मुताबिक ये दुर्लभ हीरे धरती के अंदर 660 किमी (410 मील) की गहराई पर पाए जाते हैं। यानी कि पृथ्वी के लोअर मैंटल तक पाए जाते हैं। इसको ही ब्लू डायमंड की उत्पत्ति का मूल स्थल माना जा रहा है।
वैज्ञानिकों ने 46 ब्लू डायमंड का अध्ययन करने के बाद ये निष्कर्ष निकाला है। इसमें दक्षिण अफ्रीका का वह दुर्लभ हीरा भी शामिल है जो 2016 में 25 मिलियन डॉलर में बिका था. कुल खोजे गए हीरों में ब्लू डायमंड (नीला हीरा) की हिस्सेदारी 0.02 प्रतिशत ही है लेकिन ये दुनिया के सबसे मशहूर हीरों में शुमार हैं। डायमंड शुद्ध कार्बन का क्रिस्टेलाइन रूप है. बेहद ऊष्मा और दबाव के चलते इनका निर्माण होता है। क्रिस्टलीकृत ब्लू डायमंड में जल को धारण करने वाले तत्व भी होते हैं. ये तत्व सदियों पहले समुद्र की सतह पर पाए जाते थे।
लेकिन पृथ्वी की टेक्टोनिक प्लेटों की हलचलों के कारण ये बेहद गहराई में चले गए. शोधकर्ताओं ने यह दावा किया है। हालांकि वैज्ञानिकों को पहले से ही पता है कि इन डायमंड का नीला रंग, बोरोन तत्व के कारण होता है। कुल खोजे गए हीरों में ब्लू डायमंड (नीला हीरा) की हिस्सेदारी 0.02 प्रतिशत ही है लेकिन ये दुनिया के सबसे मशहूर हीरों में शुमार हैं । इस अध्ययन में यह भी संकेत मिलते हैं कि ये बोरोन समुद्र के भीतर पाए जाते थे और गहराई में समुद्र की सतह पर स्थित चट्टानों में पाए जाते थे। करोड़ों साल पहले ये भूमिगत होते चले ग ।
उल्लेखनीय है कि 99 प्रतिशत हीरे पृथ्वी के भीतर 90-125 मील (150-200 किमी) की गहराई तक ही पाए जाते हैं। नेचर 'जर्नल' में प्रकाशित इस रिसर्च की अगुआई जेमोलॉजिकल इंस्टीट्यूट ऑफ अमरीका के वैज्ञानिक इवान स्मिथ ने की है। उन्होंने कहा कि ये पहली बार है कि जब तथ्यों के साथ ब्लू डायमंड की उत्पत्ति के बारे में पहली बार प्रकाश डाला गया है।इससे पहले किसी को नहीं पता था, कि ये कैसे बने। किस तरह की चट्टानों से इनका निर्माण हुआ और इसमें बोरोन का समावेश कैसे हुआ।