नई तकनीक से हो सकेगा पार्किंसंस का इलाजः वैज्ञानिक

Friday, Jan 24, 2020 - 11:20 PM (IST)

इंटरनेशनल डेस्कः वैज्ञानिकों ने पार्किंसंस बीमारी के इलाज के लिए एक नई तकनीक विकसित करने का दावा किया है। यह ऐसी विधि होगी, जिसमें शरीर के किसी हिस्से में चिकित्सीय उपकरण का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। यह मस्तिष्क कोशिका के उस खास समूह को लक्ष्य बनाती है, जिसकी वजह से इस बीमारी के लक्षण विकसित होते हैं। पार्किंसंस तंत्रिका तंत्र का तेजी से फैलने वाला विकार है, जो हमारी गतिविधियों को प्रभावित करता है। यह हाथ में होने वाले कंपन से शुरू होता है, लेकिन जब कंपकपी पार्किंसंस का मुख्य संकेत बन जाती है, तो यह विकार अकड़न या धीमी गतिविधियों का भी कारण बन जाता है।

यह अध्ययन न्यूरोथेरेप्यूटिक्स जर्नल में प्रकाशित हुआ है। वैज्ञानिकों ने 2015 की शुरुआत में जीन थेरेपी विकसित की, जो बीमारी से प्रभावित तंत्रिका कोशिका के समूह को लक्ष्य बनाता है। इस प्रक्रिया को कोलिनर्जिक न्यूरॉन्स कहा जाता है। जैसे-जैसे बीमारी बढ़ती जाती है, ये कोशिकाएं नष्ट होती जाती हैं। ब्रेन इमेजिंग तकनीक के आने के बाद वैज्ञानिकों ने अब उन तरीकों को खोजा है, जो विशेष प्रकार के रसायन पैदा करने वाली कोशिकाओं को लक्ष्य बनाते हैं। इससे कोशिका-से-कोशिका के संपर्क के जरिये सफलतापूर्वक अन्य प्रकार के न्यूरॉन को उत्तेजित किया जा सकता है। यूनिवर्सिटी ऑफ ससेक्स में फार्माकोलॉजी के लेक्चरर डॉक्टर पियनार और इंपीरियल कॉलेज लंदन के उनके सहयोगियों ने मस्तिष्क में दो बड़ी न्यूरोट्रांसमीटर कोलिनर्जिक और डोपामिनर्जिक न्यूरॉन्स को खोजा। पार्किंसंस बीमारी में डोपामिनर्जिक न्यूरॉन्स डोपामाइन उत्पन्न करता है, लेकिन इसे निष्क्रिय स्तर तक कम किया जा सकता है, जो अंतत: मर जाता है। यह दुर्बल गतिविधि सहित कई तरह के लक्षणों का कारण बन सकता है।

 

 

Ashish panwar

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