पाक में सत्ता का खेल, लोकतंत्र पर हावी रहा सैन्‍य फैक्‍टर

Saturday, Jun 16, 2018 - 10:54 AM (IST)

इस्लामाबादः पाकिस्‍तान में सत्‍ता संघर्ष के खेल में केवल राजनीतिक दलों के बीच होड़ नहीं रहती, बल्कि  यहां की सियासत में सैन्‍य फैक्‍टर का भी अहम रोल रहा है। कई बार यहां के लाेकतंत्र पर सैन्‍य शासन हावी रहा है। दरअसल आजादी के बाद से ही पाकिस्‍तान में लोकतंत्र और सैन्‍य शासन के बीच लुकाछिपी का खेल चलता रहा है। पिछले 70 सालों के इतिहास में पाकिस्तान में चार बार सेना ने तख्‍तापलट किया है। अब तक चार सेना प्रमुख सत्ता पर काबिज रहे हैं। इसमें अयूब ख़ान, याह्या ख़ान, ज़िया उल हक़ और परवेज़ मुशर्रफ हैं। 

अब जब पाकिस्‍तान में आम चुनाव की तैयारियां जोरों पर हैं, लोगों के मन में यह सवाल उठाना लाजमी है कि क्‍या सच में पाकिस्‍तान में आम चुनाव संपन्‍न होंगे  या फ‍िर क्‍या आम चुनाव के बाद बिना सेना के हस्‍तक्षेप के देश में एक मजबूत लोकतांत्रिक सरकार का गठन होगा। सेना और राजन‍ीतिक दलों के बीच सत्‍ता संघर्ष के चलते पाकिस्‍तान में चार बार सैन्य तख्तापलट हो चुका है। देश को दशकों तक सैन्य शासकों के एकछत्र राज में रहना पड़ा है। इसलिए यह कहने में गुरेज नहीं कि इस सैन्‍य व्‍यवस्‍था ने यहां की लोकतांत्रिक प्रणाली को लचर, कमजोर और अस्थिर किया है। इससे राजनीतिक वर्ग की विश्वसनीयता और प्रभाव को रणनीतिक और व्यवस्थागत रूप से ठेस पहुंची है। इस राजनीतिक खींचतान के चलते पाकिस्‍तान में कोई स्‍थाई संवैधानिक ढांचा नहीं विकसित हो सका है। 

देश में चुनी हुई संसद को राष्‍ट्रपति बर्खास्‍त कर सकता था। हालांकि, यह शक्ति उसको अप्रत्यक्ष रूप से मिली थी। इसी के चलते देश का सैन्य नेतृत्व अपनी मर्जी के मुताबिक लोगों के वोटों के आधार पर चुनी हुई सरकारों को बाहर का रास्ता दिखाता रहा है। दरअसल, पाकिस्तान को इस्लामी गणराज्य घोषित किए जाने के साथ ही वहां अ‍स्थिरता कायम रही। इसके पीछे कई आंतरिक तथा वाह्य कारण जिम्मेदार हैं। नवोदित पाकिस्‍तान गरीबी के साथ-साथ आर्थिक दिक्‍कतों का सामना कर रहा था। पाकिस्‍तान में भ्रष्‍टाचार शुरू से ही चरम पर था। सरकार में व्‍याप्‍त भ्रष्‍टाचार को लेकर यहां कई दफे मंत्रिमंडल पर संकट उत्‍पन्‍न हुआ।

इसके अलावा भारत-पाकिस्‍तान के बीच कश्‍मीर मुद्दे को लेकर तनाव रहा है। अफगानिस्‍तान से भी बेहतर संबंध नहीं थे। इन विपरीत हालात में राष्ट्रपति मिर्ज़ा सिकंदर बेग ने 1958 में संविधान को मुल्तवी करके जनरल मोहम्मद अयूब ख़ान के नेतृत्व में सेना को देश की बागडोर सौंप दी। प‍ाकिस्‍तान में सेना प्रमुख अयूब खान का शासन 1969 तक चला। हालांकि व्यापक जन असंतोष के बाद सेना प्रमुख जनरल याह्या ख़ान ने सत्ता पर क़ब्ज़ा करके मार्शल लॉ लगा दिया। लेकिन 1971 के गृहयुद्ध और नतीजतन बांग्लादेश बनने के बाद याह्या ख़ान को पद छोड़ना पड़ा। पाकिस्तान से फ़ौजी शासन कुछ समय के लिए समाप्त हो गया।
 

Tanuja

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