पाक सैन्य अदालतों की सच्चाई उड़ा देगी होश

Thursday, May 18, 2017 - 03:54 PM (IST)

इस्लामाबादः पाकिस्तान की एक सैन्य अदालत ने 11 अप्रैल को भारत के कुलभूषण जाधव को कथित तौर पर जासूसी और विध्वंसक गतिविधियों के आरोप में एकतरफा सुनवाई कर फांसी की सजा सुना दी। भारत ने जाधव से मुलाकात करने के लिए कई बार अपील की, लेकिन उसे खारिज कर दिया गया। इन सबके बीच, पाकिस्तान की सैन्य अदालतें विवादों के घेरे में आ गई हैं। इन सैन्य अदालतों की सच्चाई आपके होश उड़ा देगी। 

इन अदालतों पर अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन करने के आरोप लगते रहे हैं। इन अदालतों में जजों के लिए कानून की डिग्री का होना या फैसले की वजह बताना भी जरूरी नहीं है। पाकिस्तान में पेशावर के सैनिक स्कूल पर आतंकी हमले के बाद जनवरी 2015 में सैन्य अदालतों का गठन किया गया था। इस हमले में 150 लोग मारे गए थे, जिसमें से ज्यादातर बच्चे थे। इसका गठन 2 साल के लिए किया गया था। 2017 में इनकी मियाद पूरी होने वाली थी। हालांकि इनका कार्यकाल 2  साल और बढ़ा दिया गया।

ये अदालतें आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए बनी थीं, लेकिन अब तक के रिकॉर्ड के अनुसार, सजा पाने वालों में आतंकियों की संख्या ही सबसे कम है। 115 बिना कारण बताए आरोप तय किए गए। इनमें मार्च 2017 तक अलकायदा के 8, तहरीक-ए-तालिबान के 88, जैश-ए-मोहम्मद का एक जैसे आतंकी समूहों के कुछ ही सदस्यों पर कार्रवाई हुई।  मानवाधिकार समूहों, सुनवाई की निगरानी करने वालों, मीडिया व परिजनों तक को इन अदालतों में सुनवाई देखने की अनुमति नहीं। जानकारी केवल इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (ISPR)  ही साझा करती है। 

प्रतिवादियों को अपना वकील करने की अनुमति नहीं। उनके लिए सेना ही वकील दे सकती है। हालांकि नए बिल में कुछ संशोधन भी किए गए हैं, जैसे कि संदिग्ध अब अपने लिए वकील चुन सकते हैं।  जब तक अदालत का फैसला नहीं आ जाता, मुकदमे का समय सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। पूरी प्रक्रिया गोपनीय रहती है। सुनवाई इतनी गोपनीय होती है कि आरोपी के वकील तक को जानकारी नहीं मिल पाती। आरोपी के परिजन को भी सुनवाई के नतीजे नहीं बताए जाते। गिरफ्तारी का कारण, आरोपी को रखने की जगह तक गोपनीय रखी जाती है।

 

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