मदर टेरेसा से जुड़े 2 चमत्कार, जिनको पोप ने भी दी मान्यता

Sunday, Sep 04, 2016 - 11:29 AM (IST)

वेटिकन सिटी: भारत रत्न मदर टेरेसा को आज वेटिकन सिटी में एक समारोह के दौरान रोमन कैथोलिक चर्च के पोप उन्हें संत की उपाधि देंगे। इस समारोह में दुनियाभर से आए मदर के एक लाख अनुयायी भी मौजूद होंगे। इस समारोह में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के नेतृत्व में केंद्र सरकार का एक 12 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल, दिल्ली से मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में और बंगाल से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व में राज्य स्तरीय दल भी इस कार्यक्रम में शरीक होंगे।


मदर टेरेसा से जुड़े दो चमत्कार, जिनसे मिली संत की उपाधि
पहला चमत्कार- ओडिशा की एक महिला मोनिका बेसरा को पेट का अल्सर था। दावा किया गया कि 2002 में मिशनरी ऑफ चैरिटी की ननों द्वारा की गई प्रेयर से वो ठीक हो गया था। ननों ने मदर टेरेसा की तस्वीर वाले लोकट को मोनिका के पेट पर फेरा था जिसके बाद वह ठीक हो गई। खुद मोनिका ने कहा था कि उसे एक पोट्रेट से चमत्कारिक किरणें निकलती दिखाई दी थीं। हालांकि इस पर काफी विवाद हुआ था क्योंकि मोनिका के पति का कहना था कि उसकी पत्नी चमत्कार से नहीं बल्कि इलाज से ठीक हुई थी।


दूसरा चमत्कार- ब्राजील में ब्रेन डिसीज से परेशान एक इंजीनियर मार्सिलियो ब्रेन ट्यूमर से परेशान था। उसके घर वालों ने मदर टेरेसा से प्रार्थना की कि उनका बेटा ठीक हो जाए। 17 दिसंबर 2015 को चर्छ ने कहा कि टेरेसा की प्रार्थना से ही वह युवक ठीक हो पाया। इसे मौजूदा पोप फ्रांसिस ने मान्यता दी थी।


ये है संत की उपाधि दिए जाने वाले प्रोसेस
-संत की उपाधि दिए जाने वाली कुछ प्रसंस्करण होते हैं जिनको कांग्रेगेशन कहा जाता है। कुछ पड़ाव होते हैं जिसके बाद संत की उपाधि दी जाती है।

-जिसको संत की उपाधि दी जाती है उसके बारे में लोग पहले लिखित में अपने सुझाव देते हैं फिर उसकी पड़ताल होती है, जिसके बाद उसपर विचार होता है कि यह सही है या गलत।

-कांग्रेगेशन प्रोसेस में जो लोग शामिल होते हैं, अगर वे इस बात पर सहमत हैं कि जिसे संत की उपाधि दी जा रही है उसने चमत्कारिक जीवन जिया है तो यह रिपोर्ट एक पैनल को दी जाती है। इस में डॉक्टर्स, तर्कशास्त्री, बिशप्स और कार्डिनल्स होते हैं। रिपोर्ट पोप को भेजी जाती है। इसके बाद पोप संत के लिए डिक्री साइन करते हैं।

-मदर टेरेसा को संत घोषित करने का प्रोसेस करीब 20 साल चला। इस पर 10 हजार यूरो (करीब 50 लाख रुपए) के करीब खर्च हुए।

मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को अल्बानिया में हुआ। उनका मूल नाम अग्नेसे गोंकशे बोजाशियु था। 1928 में वो नन बनीं तो उन्हें सिस्टर टेरेसा नाम मिला। 24 मई 1937 को उनके काम को देखकर लॉरेटो नन ट्रेडीशन के मुताबिक उन्हें मदर की उपाधि मिली। 5 सितंबर 1997 को उनका निधन हो गया।

मदर टेरेसा के जीवन पर एक झलक
-मदर टेरेसा के पास जिंदगीभर सिर्फ 3 साड़ियां ही रहीं। जो वो खुद ही धोती थीं। वे कहा करती थी कि दुनिया में हजारों लाखों लोग ऐसे हैं जिनके पास तन ढकने के लिए भी कपड़े नहीं हैं। जितने कम कपड़ों से काम चल जाए वो बेहतर क्योंकि ये भी मानवता की सेवा ही है।

-बहुत कम लोगों को इसकी जानकारी होगी कि मदर टेरेसा को 1979 में जब नोबेल पीस अवॉर्ड मिला तो उन्होंने प्रोग्राम के बाद होने वाला डिनर कैंसल करवा दिया था। उन्होंने कहा कि वे इस पर खर्च होने वाला पैसा कोलकाता के गरीबों पर खर्च करना चाहेंगी। मदर टेरेसा ने अपना पूरा जीवन दूसरों की सेवा में ही बिताया। वे किसी की सेवा करते समय किसी भी बात से किरकती नहीं थी।

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