ईरान की क्रांति की कब्रों पर बुलडोजर, ऐतिहासिक कब्रिस्तान पर बन रही पार्किंग, ये साजिश या कुछ और?

punjabkesari.in Saturday, Sep 06, 2025 - 04:26 PM (IST)

इंटरनेशनल डेस्क: ईरान की राजधानी तेहरान में स्थित देश का सबसे बड़ा और ऐतिहासिक कब्रिस्तान बेहेश्त-ए-जहरा आज विवादों में है। यहां 1979 की इस्लामी क्रांति में मारे गए हजारों लोगों की कब्रों पर अब पार्किंग स्थल बनाया जा रहा है। यह वही जगह है जहां कभी क्रांति के शहीद दफनाए गए थे और आज वहां बुलडोजर चलाए जा रहे हैं। बेहेश्त-ए-जहरा कब्रिस्तान ईरान का सबसे बड़ा कब्रिस्तान है जिसे 1970 में बनाया गया था। क्रांति के समय इस जगह ने महत्वपूर्ण ऐतिहासिक भूमिका निभाई थी। यहां 1979 की इस्लामी क्रांति में मारे गए प्रदर्शनकारियों और सरकार के विरोधियों को दफनाया गया था। इस कब्रिस्तान का "लॉट 41" नामक हिस्सा खासतौर पर उन लोगों के लिए जाना जाता है जिन्हें अयातुल्ला खुमैनी की मौलवी अदालतों द्वारा मौत की सजा दी गई थी।

कब्रों का निशान मिटाने की कोशिश

प्लैनेट लैब्स पीबीसी द्वारा जारी सैटेलाइट तस्वीरों में साफ देखा जा सकता है कि कब्रों को समतल कर वहां पार्किंग स्थल बनाया जा रहा है। तस्वीरों के अनुसार, 18 अगस्त 2025 तक लॉट 41 का आधा हिस्सा पार्किंग में बदल चुका है और वहां भारी मशीनें, डामर और ट्रकों की मौजूदगी साफ दिख रही है। तेहरान प्रशासन ने इस क्षेत्र को लंबे समय से सीसीटीवी कैमरों की निगरानी में रखा हुआ है। आशंका है कि इसी निगरानी के जरिए लोगों को दूर रखा जा रहा है ताकि कब्रों को चुपचाप हटाया जा सके। ईरान सरकार की तरफ से यह माना गया है कि पार्किंग बनाने का काम चल रहा है, लेकिन वहां दफनाए गए लोगों की जानकारी या सम्मान को लेकर कोई जवाब नहीं दिया गया है।

शोधकर्ताओं और विशेषज्ञों की कड़ी प्रतिक्रिया

एम्स्टर्डम विश्वविद्यालय में प्रोफेसर शाहीन नासिरी, जो लॉट 41 पर अध्ययन कर रही हैं, ने कहा कि यह काम केवल एक निर्माण परियोजना नहीं बल्कि "इतिहास को मिटाने की एक साजिश" है। उन्होंने कहा कि सरकार लगातार असंतुष्टों की कब्रों को निशाना बना रही है ताकि उनके अस्तित्व को मिटाया जा सके। ईरान के वकील मोहसेन बोरहानी ने इस फैसले की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि यह केवल राजनीतिक शिकार लोगों की नहीं बल्कि आम नागरिकों की भी कब्रें हैं। उन्होंने इसे "नैतिक और कानूनी दोनों ही दृष्टि से गलत" बताया।

तेहरान प्रशासन का जवाब क्या?

तेहरान के उप महापौर दावूद गौदरजी ने इस फैसले का बचाव करते हुए कहा कि, "इस जगह पर क्रांति के शुरुआती दिनों में मारे गए पाखंडी दफनाए गए थे। यह जगह वर्षों से यूं ही पड़ी थी। अब इसे पार्किंग स्थल बनाने का फैसला किया गया क्योंकि हमें ज़रूरत थी।" उनके इस बयान से साफ है कि प्रशासन इसे सिर्फ एक खाली पड़ी जमीन मानता है जबकि असल में यह जगह ईरान के इतिहास का एक जीवंत दस्तावेज है।

बेहेश्त-ए-जहरा का ऐतिहासिक महत्व

इस कब्रिस्तान में अयातुल्ला रूहोल्लाह खुमैनी खुद 1979 में ईरान लौटने के बाद सबसे पहले गए थे। वह उन लोगों को श्रद्धांजलि देने पहुंचे थे जो शाह के शासन के खिलाफ विद्रोह में मारे गए थे। लॉट 41 में 5,000 से 7,000 लोगों की कब्रें हैं जिनमें क्रांति समर्थक, राजशाही विरोधी, और शासन के अन्य आलोचक शामिल हैं। यह जगह ईरान की राजनीतिक विरासत और संघर्षों की साक्षी रही है।
 


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Content Editor

Ashutosh Chaubey

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