इस नीति कारण 2 माह चीन में पड़ा रहा भारतीय शोधार्थी का शव अब...

Sunday, Feb 26, 2017 - 11:37 AM (IST)

बीजिंगः दुनिया के पूर्वी हिस्से के एक देश में ताबूत में रखा एक भारतीय शोधार्थी का शव आखिर 2  महीने के इंतजार के बाद अपने वतन पहुंचा। उस छात्र के परिजन दिल्ली में विदेश मंत्रालय के चक्कर काटते रहे, ताकि उसका शव भारत लाया जा सके। लेकिन उन परिजनों के आंसू राजनयिक दस्तूर के मकड़जाल को नहीं काट सके क्योंकि विदेश मंत्रालय के सामने ‘वन चाइना’ नीति के तहत कूटनयिक प्रक्रियाओं का कड़ाई से पालन करने की मजबूरी थी। जब उस छात्र के घरवालों ने अपने स्तर पर विदेशी विश्वविद्यालय से मदद मांगी और जरूरी रकम का इंतजाम कर लिया तब कागजी खानापूरी की गई और शुक्रवार देर रात उस छात्र की माटी अपनी माटी तक पहुंच सकी।

IIT का  होनहार छात्र राधेश्याम पाल शोध करने ताइवान गया था। IIT मुंबई से रसायन विज्ञान में स्नातक करने के बाद राधेश्याम ने IIT रुड़की से स्नातकोत्तर किया और आगे के लिए उसे ताइवान की नैशनल सिंगहुआ विश्वविद्यालय से वजीफा मिल गया। फरवरी 2013 में IIT से वैज्ञानिक बनने का सपना लिए राधेश्याम पाल वहां चला गया। राधेश्याम की 16 दिसंबर 2016 को अपने हॉस्टल के कमरे में मौत हो गई। विश्वविद्यालय ने 19 दिसंबर को उसके बड़े भाई प्रभुदयाल को इसकी सूचना दी। 22 दिसंबर को ताइवान के हिंचू (जहां हॉस्टल में राधेश्याम रहते थे) में उनका पोस्टमार्टम कराया गया।

उसके बाद परिजन उनके शव को भारत मंगाने केलिए कागजी खानापूरी में उलझ गए। इस छात्र के मामले में विदेश मंत्रालय की वैसी त्वरित कार्रवाई नहीं दिखी, जैसी सोशल मीडिया साइट्स पर दिखती रहती है या जैसी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की सक्रियता के बाद कई मामलों में दिखी। जिस विदेश मंत्रालय की प्रभारी मंत्री सुषमा स्वराज एक ट्वीट के जरिए अपने लोगों की उलझनें सुलझाने में विभाग के अफसरों को दौड़ाती रहने के लिए मशहूर हैं, उन तक तो उस छात्र के परिजन पहुंच ही नहीं सके।

जब उन्हें अपने बच्चे की मौत की सूचना मिली, तब सुषमा स्वराज अपना इलाज कराने के लिए अस्पताल में भर्ती थीं। परिजनों ने विदेश राज्यमंत्री वीके सिंह से भेंट की, लेकिन नतीजा शून्य रहा। कई बार विदेश मंत्रालय के चक्कर काटने के बाद उनकी दरख्वास्त ताइवान भेजी गई। अब विदेश मंत्रालय की ताइवान डेस्क के प्रभारी मनीष कुमार को छात्र के परिजनों ने उसकी मौत को संदेहास्पद बताते हुए पुख्ता जांच की मांग की है। विदेश मंत्रालय ने उनका पत्र उत्तर प्रदेश सरकार को भेज दिया है। विदेश मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार, ताइवान के साथ भारत का औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं होने के कारण कागजी खानापूरी में देर हुई।

ताइवान को चीन अपना राज्य मानता है, जबकि कई देशों ने ताइवान को संप्रभु देश के रूप में मान्यता दे रखी है। भारत का वहां से राजनयिक संबंध ताइपेई इकोनॉमिक एंड कल्चरल सेंटर नामक संगठन के जरिए चल रहा है, जिसका मुख्यालय दिल्ली में है। अभी हाल में इसी संगठन के न्योते पर वहां की 3सांसदों के भारत दौरे को लेकर चीन ने आपत्ति की थी। चीन ने ‘वन चाइना’ नीति में भारत को दखल न देने की मांग उठाई और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस मुद्दे को उठाया।
 
 

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