नहीं चेता तो परेशानी में पड़ सकता है अमरीका

Tuesday, Mar 07, 2017 - 01:01 PM (IST)

वॉशिंगटन (कुमार विशेष):  अमरीका में विदेश से आए लोगों पर नस्ली हमले कोई नई बात नहीं है, लेकिन यहां सत्ता परिवर्तन के बाद ऐसी घटनाओं में आई तेजी चिंता जरूर पैदा करती है। कुछ ही दिनों के अंतराल पर हमले की 3 घटनाओं के बाद न सिर्फ भारतीय अमरीकी बल्कि दुनिया के अन्य देशों के लोग भी दहशत में आ गए हैं। यदि जल्द ही नस्ली हमलों को लेकर ट्रम्प प्रशासन की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाता है तो यह अमरीका के लिए नई परेशानी पैदा कर सकता है। दुनिया के इस सबसे शक्तिशाली देश से प्रतिभाओं के पलायन के अंदेशे को नकारा नहीं जा सकता।

यहां बता दें कि हाल ही में कंसास सिटी में एक भारतीय इंजीनियर की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।  बीते शनिवार को यहां एक व्यवसायी को मौत के घाट उतार दिया गया। फिर एक सिख पर हमले की घटना सामने आई। इससे भारत सरकार की पेशानी पर बल पड़ गए हैं और हिंदुस्तान में राजनीतिक दल यह मांग करने लगे हैं कि इस मुद्दे पर ट्रम्प प्रशासन से बातचीत शुरू की जानी चाहिए।

 नस्ली घटनाओं की वजह 
अमरीका में तेजी से बढ़ी नस्ली घटनाओं को लेकर विशेषज्ञों में कोई एक राय नहीं है, लेकिन मुट्ठी भर अमरीकियों में अन्य देशों के लोगों के प्रति आक्रोश इसकी एक वजह हो सकती है। दरअसल अमरीका में कुछ लोग खुलेआम नस्लवाद को बढ़ावा देते हैं, तो कुछ चोरी-छिपे इस तरह की घटनाओं में शामिल रहते हैं। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो कि नस्ली भेदभाव न करने का दावा तो करते हैं, लेकिन हकीकत में उनका व्यवहार नस्लवाद को बढ़ावा देने वाला है। और कई बार तो वे खुद इससे अनजान रहते हैं। ऐसे में जो दूसरी तरह के लोग हैं वे तब तक चुप रहते हैं जब तक कि उन्हें कहीं से समर्थन नहीं मिलता है, लेकिन जैसे ही उन्हें यह महसूस होता है कि उनके पीछे वाले कुछ लोग हैं जिनकी भावनाएं उफान मारने लगती हैं। इन दिनों अमरीका में भी ऐसे ही हालात हैं। दरअसल, अन्य देशों के लोगों को लेकर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के बयान सीधे नस्ली न हों लेकिन इससे भेदभाव वाली सोच को बढ़ावा मिला है। नतीजन बढ़े हुए हौसले के साथ इनके अंदर अन्य देशों के लोगों को लेकर छिपा आक्रोश अब बाहर आ रहा है, जो कि भारतीय या किसी अन्य देश के लोगों के लिए मुसीबत बन रहा।

नस्लवाद को लेकर अगर केवल अमरीकियों को ही दोषी ठहराया जाए तो यह भी ठीक नहीं होगा। हर देश में जाति, रंग, भाषा, धर्म और राष्ट्रीयता को लेकर भेदभाव की जाने जानी-अनजानी घटनाएं सामने आती रही हैं। हालांकि अमरीकी मीडिया हिंसा की घटनाओं को लेकर ट्रम्प प्रशासन को निशाना बना रहा है लेकिन वास्तव में महज 45 दिन के कार्यकाल में इस तरह के आरोप लगाना जल्दबाजी होगी। अमरीका में भारतीयों पर हो रहे नस्लीय हमलों को लेकर मीडिया द्वारा ट्रम्प पर निशाना साधना फिलहाल जल्दबाजी होगा। यह बताया जाता है कि मृतक इंजीनियर श्रीनिवास दिमागी रूप से परेशान था और नशे का आदी भी था। यह भी ध्यान रखने की बात है जिन अमरीकी लोगों पर हम निशाना साधने की कोशिश कर रहे हैं, उन्हीं में से एक श्रीनिवास के सहयोगी ने उसे बचाने की कोशिश भी की थी।

हां, यह बात जरूर है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने हमले की निंदा करने और कार्रवाई करने में देरी की। स्थानीय लोगों की प्रतिक्रिया के भी अपने कारण हैं, अपने डर हैं। जिस तरह से भारत में कई बार इस तरह की बातें की जाती हैं उसी तरह से अमरीका में भी की जा रही हैं। कहा जाता है कि अमरीका 2043 तक बहुमत अल्पसंख्यक का देश हो जाएगा। इसका मतलब यह है कि वहां कोई अमरीकी ग्रुप बहुमत में नहीं होगा।

दीपा अय्यर की एक किताब में भी कहा गया है कि अमरीका एक नस्लीय देश है और उसी व्यवस्था में वहां पर लोग रहते हैं। 9/11 के बाद तो स्थिति और भी खराब हुई है। लेकिन सच तो यह है कि अभी से ट्रम्प को घेरे में लाना थोड़ी सी जल्दबाजी होगी। ज्यादातर देशों में लोगों को हथियार रखने की छूृट नहीं मिलती है, लेकिन अमरीका में दूसरे संविधान संशोधन 1791 के तहत अमरीकियों को हथियार रखने की छूट मिली हुई है। यह संविधान संशोधन उस समय पारित हुआ जब बंदूकें आज की तरह हाईटेक नहीं थीं। अब यह बंदूकें न सिर्फ अत्याधुनिक हैं, बल्कि आसानी से उपलब्ध भी हैं। 
 

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