हांगकांग में इतना बड़ा आंदोलन खड़ा करने वाले इन युवाओं को जानते हैं आप ?

Friday, Aug 16, 2019 - 12:22 PM (IST)

वर्ल्ड डेस्क: हांगकांग में 9 जून से लोकतंत्र समर्थन और प्रत्यार्पण बिल के विरोध में शुरू हुए आंदोलन को अब दो महीने बीत चुके हैं। बावजूद इसके प्रदर्शन अपने चरम पर जारी है। सड़कों पर हंगामा हो रहा है। हवाई अड्डे पर उड़ाने रद्द है। युवाओं इस आंदोलन की अगुवाई डेमोसिस्टो नाम के संगठन कर रहा है। ये युवाओं का संगठन है, और जोशुआ वांग, एग्निस चो और नाथन लॉ इस संगठन के नेता हैं। जोशुआ वांग 22 साल के हैं नाथन लॉ 26 साल के हैं। वहीं एग्निस चो एक लड़की हैं और उनकी उम्र भी केवल 22 साल है।

जोशुआ वांग

साल 2014 में जोशुआ वांग ने अम्ब्रेला मूवमेंट चलाया था। जिसमें हांगकांग में लोकतंत्र की मांग और मतदान के अधिकारों में बढ़ोतरी की मांग की गई थी। तब उनकी उम्र महज 19 साल थी। उनके इस आंदोलन में बड़ी संख्या में कॉलेज के छात्रों ने हिस्सा लिया। हालांकि इस आंदोलन के कारण वांग को 100 दिन से ज्यादा जेल में रहना पड़ा था। लेकिन उनके अंब्रेला मूवमेंट के कारण 2018 में उन्हे नोबल शांति पुरस्कार के लिए नामित भी किया गया था। इसके अलावा साल 2015 में फॉर्च्युन मैगजीन ने उन्हें दुनिया के महानतम नेताओं की श्रेणी में शामिल भी किया था। जोशुआ ने महज 19 साल की उम्र में डेमोसिस्टो पार्टी की स्थापना की थी।

नाथन लॉ

नाथन लॉ भी इस वक्त हांगकांग की राजनीति में एक बड़ा चेहरा हैं। 2014 में हुए अंब्रेला मूवमेंट में उन्होने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था। इतना ही नहीं वो 2014 में स्थापित की गई डेमोसिस्टो पार्टी के अध्यक्ष रह चुके हैं। इसके अलावा साल 2016 में महज 23 साल की उम्र में नाथन चुनाव जीतने में कामयाब रहे, और हांगकांग के इतिहास में लेजिस्लेटिव काउंसिल के लिए चुने जाने वाले सबसे युवा नेता बने है।

एग्निस चो

एग्निस चो महज 22 साल की हैं और डेमोसिस्टो पार्टी से जुड़ी हुई हैं। 2014 में हुए अंब्रेला मूवमेंट में उन्होने भी बढ़चढ़कर हिस्सा लिया था। इसके अलावा 2016 में हांगकांग लेजिस्लेटिव काउंसिल के लिए चुने जाने वाली वो सबसे युवा नेता बनी थीं। हालांकि जनवरी 2018 में कई नियमों का पालन नहीं करने के कारण उन्हे अयोग्य करार दे दिया गया था।

प्रदर्शन के पीछे की वजह

हांगकांग प्रशासन पिछले दिनों एक विधेयक लेकर आया था। जिसके मुताबिक अगर हांगकांग का कोई व्यक्ति चीन में अपराध या हंगामा या फिर प्रदर्शन करता है, तो उस पर हांगकांग के बजाय चीन में ही मुकदमा चलाया जाएगा। इस विधेयक से यहां के युवाओं को ऐसा लगा कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी इस बिल के जरिए हांगकांग पर अपना दबदबा जमाना चाहती है। जिसके बाद डेमोसिस्टो पार्टी के अध्यक्ष जोशुआ वांग की अगुवाई में इस बिल के खिलाफ हजारों युवा सड़कों पर उतर आए और जमकर विरोध-प्रदर्शन किया। जिसके बाद हांगकांग सरकार ने विधेयक वापस ले लिया। हालांकि प्रदर्शन अभी भी समाप्त नहीं हुआ है, और युवा प्रदर्शनकारुयों की मांग है कि हांगकांग में लोकतांत्रिक व्यवस्था और अधिक मजबूत की जाए।

हांगकांग है चीन का विशेष प्रशासनिक क्षेत्र

दरअसल, साल 1997 में ब्रिटेन और चीन के बीच एक समझौते हुआ। इस समझौते के तहत चीन को अपना पुराना द्वीप तो वापस मिल गया लेकिन, ‘एक देश-दो व्यवस्था’ की अवधारणा के साथ हांगकांग को अगले 50 सालों के लिए अपनी स्वतंत्रता के अलावा सामाजिक, कानूनी और राजनीतिक व्यवस्था भी बनाए रखने की गारंटी दी गई है। विदेश और रक्षा विभाग को छोड़कर अन्य सारे अधिकार उसे मिले हैं। इससे हांगकांग चीन का विशेष प्रशासनिक क्षेत्र बन गया है, जिसके पास अपनी बहुदलीय व्यवस्था है। अपने विशेषाधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए हांगकांग के पास अपना एक छोटा संविधान है। जिसे बेसिक लॉ कहा जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य मताधिकार और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के जरिए अपना मुख्य कार्यकारी अधिकारी चुनना है। लेकिन निर्धारित चयन प्रक्रिया का ठीक से पालन नहीं हो रहा है। जिससे चीन के अपने मनपसंद लोगों को इस पद पर बिठाने में सफल हो जा रहा है और बीत कुछ सालों से उसका हांगकांग पर नियंत्रण बढ़ा है। जो यहां के लोकतंत्र समर्थकों मंजूर नहीं है, और इसीलिए बीते कुछ सालों से हांगकांग में वक्त-वक्त पर इसको लेकर काफी बड़े-बड़े आंदोलन होते आ रहे हैं।

prachi upadhyay

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