श्रीलंका के इस फैसले से भारत की चिंता हुई दूर

Friday, Sep 01, 2017 - 04:57 PM (IST)

कोलंबो: प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने सामरिक रूप से महत्वपूर्ण हम्बनटोटा बंदरगाह का किसी भी अन्य देश द्वारा सैन्य अड्डे के तौर पर इस्तेमाल की संभावना को आज खारिज कर दिया। इस तरह उन्होंने श्रीलंका में बढ़ती चीनी नौसना की मौजूदगी पर भारत की चिंताएं दूर की हैं।  


श्रीलंका की सरकार ने हम्बनटोटा बंदरगाह की 70 फीसदी हिस्सेदारी चीन को बेचने के लिए गत 29 जुलाई को 1.1 अरब डॉलर के समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। बंदरगाह निर्माण के चलते देश पर चढ़े भारी भरकम कर्जे पर चिंताएं जाहिर की जा रही थीं। चीन की सरकारी चाइना मर्चेंट पोर्ट होल्डिंग्स 99 वर्ष के लीज समझौते के तहत बंदरगाह में 1.1 अबर डॉलर का निवेश करेगी। इस समझौते में कई महीनों की देरी हुई है जिसकी वजह यह आशंका है कि गहरे समुद्र में बने बंदरगाह का इस्तेमाल चीन की नौसेना कर सकती है। श्रीलंका में गृहयुद्ध वर्ष 2009 में खत्म हुआ था जिसके बाद से चीन ने यहां लाखों डॉलर का निवेश किया है। हम्बनटोटा बंदरगाह को विकसित करने में चीन की भागीदारी पर भारत की चिंताओं को दूर करने के लिए प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे ने ऐसा समय चुना है जब भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज वहां दौरे पर हैं।  


कल रात यहां हिंद महासागर सम्मेलन को संबोधित करते हुए विक्रमसिंघे ने कहा,‘‘कई महत्वपूर्ण बंदरगाहों,खासकर हम्बनटोटा बंदरगाह जिसपर कुछ देश अपना सैन्य अड्डा होने का दावा जताते हैं,उसे विकसित करने के श्रीलंका के फैसले के संबंध में कुछ कहना चाहता हूं। मैं स्पष्ट रूप से कह रहा हूं कि राष्ट्रपति मैत्रिपाला सिरिसेना के नेतृत्व में श्रीलंका किसी भी देश के साथ सैन्य साझेदारी नहीं कर रहा और अपने अड्डों को अन्य देशों को उपलब्ध भी नहीं करा रहा।’’उन्होंने कहा,‘‘हमारे बंदरगाहों और हवाईअड्डों पर सैन्य गतिविधियों का अधिकार केवल श्रीलंका के सैन्य बलों को है।हमारे बंदरगाहों को व्यावसायिक तौर पर विकसित करने के लिए हम विदेशी निजी निवेशकों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। ’’ 

Advertising