अफगानिस्तान में फिर शिक्षा से महरूम होगी लड़कियां, आंकड़ो में आएगी गिरावट

Tuesday, Aug 24, 2021 - 04:57 PM (IST)

इंटरनेशनल डैस्क: काबुल पर कब्जा करने के बाद 17 अगस्त को अफगान तालिबान ने अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया किया कि वह महिलाओं को कुछ निश्चित ढांचे के भीतर काम करने और अध्ययन करने की अनुमति देने जा रहा है। समूह के प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने कहा कि इस्लाम के ढांचे के भीतर महिलाएं शिक्षा व अन्य क्षेत्रों में बहुत ही सक्रिय होंगी। हालांकि अफगानिस्तान में शिक्षा के क्षेत्र में कार्य कर रहे विशेषज्ञों का मानना हे कि अफगानिस्तान में पिछले 20 साल में लड़कियों की शिक्षा में तेजी आई थी, वह अब औंधे मुंह गिरने वाली है। पिछले दो दशकों में देश में लगभग 20,000 स्कूल बनाए गए हैं। गनी के शासन के दौरान लगभग 6,000 स्कूल बनाए गए थे। शिक्षा व्यवस्था बेहतर हो रही थी और लोग सीखना चाहते थे। निजी विश्वविद्यालयों के साथ-साथ नए अंग्रेजी माध्यम के कॉलेज भी बन रहे थे। समुदाय आधारित शिक्षा (2017) पर अब अपदस्थ अफगान शिक्षा मंत्रालय की एक नीति रिपोर्ट के अनुसार, सहस्राब्दी के बाद से अफगानिस्तान में शिक्षा तेजी से बढ़ी है। 2017 में, औपचारिक स्कूली शिक्षा में 9.2 मिलियन से अधिक छात्र नामांकित थे व इनमें 39 फीसदी लड़कियां थीं। यूनिसेफ के अनुसार अफगानिस्तान के केवल 16 प्रतिशत स्कूल केवल लड़कियों के स्कूल हैं।

हेरात प्रांत में सह-शिक्षा पर प्रतिबंध

अब अफगानिस्तान की खामा प्रेस एजेंसी के अनुसार, तालिबान के उच्च शिक्षा प्रतिनिधि मुल्ला फरीद ने 21 अगस्त को हेरात प्रांत में सह-शिक्षा पर प्रतिबंध लगा दिया। इससे साफ जाहिर है कि अफगानिस्तान ने लड़कियों के मामले में जो शिक्षा के क्षेत्र में मुकाम हासिल किया था, वह अब एक बार फिर से हाशिए पर जाने वाला। अफगानिस्तान के शिक्षा क्षेत्र के कई विशेषज्ञों ने तालिबान द्वारा लड़कियों को शिक्षा देने के बयान को दुनिया की विभिन्न सरकारों से वैधता की मांग करने वाला एक भ्रामक प्रचार बताया है। एक मीडिया रिपोर्ट में अफगानिस्तान में महिला शिक्षा और मासिक धर्म स्वच्छता पर काम करने वाले एक गैर-लाभकारी संगठन "लर्न" के निदेशक पश्ताना दुर्रानी कहती हैं कि “अगर कोई तालिबान जो कह रहा है उस पर विश्वास करता है, तो वे झूठे जनसंपर्क अभियान में विश्वास कर रहे हैं।"

शैक्षणिक सत्र शुरू , शिक्षण संस्थान बंद

दुर्रानी कहती हैं कि कि अभी व्यवस्था पूरी तरह से पंगु हो चुकी हे। शैक्षणिक सत्र शुरू हो गया है और स्कूल में कक्षाएं शुरू नहीं हुई हैं। स्कूल और विश्वविद्यालय कब खुलेंगे, इस पर कोई स्पष्टता नहीं है। नंगरहार प्रांत के एक शोधकर्ता मुर्तजा नवाब दुर्रानी कहते हैं कि उन्हें तालिबान पर विश्वास नहीं हो रहा है। नवाब फिलहाल अपने पासपोर्ट के भारत रवाना होने का इंतजार कर रहे हैं। नवाब ने 2001 और 2021 के दो तालिबान शासनों के बीच अफगानिस्तान द्वारा की गई प्रगति की गणना की है। औपचारिक शिक्षा में नामांकित लड़कियों की संख्या 2001 की तुलना में बहुत अधिक थी, जब केवल दस लाख छात्रों की औपचारिक शिक्षा तक पहुंच थी, उनमें से अधिकांश लड़के थे। पिछले तालिबान शासन के दौरान, लड़कियों को औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने की अनुमति नहीं थी। दूसरी ओर यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार अफगानिस्तान में अनुमानित 3.7 मिलियन बच्चे अभी भी स्कूल से बाहर हैं, उनमें से अधिकांश 60 प्रतिशत लड़कियां हैं।

तालिबान को विचारों पर कायम रहने की जरूरत

कई अफगानों का मानना है कि पहले चुनी गई सरकारों के दौरान हुई प्रगति नए शासन के तहत वापस आ सकती है। गृहयुद्ध जैसी स्थिति, क्षेत्र में सामाजिक-राजनीतिक तनाव और पारंपरिक मानदंडों ने पहले ही लड़कियों को स्कूलों से बाहर कर दिया है। हालांकि सभी ने उम्मीद नहीं खोई है। टीच फॉर अफगानिस्तान के मुख्य कार्यकारी अधिकारी रहमतुल्लाह अरमान कहते हैं कि तालिबान के बारे में हमारे जो शुरुआती विचार थे, वे पूरी तरह बदल गए हैं। लेकिन जाहिर है, इसे जारी रखने की जरूरत है। उन्होंने हमें और अन्य संगठनों को फिर से खोलने के लिए कहा है। पुरुष और महिला दोनों छात्रों के साथ-साथ कर्मचारियों को भी काम जारी रखने के लिए कहा गया है। जाहिर है, स्थिति पर टिप्पणी करने के लिए आठ दिन का समय पर्याप्त नहीं था। उन्होंने कहा कि ऐसा करने के लिए और समय की जरूरत है।

पुरुष शिक्षक नहीं पढ़ा पाएंगे लड़कियों को

तालिबान जारी फतवे में यह भी कहा गया है कि पुरुष शिक्षकों को छात्राओं को पढ़ाने की अनुमति नहीं दी जाएगी। सह-शिक्षा पर भी इसी तरह के प्रतिबंध अपेक्षित हैं। सह-शिक्षा पर प्रतिबंध पूरी तरह से लड़कियों की शिक्षा को कमजोर करने वाला है। नाम न बताने की शर्त पर एक अफगान लड़की ने कहा कि कई स्कूल अब लड़कियों को पढ़ाने के लिए महिला व्याख्याताओं की तलाश करेंगे। हालांकि, हमारे पास बहुत कम महिला शिक्षक हैं। इस प्रकार लड़कियों को पढ़ाना मुश्किल होगा और हमें अंततः घर पर बैठाया जाएगा।

vasudha

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