ट्रंप भी इसके सामने पड़े कमजोर! जानिए कौन हैं ये महिला जो अमेरिकी राष्ट्रपति के रास्ते में बन गईं अड़चन
punjabkesari.in Tuesday, Oct 07, 2025 - 06:47 PM (IST)

नेशनल डेस्क : डोनाल्ड ट्रंप और न्यायाधीश कैरिन जे. इमरगुट के बीच हाल ही में विवाद बढ़ गया है। न्यायाधीश इमरगुट ने ट्रंप की कैलिफ़ोर्निया नेशनल गार्ड इकाइयों को पोर्टलैंड, ओरेगन भेजने की योजना पर अस्थायी रोक लगा दी है। यह दूसरी बार है जब इमरगुट प्रशासन के खिलाफ ऐसा फैसला कर रही हैं। इस फैसले से राष्ट्रपति ट्रंप नाराज हैं और उन्होंने न्यायाधीशों पर अपने आक्रोश का इज़हार किया।
जज कैरिन जे. इमरगुट कौन हैं?
इमरगुट ओरेगन की 64 वर्षीय वरिष्ठ न्यायाधीश हैं। उनका जन्म न्यूयॉर्क के ब्रुकलिन में हुआ और उन्होंने एमहर्स्ट कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद 1987 में कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले से कानून की डिग्री हासिल की। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत वाशिंगटन, डीसी की लॉ फर्म कोविंगटन एंड बर्लिंग में की और 1988-1992 तक कैलिफ़ोर्निया में सहायक अमेरिकी अटॉर्नी के रूप में काम किया। 2001-2003 में फिर से सहायक अमेरिकी अटॉर्नी रही। 2009 में राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने उन्हें ओरेगन जिले के अमेरिकी अटॉर्नी पद के लिए नामित किया।
2009 से 2019 तक इमरगुट मल्टनोमाह काउंटी सर्किट कोर्ट में न्यायाधीश रही। वहां उन्होंने गंभीर अपराध, जटिल दीवानी मामले और मृत्युदंड से जुड़े मुकदमे देखे। उन्होंने अपने कार्यकाल में लगभग 250 मुकदमे और सैकड़ों दीवानी प्रस्तावों की अध्यक्षता की।
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क्लिंटन महाभियोग जांच में भूमिका
इमरगुट 1998 में राष्ट्रीय सुर्खियों में आईं, जब उन्होंने केनेथ स्टार के सहयोगी स्वतंत्र वकील के रूप में मोनिका लेविंस्की मामले की जांच में काम किया। उन्होंने राष्ट्रपति बिल क्लिंटन से जुड़े मामलों में साक्ष्य जुटाने और व्यक्तिगत साक्षात्कार में भाग लिया।
वर्तमान नियुक्ति और काम
मई 2024 में मुख्य न्यायाधीश जॉन रॉबर्ट्स ने उन्हें विदेशी खुफिया निगरानी न्यायालय (FISC) में सात साल के कार्यकाल के लिए नियुक्त किया। इस अदालत का काम राष्ट्रीय सुरक्षा जांच में इलेक्ट्रॉनिक निगरानी और तलाशी के सरकारी अनुरोधों की समीक्षा करना है। 2025 में उन्हें स्टैनफोर्ड लॉ स्कूल में विशेष कोर्स पढ़ाने के लिए भी आमंत्रित किया गया। इमरगुट के फैसले राष्ट्रपति ट्रंप के संघीय बल तैनात करने के प्रयासों के खिलाफ नई न्यायिक प्रतिक्रिया हैं। इस फैसले से राजनीतिक और कानूनी विवाद बढ़ गया है, और कई राज्य सरकारों ने इसे असंवैधानिक भी बताया है।