20 वर्ष की लड़ाई में तालिबान को ड्रग्स, लूटपाट और खाड़ी देशों ने बनाया ताकतवर

Tuesday, Aug 24, 2021 - 11:42 AM (IST)

नेशनल  डेस्क: अमरीकी सेना की वापसी के बाद बड़ी तेजी के साथ तालिबान आगे बढ़ा और अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया। उसकी ताकत इतनी कैसे बढ़ गई कि अमरीका को मैदान छोडऩा पड़ा और अफगानिस्तान ने उसके सामने हथियार डाल दिए? इससे पहले जब तालिबान नवम्बर 2001 में काबुल की सत्ता से बेदखल हुआ था तब उसने केवल पांच साल ही शासन किया था, लेकिन बीते बीस वर्षों में उसने वह ताकत हासिल की जिसने अमरीका को उसके सबसे लंबे युद्ध में हरा दिया और 80 अरब डॉलर की ट्रेनिंग और उपकरण लेने वाले अफगानिस्तान पर काबिज हो गया। कम संसाधनों के बावजूद तालिबान कैसे 20 साल तक अफगानिस्तान से टस से मस नहीं हुआ तथा अमरीका के साथ 2 दशक के युद्ध में खुद को बनाए रखने के लिए तालिबान को धन कहां से मिला? यह एक बड़ा सवाल है।

 

मई 2020 की एक रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने अनुमान लगाया कि कुल मिलाकर तालिबान का वार्षिक संयुक्त राजस्व 3000 लाख डॉलर (30 करोड़) से लेकर 1.5 अरब डॉलर प्रतिवर्ष है, जबकि 2019 के आंकड़े कम थे। ध्यान देने योग्य बात यह है कि तालिबान ने सीमित संसाधनों का प्रभावी ढंग तथा कुशलता से उपयोग किया जिस कारण उसे नकदी का संकट नहीं झेलना पड़ा।

धन का प्राथमिक स्रोत नशीली दवाओं का व्यापार
यू.एन.एस.सी. की रिपोर्ट के मुताबिक तालिबान के धन का प्राथमिक स्रोत नशीली दवाओं का व्यापार रहा है। हाल के वर्षों में ‘‘अफीम की खेती और राजस्व में कमी, सहायता और विकास परियोजनाओं से राजस्व की कमी और ‘शासन’ और परियोजनाओं पर खर्च में वृद्धि’’ के कारण उनकी आय में कमी आई है। दूसरी ओर हैरोइन के बंपर उत्पादन के अलावा अफगानिस्तान में मैथम्फेटामाइन की नई ड्रग इंडस्ट्री फलफूल रही है। रिपोर्ट के अनुसार, ‘मैथम्फेटामाइन पर यू.एन.ओ.डी.सी. द्वारा पहली बार 2014 में प्रतिबंध लगाया गया और फिर 2019 में। रिपोर्ट में मैथम्फेटामाइन को हैरोइन की तुलना में अधिक लाभदायक बताया गया क्योंकि इसकी सामग्री कम लागत वाली है और इसके लिए बड़ी प्रयोगशालाओं की आवश्यकता नहीं है। फराह और निमरूज प्रांत में 60 प्रतिशत मैथम्फेटामाइन लैब का संबंध तालिबान से है तथा वह पाक सीमा के साथ लगातार नरसंहार के 8 दक्षिणी जिलों तक हैरोइन की स्मगलिंग और उस पर कर वसूली से आमदनी कर रहा है।

 

वित्तीय और सैन्य स्वतंत्रता में आत्मनिर्भर
रेडियो फ्री यूरोप की एक गोपनीय रिपोर्ट की मानें तो 2020 तक तालिबान ने वित्तीय और सैन्य स्वतंत्रता में आत्मनिर्भरता हासिल कर ली है। अपने विद्रोह को वित्तपोषित करने के लिए उसे दूसरे देशों की सरकारों या लोगों की जरूरत नहीं थी।अवैध नशीली दवाओं के व्यापार के अलावा तालिबान के संस्थापक मुल्ला मोहम्मद उमर के बेटे मुल्ला मोहम्मद याकूब की देखरेख में एक प्रभावशाली व्यक्ति जिसके नई सरकार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की उम्मीद है, ने हाल के वर्षों में अवैध खनन और निर्यात से लाभ अर्जित कर वित्तीय शक्ति का विस्तार किया है।

अनुमान लगाया गया है कि मार्च 2020 तक तालिबान 1.6 अरब डॉलर कमा चुका था। इसमें 416 मिलियन डॉलर ड्रग व्यापार, 450 मिलियन डॉलर लौह अयस्क, संगमरमर, तांबा, सोना, जस्ता और दुर्लभ खनिज धातुओं के अवैध खनन से, 160 मिलियन डॉलर राजमार्गों पर लूट-खसूट से तथा 240 मिलियन डॉलर उसे फारस की खाड़ी के देशों से दान में मिले। उसने 240 मिलियन डॉलर की उपभोक्ता वस्तुओं का आयात और निर्यात किया। रिपोर्ट में कहा गया है कि तालिबान की अफगानिस्तान और पाकिस्तान में 80 मिलियन डॉलर की संपत्तियां हैं।

लड़ाई के लिए नहीं थी हथियारों की कोई कमी
ऐसा प्रतीत होता है कि तालिबान के पास अफगान और अमरीकी सेना से लडऩे के लिए हथियारों की कोई कमी नहीं थी। पाकिस्तान से समर्थन हमेशा महत्वपूर्ण रहा है, लेकिन तालिबान हथियारों और गोला-बारूद के किसी एक स्रोत पर निर्भर नहीं था। ग्रेचेन पीटर्स, स्टीव कोल और अन्य इन जैसे पत्रकारों ने सीधे और हक्कानी नैटवर्क के माध्यम से बार-बार तालिबान को आई.एस.आई. और पाकिस्तान सेना के समर्थन की ओर इशारा किया है। तालिबान का पाकिस्तान के कबायली क्षेत्रों तथा अफगानिस्तान में विशाल इस्लामी माफिया है और खाड़ी और अरब देशों के साथ उसके विशाल व्यवसाय है। अमरीकी नेता और जनरल खुले तौर पर पाकिस्तान पर तालिबान के खिलाफ फंड का इस्तेमाल करने का आरोप लगाते रहे हैं। यही नहीं अमरीका ने रूस पर तालिबान का समर्थन करने का भी आरोप लगाया है।

 

तालिबान के पास अमरीकी सैन्य संपत्ति
तालिबान के हाथों में कितनी अमरीकी सैन्य संपत्ति है इसका कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है मगर 2017 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 2003 और 2016 के बीच अमरीका ने अफगान बलों के लिए 75898 वाहनों, 599690 हथियारों, 208 विमानों और खुफिया 16191 निगरानी और टोही उपकरणों के साथ वित्त पोषित किया। पिछले कुछ वर्षों में अफगान बलों को 7000 मशीनगन, 4700 हमवीज और 20000 से अधिक हथगोले दिए गए हैं। सिगार की जुलाई त्रिमासिक रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि अफगान वायुसेना के पास कुल 167 विमान थे जिसमें जैट और हैलीकॉप्टर शामिल थे। इनमें 23ए-19 विमान, 10ए.सी.-208 विमान, 23सी-208 विमान शामिल थे और 3सी-130 विमान, 32 एम.आई.-17 हैलीकॉप्टर, 43.एम.डी.-530 हैलीकॉप्टर और 33 यू.एच.-60 हैलीकॉप्टर शामिल हैं। 17 अगस्त को तालिबान के काबुल पर नियंत्रण करने के 2 दिन बाद व्हाइट हाऊस के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलिवन ने कहा, ‘‘हमारे पास पूरी तस्वीर नहीं है लेकिन निश्चित रूप से ये रक्षा सामग्री तालिबान के हाथों में पड़ गई है।

आधुनिक हथियार और सैन्य रणनीति में विशेषज्ञता वाले संघर्ष विश्लेषक जिन्होंने जेन्स, बेलिंगकैट और एन.के. न्यूज जैसी वैबसाइटों के लिए काम किया है, ने तालिबान के हाथों में पडऩे वाले उपकरणों को ट्रैक करने के लिए ओपन-सोर्स इंटैलिजैंस का उपयोग किया है। उनके अनुसार तालिबान के पास अब 2 वार जैट, 24 हैलीकॉप्टर और 7 बोइंग इंसिटू स्कैनईगल मानवरहित वाहन हैं जो पहले अफगान बलों के पास थे। इसके अतिरिक्त उनके अनुसार जून और 14 अगस्त के बीच तालिबान ने 12 टैंक, 51 बख्तरबंद लड़ाकू वाहन, 61 तोपखाने और मोर्टार, 8 विमानभेदी बंदूकें और 1,980 ट्रकों, जीपों और वाहनों पर कब्जा कर लिया जिसमें 700 से अधिक हमवीज शामिल हैं।

vasudha

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