पटरी से उतरने लगी है चीन की अर्थव्यवस्था, 30 फीसदी सकल घरेलू उत्पाद संकट में

Monday, Oct 25, 2021 - 10:23 AM (IST)

इंटरनेशनल डैस्क: चीन में अब एक के बाद एक अर्थव्यवस्था के सभी सेक्टर भरभरा कर गिरते नजर आ रहे हैं। बात चाहे बात रियल एस्टेट की हो या निर्यात की, बिजली आपूर्ति के लिए कोयले की कमी की, अफ्रीका और दूसरे देशों को दिए कर्ज के डूबने या अमरीका व भारत के साथ व्यापार संघर्ष और प्रतिबंधों की, सभी जगह से अब चीन के लिये बुरी खबरें आने लगीं हैं। आर्थिक मामलों के जानकारों की राय इसके लिए चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की नीतियां ज्यादा जिम्मेदार हैं। जिस चीनी अर्थव्यवस्था को वर्ष 1978 में तंग श्याओ फिंग ने रफ्तार की उड़ान दी थी उसे नीचे लाने का श्रेय शी जिनपिंग को दिया जाएगा। चीन ने अपने विकास के जितने भी बड़े-बड़े दावे किए वे खोखले साबित हो रहे हैं। यही वजह है कि महामारी के बाद जहां दुनिया भर के देशों की अर्थव्यवस्था पटरी पर आ रही है, वहीं चीन की अर्थव्यवस्था लड़खड़ाने लगी है। जानकारों की राय में चीन की आर्थिकी अमेरिका और जापान के आर्थिक क्रैश से भी बुरी साबित होने वाली है। चीनी रियल एस्टेट एवरग्रांडे संकट से शुरु हुई ये समस्या जितनी दिख रही है उससे कहीं अधिक गंभीर है। धीमी आर्थिक रफ्तार से चीन का 30 फीसदी सकल घरेलू उत्पाद संकट में है। 

 

कई देशों को दिए कर्ज की वापसी की भी नहीं उम्मीद 
इसके साथ ही यूरोपीय संघ  (ई.यू.) के देशों में भी चीनी कंपनियां, व्यापारिक संस्थान और डिजिटल कंपनियां संकट में पड़ गई हैं क्योंकि ई.यू. में भी चीन को लेकर मतभेद शुरू हो चुके हैं। वर्तमान हालात में इन मतभेदों को सुलझा पाना संभव नहीं है। चीन ने अपने व्यापार को फैलाने के लिये बी.आर.आई. परियोजना के तहत दुनिया भर के देशों को कर्ज दिया था लेकिन वो देश चीन का कर्ज लौटा पाने की हालत में नहीं हैं जिसके चलते चीन ने कुछ देशों के क्षेत्र विशेष को 99 वर्षों के लिए पट्टे पर ले लिया है लेकिन उससे भी चीन का पैसा लौटता नहीं दिख रहा है।  चीन के जिन आर्थिक संस्थानों ने अपना पैसा निवेश किया था वो अभी डूबता नजर आ रहा रहा है। 

 

चीन ने निजी के बजाए सरकारी कंपनियों को दी तरजीह  
राष्ट्रपति शी जिनपिंग की नीतियों के चलते अपने शासनकाल के आठ वर्षों में चीन की अर्थव्यवस्था पर अपना शिकंजा कसना शुरू कर दिया, निजी कंपनियों के मामले में दखलअंदाजी करने से हाल ही में मा युइन यानी जैक मा की कंपनी एंट ग्रुप का आई.पी.ओ. बाजार में आने से पहले ही धराशायी हो गया। इससे चीनी निवेशकों का भरोसा टूटने लगा और विश्व स्तर पर भी विदेशी निवेशकों ने अब चीनी उपक्रमों में पैसा लगाने से परहेज करना शुरु कर दिया है। निजी कंपनियों की जगह अब कम्युनिस्ट पार्टी सरकारी कंपनियों को अधिक तरजीह देने लगी है जो आर्थिक तरक्की पर ध्यान कम और अपने सरकारी आकाओं की जी हुजूरी ज्यादा करने लगी है। इससे चीन की अर्थव्यवस्था को खासा नुकसान पहुंचने लगा। 

 

चीनी डिजिटल कंपनियों पर प्रतिबंध से हुआ बड़ा नुक्सान
दरअसल चीन की सकल घरेलू उत्पाद को उस समय से नुकसान होना शुरु हो गया था जब अमरीका ने चीनी डिजिटल कंपनियों पर प्रतिबंध लगाना शुरु कर दिया। बाद में भारत ने भी अपनी सुरक्षा की दृष्टि से ऐसा करना शुरु कर दिया। इसी क्रम में बाकी देशों ने भी ठीक ऐसे कदम उठाने शुरु कर दिए। डिजिटल कंपनियों पर आर्थिक चोट कितनी गहरी होती है ये बात अब चीन समझने लगा है लेकिन अब बहुत देर हो चुकी है। जर्मन इंस्टीट्यूट ऑफ इकनॉमिक रिसर्च का कहना है कि भारत ने चीन को एशिया, मध्य-पूर्व, यूरोप, अफ्रीकी महाद्वीप, लैटिन अमरीका हर जगह सबसे ज्यादा आर्थिक चोट मारी है। जर्मन इंस्टीट्यूट का मानना है कि भारत की लामबंदी ने इन जगहों पर चीन के बाजारों पर तेज प्रहार किया है जिससे चीन को बड़ा नुकसान हुआ है। 

 

विनिर्माण खत्म होता जा रहा है चीन का एकाधिकार
जर्मनी के जानकारों की माने तो चीन के ऊपर अभी आर्थिक खतरे की शुरुआत है, असल खतरा तो अभी आना बाकी है यानी चीन की अर्थव्यवस्था के लिये अभी और बुरी खबर आना बाकी है। दुनिया भर के कई देश अब चीन की नीतियों का जवाब अब देने लगे हैं। चीन का मजबूत विनिर्माण क्षेत्र भी अब कमजोर पड़ने लगा है, जबकि भारत के विनिर्माण क्षेत्र के मजबूत प्रदर्शन के चलते अब बाजी भारत के हाथ लग चुकी है। विनिर्माण के क्षेत्र में अब दुनिया के सामने भारत चीन का बेहतर विकल्प बनता जा रहा है। ऐसा माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में विनिर्माण क्षेत्र पर किसी का एकाधिकार नहीं रहेगा। यह भारत सहित, दक्षिण-पूर्वी एशिया, पूर्वी यूरोप, लैटिन अमरीका और अफ्रीका के कुछ देशों में फैलेगा। 

Seema Sharma

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