चीन आगे निकल कर मैन्युफैक्चरिंग, निर्यात और रिसर्च का अंतरराष्ट्रीय केंद्र बनेगा भारत

Thursday, Apr 07, 2022 - 04:49 PM (IST)

चीन: चीन को पछाड़ते हुए अब भारत इलैक्ट्रिक उपकरणों के विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) का केंद्र बनने की राह पर अग्रसर हो चला है। अमरीका से व्यापारिक संघर्ष के चलते चीन के इलैक्ट्रिक उपकरणों के निर्यात में भारी कमी आई थी, इसके बाद रही सही कसर कोरोना महामारी ने निकाल दी। महामारी के कारण चीन के विनिर्माण क्षेत्र में इसका बुरा असर पड़ा और बाद में आपूर्ति श्रृंखला पर भी इसका नकारात्मक असर देखा गया। जिसके चलते चीन के पुराने ग्राहकों ने नए आपूर्तिकर्ताओं को ढूंढना शुरू कर दिया। महामारी के इस बुरे दौर में चीन से विदेशी कंपनियां निकल कर अपना नया ठिकाना ढूंढने लगीं। इनमें से कई उद्योगों ने वियतनाम समेत दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों का रुख किया तो कुछ ने भारत का।
 

ऐसे समय में भारत ने प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव स्कीम की शुरूआत की जिसकी वजह से कई विदेशी विनिर्माण उद्योगों ने भारत का रुख किया जिसका लाभ भारत को अब मिलता दिख रहा है। विदेशी कम्पनियां भारत के एक अरब की आबादी से ज्यादा के बाजार को भी देख रही हैं और इसके साथ ही भारतीयों की बढ़ती क्रय शक्ति को भी। इसके साथ ही भारतीय कम्पनियां चीनी विनिर्माण और निर्यात को कड़ी टक्कर देने लगी हैं।
 

घरेलू विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने की भारत सरकार की पहल के परिणाम अब नजर आने लगे हैं। वर्ष 2012-13 में भारत से इलैक्ट्रिक वस्तुओं का निर्यात 6600 अरब डालर का होता था, जो 88 फीसदी बढ़ौतरी के साथ वर्ष 2021-22 में 12400 अरब डालर का हो गया। भारत से इलैक्ट्रिक उद्योग में जो वस्तुएं सबसे अधिक निर्यात हो रही हैं उनमें मोबाइल फोन, आई.टी. हार्डवेयर, जिनमें लैपटॉप टैबलेट्स के उपकरण, मदर बोर्ड, टैलीविजन तथा आडियो उपकरण, औद्योगिक इलैक्ट्रानिक व आटोमोटिव इलैक्ट्रानिक्स के कलपुर्जे शामिल हैं। भारत की स्थिति में कितना परिवर्तन आया है इसका अंदाजा सहज ही इस बात से लगाया जा सकता है कि जहां पहले ये सभी उपकरण भारत चीन से आयात करता था, वहीं अब ये सारे उपकरण भारत निर्यात करने लगा है जिससे विदेशी • बाजारों से लेकर भारत के स्वदेशी बाजार को लाभ मिलने लगा है। भारत के स्वदेशी इलैक्ट्रॉनिक बाजार के वर्ष 2025 तक 400 अरब डालर तक बढ़ने की प्रबल संभावना दिखाई दे रही है।
 

वर्ष 2019-20 में भारत के कुल इलैक्ट्रॉनिक बाजार की हिस्सेदारी 118 अरब अमरीकी डालर थी, जिसमें अलग-अलग क्षेत्र में 24 फीसदी हिस्सेदारी मोबाइल फोन की, 22 फीसदी उपभोक्ता इलैक्ट्रॉनिक्स की, 12 • फीसदी रणनीतिक क्षेत्र से जुड़े इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों की, 7 फीसदी कम्प्यूटर हार्डवेयर की, 2 फीसदी एल.ई.डी. लाइट्स की थी तो वहीं औद्योगिक इलैक्ट्रॉनिक्स में 34 फीसदी हिस्सेदारी आटो, मैडीकल तथा अन्य औद्योगिक इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों की थी।
 

जानकारों के अनुसार वर्ष 2025 तक भारतीय इलैक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण और सेवा उद्योग के 6.5 गुणा तेजी से बढ़ने की संभावना है और इसका बाजार मूल्य क्रमश: 23.5 अरब अमरीकी डालर और 152 अरब डालर का होगा। इसके साथ ही 1140 मल्टीनैशनल कम्पनियों के रिसर्च एंड डिवैल्पमैंट केंद्र भारत में बने हैं जिनकी वजह से 9 लाख से अधिक लोगों को अब तक रोजगार मिल चुका है। आने वाले समय में भारत रिसर्च एंड डिवैल्पमैंट क्षेत्र का केंद्र बनेगा और चीन इन सभी लाभों से वंचित रहेगा जिसका बड़ा आर्थिक नुक्सान उसे उठाना होगा। भारत का इलैक्ट्रॉनिक्स बाजार दुनिया के सबसे बड़े बाजारों में से एक है जिसमें सबसे अधिक तेजी से वृद्धि स्मार्टफोन के बाजार में देखी गई जो चीन और अमरीका के बाद सबसे अधिक है। वर्ष 2018 में यह 10 फीसदी की गति से बढ़ रहा है। हाल के वर्षों में विदेशी निवेशकों का विश्वास भारतीय बाजार में बढ़ा है जो वर्ष 2018-19 में 451.9 अरब डालर का था जो उससे पिछले वर्ष यानी 2017-18 में 196.9 अरब डालर था। जानकारों की राय में यह वृद्धि संतोषजनक है और इससे यह भी पता चलता है कि दुनिया भर में चीन की तुलना में भारत की छवि और सुदृढ़ हुई है। वैश्विक स्तर पर भारत के उत्पादों को लेकर ग्राहकों में सकारात्मकता दिख रही है। जहां एक तरफ यह ट्रैंड भारत के लिए बेहतर है तो दूसरी ओर चीन के लिए खतरे की घंटी क्योंकि अब चीन पर से विदेशी ग्राहकों का विश्वास कम हो रहा है। वहीं विदेशी कंपनियां भी चीन से बाहर दूसरे देशों का रुख कर रही हैं जिससे भविष्य में ऐसी किसी महामारी के आने की हालत में उनका विनिर्माण और आपूर्ति एक ही देश में न सिमटी रहे जिससे न दोनों ही क्षेत्रों में बाधा आए।
 

विदेशी कम्पनियां और उद्योग बड़ी संख्या में भारत को अपना विनिर्माण और निर्यात केंद्र बना रहे हैं क्योंकि भारत का घरेलू बाजार भी बहुत विशाल है और यहां पर उच्चतम श्रेणी के तकनीकी और गैर-तकनीकी श्रमिक कम पारिश्रमिक पर उपलब्ध हैं। ये दोनों ही बातें भारत को एक बेहतर निर्माण केंद्र बनाने में सार्थक साबित हो रही हैं।
 

ग्राहकों में सकारात्मकता दिख रही है। जहां एक तरफ यह ट्रैंड भारत के लिए बेहतर है तो दूसरी ओर चीन के लिए खतरे की घंटी क्योंकि अब चीन पर से विदेशी ग्राहकों का विश्वास कम हो रहा है। वहीं विदेशी कंपनियां भी चीन से बाहर दूसरे देशों का रुख कर रही हैं जिससे भविष्य में ऐसी किसी महामारी के आने की हालत में उनका विनिर्माण और आपूर्ति एक ही देश में न सिमटी रहे जिससे न दोनों ही क्षेत्रों में बाधा आए।
 

विदेशी कम्पनियां और उद्योग बड़ी संख्या में भारत को अपना विनिर्माण और निर्यात केंद्र बना रहे हैं क्योंकि भारत का घरेलू बाजार भी बहुत विशाल है और यहां पर उच्चतम श्रेणी के तकनीकी और गैर-तकनीकी श्रमिक कम पारिश्रमिक पर उपलब्ध हैं। ये दोनों ही बातें भारत को एक बेहतर निर्माण केंद्र बनाने में सार्थक साबित हो रही हैं।

Anu Malhotra

Advertising