हाथी-ड्रैगन करीब! पंचशील के वो 5 सिद्धांत जिनके आधार पर 1954 में तय हुए थे भारत-चीन संबंध
punjabkesari.in Monday, Sep 01, 2025 - 04:12 PM (IST)

इंटरनेशनल डेस्क: हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात ने फिर एक बार भारत-चीन संबंधों की चर्चा को जोरों पर ला दिया है। इस मुलाकात के बाद पंचशील सिद्धांतों की फिर से चर्चा होने लगी है। ये वही सिद्धांत हैं जो भारत और चीन के बीच दोस्ती की नींव माने जाते हैं। जहां एक ओर दोनों देश अमेरिका की व्यापारिक नीतियों से प्रभावित हैं वहीं दूसरी ओर अब एक साथ आकर सहयोग की बात कर रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है क्या पंचशील के सिद्धांत फिर से भारत-चीन संबंधों में भरोसे की डोर बन सकते हैं?
पंचशील क्या है?
पंचशील का मतलब है "पांच नैतिक सिद्धांत"। ये सिद्धांत 1954 में भारत और चीन के बीच एक ऐतिहासिक समझौते के तहत तय किए गए थे। तब भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और चीन के प्रधानमंत्री झोउ एनलाई ने तिब्बत के संदर्भ में समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इस समझौते में दोनों देशों ने तय किया कि उनके आपसी संबंध इन्हीं पांच सिद्धांतों के आधार पर होंगे।
पंचशील के 5 सिद्धांत कौन-कौन से हैं?
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एक-दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करना
दोनों देश एक-दूसरे की सीमाओं और संप्रभुता को मान्यता देंगे। -
परस्पर अनाक्रमण (Non-aggression)
कोई भी देश दूसरे पर हमला या सैन्य दबाव नहीं डालेगा। -
आपसी मामलों में हस्तक्षेप न करना
एक देश दूसरे की राजनीति या प्रशासन में दखल नहीं देगा। -
समानता और परस्पर लाभ
दोनों देशों के बीच व्यापार और सहयोग बराबरी के आधार पर होगा। -
शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व
दोनों देश मिलकर शांति से साथ रहने और वैश्विक शांति को बढ़ावा देने की कोशिश करेंगे।
नेहरू और पंचशील, क्या थी उनकी सोच?
पंडित जवाहरलाल नेहरू ने पंचशील को भारत की विदेश नीति का आधार माना। उन्होंने लोकसभा में कहा था कि भारत किसी भी अहंकार या घमंड से प्रेरित होकर काम नहीं करेगा बल्कि शांतिपूर्ण और स्वतंत्र नीति अपनाएगा। नेहरू मानते थे कि पंचशील न केवल भारत-चीन संबंधों के लिए बल्कि पूरी दुनिया में शांति के लिए जरूरी है।
पंचशील का अंतरराष्ट्रीय असर क्या?
पंचशील सिर्फ भारत और चीन के बीच तक सीमित नहीं रहा, बल्कि धीरे-धीरे यह पूरी दुनिया के लिए एक अहम सोच बन गया। साल 1955 में इंडोनेशिया के बांडुंग शहर में एशिया और अफ्रीका के 29 देशों की बैठक हुई, जिसे बांडुंग सम्मेलन कहा गया। इस सम्मेलन में सभी देशों ने पंचशील के सिद्धांतों को अपनाया और शांति से रहने की बात को ज़रूरी माना। इसके बाद 1957 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने भी पंचशील को सर्वसम्मति से मंजूरी दी। फिर 1961 में गुटनिरपेक्ष देशों के पहले सम्मेलन में, जो बेलग्रेड में हुआ था, पंचशील को पूरे आंदोलन की नींव माना गया। इन सभी घटनाओं से साफ है कि पंचशील अब सिर्फ दो देशों की बात नहीं रहा, बल्कि यह एक ऐसी सोच बन गया है जो दुनिया में शांति, सम्मान और सहयोग को सबसे ज़्यादा महत्व देती है।
भारत-चीन रिश्तों में तनाव क्यों आया?
भारत और चीन ने पंचशील सिद्धांतों को अपनाया था लेकिन कुछ ही सालों में उनके रिश्तों में दूरी आ गई। साल 1962 में दोनों देशों के बीच युद्ध हुआ, जिससे भरोसा टूट गया। चीन की सख्त नीतियों और सीमा विवादों ने संबंधों को और खराब कर दिया। तिब्बत को लेकर भी दोनों देशों की सोच में बड़ा फर्क था, जिससे मतभेद बढ़ते गए। इसके बावजूद जब भी भारत और चीन के बीच रिश्ते सुधारने की कोशिश होती है, तो पंचशील सिद्धांतों की बात ज़रूर की जाती है, क्योंकि ये शांति और सहयोग का रास्ता दिखाते हैं।
फिर से क्यों हो रही है पंचशील की बात?
आज की दुनिया एक बार फिर अस्थिरता के दौर से गुजर रही है। अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध, वैश्विक राजनीति में टकराव और रूस-यूक्रेन युद्ध जैसे मुद्दे सभी को प्रभावित कर रहे हैं। ऐसे में भारत और चीन का फिर से साथ आना और पंचशील की तरफ लौटना, केवल उनके लिए ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक सकारात्मक संकेत हो सकता है।