अब भारत देश में ‘हवा और पानी’ भी ‘जहरीला’

Wednesday, Sep 16, 2015 - 11:18 PM (IST)

जनता को सस्ती और स्तरीय चिकित्सा एवं शिक्षा, स्वच्छ पेयजल तथा लगातार बिजली उपलब्ध करवाना केंद्र और राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है परंतु इन सभी मोर्चों पर संबंधित सरकारें लगातार असफल ही सिद्ध हो रही हैं। यहां तक कि स्वच्छ हवा भी अब लोगों को उपलब्ध नहीं।

वल्र्ड इकनोमिक फोरम की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व में सर्वाधिक वायु प्रदूषित शहरों में से 18 एशिया में हैं और इनमें से 13 तो केवल भारत में ही हैं। प्रदूषित वायु फेफड़ों की गंभीर बीमारियों ब्रोन्काइटिस, दमा, कैंसर और हृदय रोगों का कारण बनती है जिनके इलाज पर प्रतिवर्ष देश को अरबों रुपए खर्च करने पड़ते हैं।
 
देश में मानव जनित वायु प्रदूषण में 80 प्रतिशत योगदान लगातार बढ़ रहे वाहनों और कोयले से चलने वाले विद्युत संयंत्रों का है जिनको नियंत्रित करने की ओर किसी का भी ध्यान नहीं है।
 
दूषित पानी भी अनेक रोगों का कारण बन रहा है जिनमें हैजा, पेचिश, पीलिया, फाइलेरिया, डेंगू, मलेरिया आदि के अलावा खुजली, ट्रैकोमा, पिस्सू और जूएं पडऩा जैसे त्वचा रोग शामिल हैं। बच्चों में कुपोषण तथा उनके विकास को अवरुद्ध करने का भी यह एक मुख्य कारण है।
 
हाल ही में ‘वाटर एड’ नामक एक अंतर्राष्ट्रीय एन.जी.ओ. ने यह चिंताजनक खुलासा किया है कि भारत में 75 से 80 प्रतिशत तक ‘सतही पानी’ प्रदूषित है। घरों के सीवरेज के पानी के अलावा विभिन्न जल संग्रहण स्थलों, तालाबों और नदियों में गिराए जाने वाले गंदे पानी की मात्रा लगभग दुगुनी हो गई है। 
 
प्रथम और द्वितीय श्रेणी के शहरों से नदियों-झीलों और तालाबों आदि में गिराए जाने वाले अनुपचारित पानी की मात्रा 12,000 मिलियन लीटर दैनिक से बढ़ कर 24,000 मिलियन लीटर दैनिक से भी अधिक हो गई है। 
 
रिपोर्ट के अनुसार अपर्याप्त सैनीटेशन सुविधाओं, घटिया मल-मूत्र प्रबंधन, स्वच्छता एवं ‘वेस्ट वाटर’ पालिसी की अनुपस्थिति हमारे नदी-नालों और भूमिगत पानी के प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है। न सिर्फसीवरेज के पानी की पूरी मात्रा का शुद्धिकरण नहीं हो पा रहा है बल्कि पीने के लिए सप्लाई किए जाने वाले भूमिगत पानी को शुद्ध करने के मामले में भी भारी त्रुटियां पाई जा रही हैं। 
 
इसी वर्ष अगस्त में एक संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह रहस्योद्घाटन किया है कि देश के ग्रामीण पेयजल स्रोतों में खतरनाक रासायनिक तत्व, आर्सैनिक, फ्लोराइड और आयरन घातक स्तर तक मौजूद हैं।
 
78,506 गांवों का पेयजल दूषित है जिनमें से 1991 गांव आर्सैनिक से, 14,132 गांव फ्लोराइड से, 42,093 गांव आयरन से, 17,472 गांव लवण व 2818 गांवों का पानी नाइट्रेट से प्रभावित है।
 
पंजाब के भूजल में एल्यूमीनियम की मात्रा भी निर्धारित मापदंडों से बढ़ गई है। यहां पानी में यूरेनियम, क्रोमियम, सिक्का, पारा आदि पहले ही मौजूद थे और अब एल्यूमीनियम की मात्रा बढऩे से इस पानी का सेवन करने वालों के अनेक दिमागी रोगों के शिकार होने का खतरा भी पैदा हो गया है।
 
निस्संदेह सीवरेज के पानी तथा भूमिगत पानी के शुद्धिकरण सम्बन्धी मापदंड तो तय किए गए हैं परंतु इन पर क्रियान्वयन निराशाजनक है। शुद्ध किया गया पानी भी तय मापदंडों के अनुरूप नहीं होता। इसके लिए किसी नागर (नगर की देखभाल संबंधी) एजैंसी की जवाबदेही भी तय नहीं की गई और न ही इसके लिए किसी दंड की व्यवस्था है क्योंकि हमारे यहां इसके लिए कठोर कानून हैं ही नहीं।
 
रिपोर्ट में जिस सर्वाधिक चिंताजनक पहलू की ओर इशारा किया गया है वह यह है कि बड़ी संख्या में हमारे लोग सैप्टिक टैंकों या गड्ढïों वाले शौचालयों पर निर्भर हैं जो देश के अधिकांश शहरों में सतही और भूमिगत पानी के प्रदूषण का तेजी से मुख्य कारण बनते जा रहे हैं। 
 
सरकार की उदासीनता, हमारी अपनी लापरवाहियों, निजी स्वार्थों और जानकारी के अभाव से जहां हमने हवा तक को जहरीला कर दिया है वहीं हमने पानी को भी नहीं बख्शा जो समस्या को और भी बढ़ा रहा है।
 
हवा-पानी तक का प्रदूषित हो जाना एक चेतावनी है कि यदि अभी भी हम न संभले और हवा तथा पानी की शुद्धता पर ध्यान न दिया तो वह दिन दूर नहीं जब घर-घर में मरीजों के बिस्तर लगे होंगे।  
 
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