ISIS के चंगुल से छूटे फोटो जर्नलिस्ट ने बताया, ''मैं रोज मौत का इंतजार करता''

Tuesday, Mar 31, 2015 - 10:45 AM (IST)

इस्तांबुल: आतंकी संगठन आईएसआईएस की चुंगल से छूटे तुर्की फोटोजर्नलिस्ट बुन्यामिन अयगुन ने आतंकवादियों के जुल्म की जो कहानी सुनाई उसे सुनकर आप भी कांप उठेंगे।  उन्होंने कहा कि मैं वहां 40 दिनों तक रोज मर-मर के जीता था। मुझे रोज कहा जाता था, खड़े हो जाओ, प्रार्थना कर लो और जिन्हें याद करना है याद कर लो, तुम्हें कल हम तलवार से मौत के घाट उतार देंगे।

बंधक रहने के दौरान अपने अनुभवों को किताब ''''40 डेस एट द हैंड्स ऑफ आईएस'''' के जरिए दुनिया के सामने ला रहे अयगुन ने कहा कि रोज मेरे सामने मेरा पूरा जीवन होता था। मैं जब भी आंखें बंद करता था तो सपने देखता था कि कैसे आतंकवादी मुझे मौत के घाट उतारेंगे।

जानकारी के लिए बता दें कि अयगुन एक अवॉर्ड विनिंग रिपोर्टर हैं जो कि तुर्की के मिलियत डेली के लिए काम करते थे। उनका इस्लामिक स्टेट (आईएस) के जिहादियों ने नवंबर 2013 में अपहरण कर लिया था। वह 40 दिनों तक आतंकवादियों के कब्जे में रहे। वह अपने अनुभवों के आधार पर ''''40 डेस एट द हैंड्स ऑफ आईएस'''' किताब लिख रहे हैं, जिसमें उन्होंने अपनी कहानी कही है। अयगुन ने उल्लेख किया है कि उन्हें आतंकवादी ज्यादातर आंखों पर पट्टी बांध कर रखते थे। इस दौरान अयगुन के दोनों पैर भी रस्सी से बंधे होते थे। इस हालत में उन्हें कई बार ऐसे लगा कि वह वापस अपनी दुनिया में नहीं जा पाएंगे। उन्होंने उल्लेख किया है, ''''आईएस की कैद में मेरे 40 दिन बड़ी मुश्किल से बीते। ऐसे लगा कि मैं 40 सालों से यहां कैद हूं। ''''

ऐसे पकड़े गए थे अयगुन

अयगुन को आईएस के आतंकवादियों ने पश्चिमी समर्थित फ्री सीरियन आर्मी (एफएसए) के कमांडर के साथ पकड़ा था। उन्हें 25 नवंबर 2013 को उस वक्त पकड़ा गया था जब वह साल्किन टॉउन में जिहादियों के एक समूह का इंटरव्यू करने जा रहे थे।

अयगुन ने कहा, ''''एक दायी (अंकल) नाम के व्यक्ति द्वारा रोज मेरी मौत का फरमान सुनाया जाता था। मेरी उससे दोस्ती हो गई थी। दायी मुझे रोज मेरे लिए खाना और पानी लाता था। वह मुझे ऐसी बातें बताता था जिससे मुझे अपने जीवन को लेकर आशा बंधती थी। वह कहता था कि मैं चाहूंगा कि तुम बच जाओ लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकता, क्योंकि कादी (एक इस्लामिक जज) ने उसे मौत की सजा देने का आदेश दिया है।'''' कुछ दिनों बाद दायी के बारे में वहां के गार्ड ने खबर दी कि वह हमले में मारा गया।

अयगुन का कहना है कि वह अपने सेल में आने वाले गार्ड पर तीन दिनों तक हमले का इंतजार करते रहे लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाए क्योंकि कोई भीतर ही नहीं आया। उन्होंने कहा कि मैं यह हमला भागने के लिए नहीं बल्कि गार्डों को गुस्सा दिलाने के लिए करने वाला था ताकि वह मुझे गोली मार दें, क्योंकि मैं तलवार से नहीं मरना चाहता था। मैं इतना अकेला और शांत हो गया था कि लगा कि मैं अब जिंदा नहीं रह पाउंगा लेकिन ऊपर वाले की शक्ति ने मुझे जिंजा रखा। मैं रोज मौत का इंतजार करता, यह मेरे लिए बड़ा दुखद था। 

 

ऐसे हुए रिहा

अयगुन को तुर्की होने का ज्यादा फायदा मिला। आईएस के ठिकानों पर विद्रेही समूह ने हमला कर दिया जिसके बाद आतंकवादियों को अपना अड्डा बदलना पड़ा। वह शहर उनके कब्जे से छूट गया जहां अयगुन सहित अन्य बंधकों को रखा गया था। इसके अलावा कई तुर्की खुफिया एजेंसियां लगातार आतंकवादियों से अयगुन की रिहाई के लिए संपर्क में थीं और अंत में उन्हें 40 दिनों बाद मुक्ति मिल गई। 

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